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ग़ज़ा में संघर्ष विराम को लेकर अमेरिका का संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ‘प्रस्ताव’ : हमास को मंज़ूर, इस्राईल की मुश्किल बढ़ी : रिपोर्ट

अगर राजनयिकों को रोज़ाना एक ही तरह का जीवन जीना पड़े तो उन्हें वैसा ही महसूस होगा जैसा अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को अपनी हालिया मध्यपूर्व यात्रा के दौरान महसूस हुआ होगा.

जब उनका विमान लैंडिंग के क़रीब रहा होगा तो उन्हें एक थकान और ऊब ज़रूर महसूस हुई होगी. सात अक्टूबर 2023 को हमास के हमले के बाद से बीते आठ महीनों में ये ब्लिंकन की आठवीं मध्य-पूर्व की यात्रा है.

ग़ज़ा में युद्ध ख़त्म करने और फ़लस्तीनी क़ैदियों के बदले इसराइली बंधकों की अदला-बदली के लिए बातचीत की राजनीति पहले से ही जटिल थी.

लेकिन अब ये पहले से कहीं ज़्यादा उलझ गई है क्योंकि इसराइल के विपक्षी नेता बेनी गैंट्ज़ ने अपने राजनीतिक सहयोगी गादी इसेनकोट के साथ प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के वॉर कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया है.

दोनों ही रिटायर्ड जनरल हैं जिन्होंने चीफ ऑफ़ स्टाफ़ के तौर पर इसराइल डिफेंस फ़ोर्स का नेतृत्व किया था.

अमेरिका का प्रस्ताव और नेतन्याहू की मुश्किलें

बेनी गैंट्ज़ वॉर कैबिनेट में अमेरिका के पसंदीदा थे लेकिन अब जब वो विपक्ष में वापस आ गए हैं, तो गैंट्ज़ देश में नए सिरे से चुनाव कराए जाने की मांग कर रहे हैं.

गैंट्ज़ पोलस्टर्स के बीच इसराइल के अगले प्रधानमंत्री के रूप में पहली पसंद हैं, लेकिन नेतन्याहू तब तक सुरक्षित हैं जब तक वह अपने गठबंधन को बचा सकते हैं. ये गठबंधन उन्हें 120 सदस्यीय इसराइली संसद में बहुमत के लिए ज़रूरी 64 सीटें देता है.

ये गठबंधन दो अति राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन पर निर्भर करता है, जिनके नेता हैं राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतमार बेन-ग्वीर और वित्त मंत्री बेजेल स्मोट्रिच. यहीं पर अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन का मिशन इसराइल की राजनीति से टकराता है.

राष्ट्रपति जो बाइडन का मानना है कि ग़ज़ा में युद्ध ख़त्म करने का समय आ गया है. ब्लिंकन का काम है ये कोशिश करें कि ऐसा ही हो. लेकिन बेन-ग्वीर और बेजेल स्मोट्रिच ने ये धमकी दी है कि अगर नेतन्याहू ऐसा करने के लिए तैयार होते हैं तो वे उनकी सरकार गिरा देंगे.

ये नेता कट्टर यहूदी राष्ट्रवादी हैं, जो चाहते हैं कि युद्ध तब तक जारी रहे जब तक हमास का नाम-ओ-निशान मिट जाए.

उनका मानना है कि भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच के सभी क्षेत्र जिसमें ग़ज़ा भी शामिल है, यहूदियों की ज़मीन है जहां यहूदियों को बसना चाहिए. उनका तर्क है कि फ़लस्तीनियों को स्वेच्छा से ही ग़ज़ा छोड़ देना चाहिए.

एंटनी ब्लिंकन इसलिए मध्य-पूर्व पहुंचे हैं ताकि बीते हर सीज़फ़ायर प्लान की तरह ये योजना भी व्यर्थ ना चली जाए. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तीन युद्धविराम प्रस्तावों को अमेरिका ने वीटो कर दिया था, लेकिन अब जो बाइडन चाहते हैं कि युद्धविराम हो जाए.

अमेरिका की डील है क्या?

31 मई को राष्ट्रपति बाइडन ने एक भाषण में हमास से अपील की थी कि वह ग़ज़ा में युद्ध ख़त्म करने के लिए इसराइल के नए प्रस्ताव पर सहमत हो जाए.

