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इस्लामी देश के संविधान से ”इस्लाम धर्म” हटाया जायेगा

टयूनीशिया के राष्ट्रपति ने कहा है कि इस देश के नये संविधान पर जनमत संग्रह कराया जाने वाला है और अब इस्लाम इस देश की सरकार का धर्म नहीं होगा।

समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार क़ैस सईद ने कहा कि हम देश के नये संविधान में उस सरकार के धर्म के बारे में कोई बात नहीं करेंगे जिसका धर्म इस्लाम है, राष्ट्र और सरकार में अंतर है।

टयूनीशिया के राष्ट्रपति के सामने इस देश के नये संविधान को पेश किया गया है और अगले महीने 25 जुलाई को इस पर जनमत संग्रह कराया जायेगा।

रोचक बात यह है कि टयूनीशिया के नये संविधान में कहा गया है कि ट्यूनीशिया एक स्वतंत्र व आज़ाद देश है, इस्लाम इस देश का धर्म है, अरबी इस देश की राजभाषा है और इस देश की सरकार का आधार लोकतंत्र होगा, न कि इस्लाम।

टयूनीशिया के राष्ट्रपति ने इस देश की सरकार के बारे में कहा कि यह महत्वपूर्ण नहीं है कि इस देश के नये संविधान के बारे में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सरकार का आधार क्या होगा बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि सरकार का संबंध जनता व राष्ट्र से होगा।

टयूनीशिया के राष्ट्रपति क़ैस सईद के विरोधी इस देश के राष्ट्रपति के प्रयासों को वर्ष 2011 में किये जाने वाले प्रतिरोध के खिलाफ विद्रोह मान रहे हैं जिसमें इस देश के पूर्व राष्ट्रपति ज़ैनुल आबेदीन को सत्ता से हाथ धोनी पड़ी थी परंतु इस देश के वर्तमान राष्ट्रपति का कहना है कि उनके प्रयास कानूनी हैं और टयूनीशिया को लंबे राजनीतिक संकट से मुक्ति दिलाने के लिए उनके प्रयास ज़रूरी हैं।

टयूनीशिया की पार्टियों, राजनीतिक धड़ों और गुटों ने इस देश के राष्ट्रपति के प्रयासों का विरोध किया है परंतु इस देश के राष्ट्रपति ने लोगों का आह्वान किया है कि वे नये संविधान के लिए होने वाले जनमत संग्रह में भाग लें।

जानकार हल्कों का मानना है कि टयूनीशिया के राष्ट्रपति क़ैस सईद अमेरिका, इस्राईल और दूसरी इस्लाम विरोधी शक्तियों के इशारे पर और उनकी प्रसन्नता हासिल करने के लिए ऐसा कर रहे हैं क्योंकि ये शक्तियां इस्लाम को अपने वर्चस्व के मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट समझती हैं और जब इस्लाम ही इस देश के संविधान से हट जायेगा तो कल कोई भी जनप्रतिनिधी यह नहीं कह सकता कि टयूनीशियाई सरकार का यह कदम इस्लाम के खिलाफ है।

दूसरे शब्दों में टयूनीशिया के राष्ट्रपति साम्राज्यवादी शक्तियों की सेवा कर रहे हैं, वह अपनी सरकार की बका को इन शक्तियों की प्रसन्नता में देख रहे हैं और इस्लाम को इस देश के नये संविधान से हटाकर टयूनीशिया को लूटने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

इसी प्रकार जानकार हल्कों का मानना है कि वर्ष 2011 में इस्लामी जनक्रांति की लहर टयूनीशिया से उठी और आरंभ हुई थी जिससे अरब देशों के शासक जहां डर गये थे वहीं साम्राज्यवादी देश भी चिंतित हो गये थे कि उनके हित खतरे में पड़ गये हैं और अब टयूनीशिया के नये संविधान से इस्लाम को ही हटा कर इस देश के राष्ट्रपति इस्लाम विरोधी शक्तियों के वफादार से सेवक की भूमिका निभा रहे हैं और वह वही कर रहे हैं जो ये शक्तियां चाह रही हैं।

नोटः ये व्यक्तिगत विचार हैं। तीसरी जंग हिंदी का इनसे सहमत होना ज़रूरी नहीं है।