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उत्तर प्रदेश : सुल्तानपुर में गोशाला के नज़दीक कई गायों के कंकाल मिल, क्या है पूरा मामला?

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में एक गोशाला के नज़दीक कई गायों के कंकाल मिलने के बाद गांववालों और गोशाला में काम करने वालों के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है.

राजधानी लखनऊ से 150 किलोमीटर दूर सुल्तानपुर ज़िले के पैगूपुर गांव की खुनशेखपुर गोशाला के पास खुले में दर्जनों गायों के कंकाल का एक वीडियो बीते दिनों सोशल मीडिया पर तेज़ी से वायरल हुआ.

गांव में दर्जनों मृत गायों का ये वीडियो वायरल होने के बाद से यह सवाल उठने लगा है कि मृत गायें किसकी थीं? क्योंकि गांववालों का आरोप है कि ये गायें गोशाला की हैं और गोशाला कर्मचारियों की लापरवाही की वजह से उनकी मौत हुई है.

ग्रामीणों के मुताबिक़ गायों के खाने के लिए गोशाला में ना तो पर्याप्त खाने का इंतज़ाम था और ना चारे का. साथ ही उनके रख-रखाव में घोर उपेक्षा बरती गई जिससे गायों की मौत हो गई.

लेकिन ग्राम प्रधान और स्थानीय प्रशासन ने दावा किया कि ये गायें स्थानीय लोगों की ही हैं और गोशाला को बदनाम करने के इरादे से गांववाले उन पर आरोप लगा रहे हैं.

क्या है पूरा मामला?
गांववालों का दावा है कि कुछ दिनों पहले गोशाला के आसपास से बेतहाशा बदबू आने लगी.

ग्रामीणों के मुताबिक़ जब वो इसकी वजह जानने निकले तो उन्हें गोशाला के पास कई गायों के शव नज़र आए जो बहुत बुरी हालत में थे.

स्थानीय निवासी देवेंद्र पांडेय ने कहा कि उन्होंने वहां जो देखा उसका वीडियो बनाया. उनका ये भी दावा था कि कुछ गायें अधमरी हालत में थीं और कुत्ते उन्हें नोच रहे थे.

वो कहते हैं, “मेरे पास जो वीडियो है उसमें एक गाय का कान हिलता नज़र आ रहा है. जब मैंने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो वो वायरल हो गया. तब यहां पर बीडीओ, सेक्रेटरी, ग्राम प्रधान आए और उन्होंने ट्रैक्टर की मदद से गायों को मिट्टी में दफ़न कर दिया.”

देवेंद्र पांडेय दावा करते हैं कि गोशाला की गायों को चारा तक मुहैया नहीं कराया गया और वो भूख से बेहाल हैं.

कई दूसरे ग्रामीणों ने भी बताया है कि उन्हें गोशाला के पास दर्जनों गायों के शव नज़र आए.

स्थानीय निवासी हीरालाल मल्लाह ने बीबीसी को बताया, “जो गायें मरी हैं, वो सभी गोशाला की हैं. गोशाला के पास कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए वो मरने के बाद गायों को खुले में फेंक देते हैं. सरकार ऊपर से पैसा भेज रही है लेकिन यहां गायें भूख से मर रही हैं.”

हालांकि, गोशाला के प्रबंधन से जुड़े लोग इस तरह के सभी आरोपों को ख़ारिज करते हैं.

उनका दावा है कि गांव के पास जो गायें मरीं थीं, वो गोशाला की नहीं थीं.

बीबीसी की टीम ने क्या देखा?
जब हम गोमती नदी के किनारे पैगूपुर गांव की खुनशेखपुर गोशाला पहुंचे तो आसपास आवारा कुत्तों की फौज नज़र आई. हमें आसमान में मंडराते कौवे भी दिखे.

पास ही बड़े जानवरों की हड्डियों के टुकड़े और छोटी हड्डियां बिखरी थीं. वहां असहनीय गंध फैली हुई थी और उन सबके के बीच हमें कई बड़े-बड़े गड्ढे नज़र आए.

