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मोहम्मद यूनुस ने शेख़ हसीना को ‘राक्षस’ बताया, शेख़ हसीना का देश छोड़कर भारत आने से दोनों देशों के आपसी रिश्तों पर असर होगा?

क्या बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख़ हसीना का देश छोड़कर भारत आना और यहां रहने से दोनों पड़ोसी देशों के आपसी रिश्तों पर असर होगा?

राजनीतिक उथल-पुथल से घिरे बांग्लादेश और सीमा के इस पार यानी भारत में ये सवाल अब आम हो गया है.

पाँच अगस्त को छात्रों के विरोध प्रदर्शन के हिंसा में तब्दील होने के बाद शेख़ हसीना के पीएम पद से इस्तीफ़ा देने की ख़बरें आईं.

शेख़ हसीना ने अपनी मुश्किल की इस घड़ी में भारत पर भरोसा किया और वो दिल्ली आ गईं.

इसके बाद 84 वर्षीय नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेता बनाया गया है.

लेकिन सवाल उठ रहा है कि नई सरकार का भारत के साथ तालमेल पर क्या असर देखने को मिल सकता है.

दरअसल, शेख़ हसीना और उनकी पार्टी आवामी लीग को भारत समर्थक नेता के तौर पर देखा जाता रहा है. संकट की स्थिति में उनका भारत आना दोनों देशों के संबंधों की गहराई की तस्दीक भी करता है.

हालांकि, बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने अब ये स्पष्ट कर दिया है कि शेख़ हसीना चाहे कितने भी वक़्त तक भारत में रहें, लेकिन इससे दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों पर कोई असर नहीं होगा.

अंतरिम सरकार में विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहिद हुसैन ने कहा है कि बांग्लादेश हमेशा भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश करेगा.

भारत के साथ रिश्तों पर क्या है बांग्लादेश का रुख़?

बीते मंगलवार विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बांग्लादेश के हालात पर राज्यसभा और लोकसभा में बयान दिया था.

उन्होंने शेख़ हसीना के भारत आने से लेकर बांग्लादेश में मौजूद भारतीय नागरिकों और वहां के अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर सदन में बात रखी.

विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि शेख़ हसीना भारत आई हैं और उनका विमान दिल्ली पहुंचा.

उन्होंने कहा, “5 अगस्त को प्रदर्शनकारी कर्फ़्यू के बावजूद ढाका में जमा हो गए. हमें जितना समझ में आया है वो ये है कि सुरक्षा प्रतिष्ठानों के नेताओं के साथ बैठक के बाद प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया. बेहद शॉर्ट नोटिस पर उन्होंने कुछ लम्हे के लिए भारत आने की अनुमति मांगी. इसी के साथ ही हमें बांग्लादेश प्रशासन की ओर से फ़्लाइट क्लियरेंस के लिए अनुमति मांगी गई. वो दिल्ली पहुंची हैं.”

ऐसी कई रिपोर्टें आईं जिनमें ये कहा गया कि शेख़ हसीना लंबे समय के लिए भारत में नहीं रहेंगी.

लेकिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहिद हुसैन ने जो कहा उसे नई अंतरिम सरकार की भारत से संबंधों पर पहली प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है.

विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहिद हुसैन से ये सवाल किया गया था कि अगर शेख़ हसीना भारत में लंबे समय तक रुकती हैं तो क्या इससे भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर असर होगा.

द्विपक्षीय रिश्तों को बड़ा मसला बताते हुए हुसैन ने जवाब दिया, “ये एक काल्पनिक सवाल है. अगर कोई किसी देश में रहता है तो उस देश से द्विपक्षीय रिश्ते क्यों प्रभावित होंगे? इसकी कोई वजह नहीं है.”

शेख़ हसीना सरकारी नौकरी में विवादित कोटा व्यवस्था के ख़िलाफ़ देशव्यापी प्रदर्शनों के बीच बांग्लादेश छोड़कर भारत आई थीं.

हुसैन ने कहा कि द्विपक्षीय रिश्ते एक-दूसरे के हितों पर आधारित होते हैं और दोस्ती भी हितों के लिए होती है. उन्होंने कहा, “अगर हित प्रभावित होंगे तो दोस्ती नहीं बनी रह सकती.”

उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों यानी बांग्लादेश और भारत के अपने हित हैं और दोनों ही उसी के आधार पर चलेंगे. हुसैन ने कहा कि उनकी सरकार हमेशा भारत के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने का प्रयास करेगी.

मोहम्मद यूनुस ने कहा- ‘राक्षस जा चुका है’
इस बीच जमुना स्टेट हाउस में अपने दफ़्तर में कुछ पत्रकारों से बातचीत में मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में प्रमुख सलाहकार बनने पर मंज़ूर होने की कहानी सुनाई.

इस दौरान उन्होंने बिना नाम लिए शेख़ हसीना की सरकार को ‘मॉन्स्टर’ यानी राक्षस कहा.