गड्ढे देखकर ये अंदाज़ा लग रहा था कि गड्ढे ताज़ा खोदे गए हैं.

गोशाला के आसपास रहने वाले ग्रामीणों का आरोप है कि जब वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर हुआ तो प्रशासन ने आपाधापी में बिखरी गायों के शवों को मिट्टी के अंदर दबा दिया और जेसीबी से नए गड्ढे और नाले खोद दिए.

जब हम खुनशेखपुर गोशाला पहुंचे तो हमें कुछ लोगों ने बाहर ही रोक लिया. गोशाला में अपने मुंह पर कपड़ा बांधे कुछ कर्मचारी बार-बार हमसो हमारे आने का कारण पूछते रहे. वहां मौजूद एक नौजवान हमारा वीडियो बनाने लगा.

थोड़ी देर बाद गांव के प्रधान के आ जाने के बाद ही हमें अंदर जाने दिया गया.

हालांकि इस दौरान प्रधान रवि ज्ञान शंकर लगातार किसी के साथ फ़ोन पर संपर्क में थे और बहुत सावधान होकर हमसे बात कर रहे थे.

गोशाला में लगभग दो सौ गायें टिन शेड के नीचे सूखा भूसा खा रही थीं. लगभग दस बीमार गायें ज़मीन पर अचेत अवस्था में पड़ी थीं. पांच कर्मचारी गोशाला में काम करते नज़र आ रहे थे.

गोशाला और स्थानीय प्रशासन का जवाब
ग्राम प्रधान रवि ज्ञान शंकर ने शिकायतकर्ता देवेंद्र पांडेय पर छवि धूमिल करने के लिए वीडियो वायरल करने का आरोप लगाया है.

उन्होंने कहा, “पंचायत चुनाव आ रहा है. चुनावी रंजिश की वजह से मुझे प्रताड़ित किया जा रहा है. देवेंद्र पांडेय गोशाला से गायों का चारा चोरी कर ले जा रहे थे. वीडियो बनाकर झूठी अफवाहें फैला रहे हैं. गांव में हमारी छवि धूमिल करने के लिए काम कर रहे हैं. जो वीडियो वायरल है वह यहां का नहीं है.”

ज़िला सूचना कार्यालय ने भी एक प्रेस नोट जारी किया जिसमें कहा गया कि गोशाला के बाहर खुले में फेंकी गई मृत गाएं गोशाला की नहीं है. खुनशेखपुर गोशाला से 300 मीटर दूरी पर पाई गईं मृत गायों को इस प्रेस नोट में गांववालों की बताया गया है.

सुल्तानपुर ज़िलाधिकारी कृतिका ज्योत्सना से हमने खुनशेखपुर गोशाला मामले में जानकारी लेने की कोशिश की तो उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि, “मामले में कार्रवाई हो चुकी है. मेरा वही बयान है जो सूचना कार्यालय के प्रेस नोट में कहा गया है.”

वहीं पशुपालन अधिकारी अखिलेश तिवारी ने बीबीसी से कहा, “स्थानीय प्रशासन के अनुसार गायें गोशाला की नहीं थीं. गांव के लोग अपनी मृत गायें गोशाला के पास यार्ड में डालते थे. प्रशासन जांच कर रहा है अभी तक उसकी रिपोर्ट नहीं आई है.”

वो कहते हैं, “मैं अपने डॉक्टरों को अलर्ट रखता हूं. गोशाला की गायों की सीरियल नंबर से टैगिंग होती है. खुनशेखपुर गोशाला में गायों की संख्या पूरी पाई गई. गोशाला की गायें नहीं थीं बाकी वो गायें किसकी और कहां की थीं शासन-प्रशासन जाने.”