प्रोफ़ेसर यूनुस ने कहा, “आख़िरकार, ये मौका आया है. राक्षस जा चुका है.”

उन्होंने कहा, “मैं ये इसलिए कर रहा हूं क्योंकि इस देश के नौजवान ये चाहते थे और मैं उनकी मदद करना चाहता हूं. ये मेरा सपना नहीं था, ये तो उनका सपना था. एक तरह से मैं उनके ख़्वाब को हक़ीकत में बदलने के लिए मदद कर रहा हूं.”

महीनों तक चले छात्रों के प्रदर्शन के बाद 84 वर्षीय मोहम्मद यूनुस ने गुरुवार को शपथ ली थी थी.

प्रोफ़ेसर यूनुस कहते हैं, “क़ानून व्यवस्था सबसे पहले है ताकि लोग काम पर जा सकें, चैन से रह सकें.”

मोहम्मद यूनुस ने कहा कि शेख़ हसीना के देश छोड़कर भाग जाने के बाद से सरकार पूरी तरह से ‘गायब’ थी. 15 साल के तानाशाही शासन के बाद जो कुछ बचा है वह बहुत ‘ख़राब’ है.

“यहां तक कि उस सरकार ने जो भी किया, वह मेरी समझ से परे है…उन्हें बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि प्रशासन क्या होता है. लेकिन फिर भी अराजकता के सामने बहुत सी उम्मीदें हैं.”

उन्होंने कहा, “हम यहां हैं. देश के लिए एक नया चेहरा. क्योंकि आख़िरकार अब राक्षस चला गया है. इसलिए ये उत्साह भी है.”

बांग्लादेश में हिंदुओं के हाल पर भारत में क्या कहा जा रहा है?
शेख़ हसीना के बांग्लादेश छोड़ते ही वहां रह रहे हिंदुओं पर हमले की ख़बरें भी आने लगी थीं.

एस. जयशंकर ने भी संसद में ये कहा था कि भारत सरकार बांग्लादेश में मौजूद भारतीय नागरिकों और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर भी नज़र बनाए हुए है.

जयशंकर ने कहा, “4 अगस्त को हालात और गंभीर मोड़ पर आ गए, पुलिस, पुलिस थानों और सरकारी संपत्तियों पर हमले बढ़ गए. इसके साथ ही सभी तरह की हिंसाओं में बढ़ोतरी हो गई. सत्ता से जुड़े लोगों की संपत्तियों को देशभर में निशाना बनाया गया. जो ख़ासतौर पर सबसे चिंताजनक बात है वो ये है कि अल्पसंख्यकों के व्यापार और मंदिरों को कई जगहों पर निशाना बनाया गया. ये कितने बड़े पैमाने पर हुआ है ये अभी तक साफ़ नहीं है.”

नए नेता मोहम्मद यूनुस ने भी रविवार को सभी छात्रों से हिंदू, ईसाई और बौद्धों समेत सभी अल्पसंख्यकों की रक्षा करने को कहा.

धार्मिक रूप से अल्पसंख्यकों पर हुए हालिया हमलों की निंदा करते हुए उन्होंने कहा, “आप लोगों ने देश को बचाया, क्या आप कुछ परिवारों को नहीं बचा सकते?”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस को नई ज़िम्मेदारी संभालने पर शुभकामनाएं दीं लेकिन साथ में हिंदुओं समेत सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया था.

हालांकि, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की ख़बरें अभी भी आ रही हैं. इस पर देश में कई नेता प्रतिक्रियाएं भी दे रहे हैं.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने एक्स पर लिखा, “पड़ोसी देश बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर लगातार हमलों की ख़बरें विचलित करने वाली हैं. किसी भी सभ्य समाज में धर्म, जाति, भाषा या पहचान के आधार पर भेदभाव, हिंसा और हमले अस्वीकार्य हैं. हमें उम्मीद है कि बांग्लादेश में जल्द हालात सामान्य होंगे और वहां की नवनिर्वाचित सरकार हिंदू, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए सुरक्षा व सम्मान सुनिश्चित करेगी.”

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने ट्वीट किया, “बांग्लादेश में रह रहे हिंदू समाज व अन्य अल्पसंख्यक चाहे वो किसी भी जाति व वर्ग के हों, उन पर पिछले कुछ दिनों से हो रही हिंसा अति दुःखद एवं चिन्तनीय. इस मामले को केंद्र सरकार गंभीरता से ले वह उचित कदम उठाए, वरना इनका ज़्यादा नुक़सान न हो जाए.”

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लिखा, “कोई भी समुदाय चाहे वह बांग्लादेश का अलग नज़रिए वाला बहुसंख्यक हो या हिंदू, सिख, बौद्ध या कोई अन्य धर्म-पंथ-मान्यता माननेवाला अल्पसंख्यक, कोई भी हिंसा का शिकार नहीं होना चाहिए. भारत सरकार द्वारा इस मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार की रक्षा के रूप में सख़्ती से उठाया जाना चाहिए. ये हमारी प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा का भी अति संवेदनशील विषय है.”