कौन-कौन से सवाल उठ रहे हैं?
गांव वालों और गोशाला के बीच आरोप प्रत्यारोप के बीच कुछ सवाल हैं जिनके जवाब मिलने बाक़ी हैं

गोशाला में मौजूद जिन गायों को हमने देखा वो बेहद दुर्बल नज़र आ रही थीं, ऐसा क्यों? गोशाला के कर्मचारी कपड़े से अपना चेहरा क्यों छिपा रहे थे?

पत्रकारों को देखकर गोशाला के लोग इतने सवाल क्यों पूछ रहे थे? हमें शुरुआत में गोशाला में जाने से रोका क्यों जा रहा था?

और गोशाला के इस दावे के बाद कि वो मृत गाएं गोशाला की नहीं है, गोशाला की देखभाल करने वाले उदय प्रकाश उर्फ पंजाबी सिंह को क्यों हटा दिया गया?

गांववालों ने गोशाला पर गायों की देखभाल में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है.

गांव के बाहर हरी सब्जी बेचने निकलीं रमा देवी खुनशेखपुर गोशाला को जेल बताती हैं.

रमा देवी कहती हैं, “गायों को खाने को नहीं मिल रहा है इसलिए गायें मर रही हैं. जो जानवर बाहर घूमकर चर रहे हैं वही ठीक हैं, बाकी जो अंदर हैं वो जेल में हैं. गाएं मर जाती हैं तो गोशाला के सामने ले जाकर फेंक देते हैं. गंध के कारण लोग अपने जानवर चराने गोशाला की ओर नहीं जाते हैं.”

राजनीतिक बयानबाज़ी
खुनशेखपुर गोशाला के पास बड़ी संख्या में मृत गायों का मामला सामने आने के बाद से ज़िले में सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में आवारा पशु को लेकर एक बार फिर चर्चा गर्म हो चुकी है.

भारतीय जनता पार्टी की ओर से गोशाला में मृत गायों के मामले में अभी तक कोई आधिकारिक पक्ष सामने नहीं आया है.

समाजवादी पार्टी जिलाध्यक्ष रघुवीर यादव ने बीबीसी से कहा, “भाजपा वालों के लिए गाय माता समान हैं. वो मर रही हैं और पैसा कोई और खा रहे हैं. गायों को चारा-पानी नहीं मिल रहा है. इतनी बड़ी संख्या में गायों का मरना सीधे तौर पर भ्रष्टाचार है.”

खुनशेखपुर गोशाला का उद्घाटन पूर्व बीजेपी विधायक देवमणि द्विवेदी ने किया था.

उन्होंने बीबीसी से कहा, “ग्रामीण लोग ज़िलाधिकारी महोदया से मिले हैं उन्होंने तत्काल कार्रवाई का आश्वासन दिया है. जहां तक रही बात गायों के मरने की तो एक गाय की औसत उम्र बारह वर्ष होती है. लोग लास्ट स्टेज पर उन्हें छोड़ते हैं. लेकिन हां, इस मामले में लापरवाही की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.”

क्या है सरकारी योजनाएं?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में 6,889 पशु आश्रय स्थल सक्रिय हैं, जिनमें से 6,346 ग्रामीण क्षेत्रों में और 543 शहरी क्षेत्रों में स्थित हैं. इन आश्रय स्थलों में वर्तमान में 11,82,949 पशुओं की देखभाल की जाती है.

मुख्यमंत्री सहभागिता योजना के तहत गो-सेवकों को विभिन्न स्थानों में गायों की सेवा और रखरखाव के लिए 50 रुपए प्रति गाय प्रतिदिन की दर से दिया जा रहा है. यह राशि पिछले साल तक प्रति गाय मात्र 30 रुपए प्रतिदिन थी.

एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बढ़ती महंगाई के एवज में गोशाला में प्रति गायों पर 50 रुपए मिलने को अपर्याप्त क़रार दिया.

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गौरव गुलमोहर
पदनाम,यूपी के सुल्तानपुर से, बीबीसी हिन्दी के लिए