ये डील तीन हिस्सों में हैं – जिसे अब यूएन रिज़ॉल्यूशन का समर्थन मिल चुका है – जिसमें सबसे पहले छह सप्ताह का युद्ध विराम होगा, इस दौरान ग़ज़ा में मानवीय सहायता “बढ़ाई जाएगी” और फ़लस्तीनी क़ैदियों के बदले कुछ इसराइली बंधकों को छोड़ा जाएगा.

इसके बाद समझौते के तहत सभी बंधकों की रिहाई होगी. आखिर में ग़ज़ा के पुनर्निर्माण का काम किया जाएगा.

बाइडन का कहना है कि इसराइलियों को अब हमास से डरना नहीं चाहिए, क्योंकि वह अब 7 अक्टूबर को दोहराने में सक्षम नहीं है.

राष्ट्रपति बाइडन और उनके सलाहकार जानते थे कि इस काम में आगे मुश्किलें आने वाली हैं. हमास का कहना है कि वह केवल तभी युद्धविराम पर सहमत होगा जब ग़ज़ा से इसराइल की वापसी हो और युद्ध के अंत की गारंटी हो.

पिछले हफ़्ते इसराइल ने अपने चार बंधकों को छुड़ाने के लिए ग़ज़ा के नुसेरात रिफ्यूजी कैंप में छापेमारी की. इसमें कई फ़लस्तीनी नागरिक मारे गए. ग़ज़ा में हमास संचालित स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि इस रेड के दौरान 274 फ़लस्तीनी मारे गए, लेकिन इसराइल डिफ़ेंस फोर्स (आईडीएफ़) का कहना है कि यह संख्या 100 से कम थी. इस घटना ने हमास की इस मांग को और मजबूत किया है.

बाइडन को ये भी पता है कि इसराइल में कई ताकतें उनके इस प्रस्ताव का विरोध करेंगी.

इसलिए उन्होंने अपने भाषण में कहा, “मैंने इसराइल के नेतृत्व से इस समझौते के साथ मज़बूती से खड़े रहने का आग्रह किया है. चाहे कितना भी दबाव क्यों न आए.”

हमास और इसराइल दोनों की चुप्पी
जैसा कि अमेरिका को लग रहा था, बेन ग्वीर और स्मोट्रिच की ओर से बाइडन के सीज़फ़ायर प्रस्ताव का घोर विरोध किया गया. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस डील को युद्ध कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है क्योंकि वो इस कैबिनेट के सदस्य नहीं है.

हालांकि बेनी गैंट्ज़ के इस्तीफ़े के बाद ही बेन ग्वीर ने खुदको वॉर कैबिनेट में शामिल किए जाने की इच्छा ज़ाहिर की है.

जैसा कि उम्मीद थी उन्होंने धमकी दी है कि अगर नेतन्याहू इस डील के लिए सहमत हुए तो वह उनकी गठबंधन की सरकार गिरा देंगे.

अभी तक हमास और इसराइल दोनों की ओर से बाइडन के युद्धविराम प्रस्ताव पर सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिबद्धता ज़ाहिर नहीं की है.

हालांकि बाइडन ने स्वीकार किया कि युद्धविराम के प्रस्ताव के कुछ हिस्सों की भाषा को अंतिम रूप दिए जाने की ज़रूरत है.

बाइडन ने कहा है कि प्रस्ताव के कुछ हिस्सों में अस्पष्टता है और कूटनीतिक पैंतरेबाज़ी के लिए जगह है. लेकिन ये करने के लिए एक साझी समझ बनानी होगी कि अब युद्ध को ख़त्म करने का समय आ गया है और युद्ध को आगे बढ़ाने से कोई फायदा नहीं होगा.

इस बात के कोई संकेत नहीं हैं कि ग़ज़ा में हमास नेता याह्या सिनवार ऐसा करने पर सहमत हैं. ऐसा लगता है कि वह 7 अक्टूबर से जिस रास्ते पर चल रहे हैं, उसी पर चलने के लिए दृढ़ता से टिके हैं.

ये साफ़ है कि बड़ी संख्या में फ़लस्तीनियों की मौत ने हमास को कमज़ोर नहीं बल्कि उसके इरादों को और मज़बूत किया है. अब उनके लिए इस समूह के अस्तित्व को बचाए रखना ही उनकी जीत है.

वो इस तथ्य पर फोकस करेंगे कि 37,000 से अधिक फ़लस्तीनियों (ग़ज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार) की हत्या ने इसराइल को दुनिया में बदनाम कर दिया है. इसराइल पर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में जनसंहार का आरोप लगा है और बिन्यामिन नेतन्याहू और इसराइल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किए जाने की मांग की जा चुकी है.

नेतन्याहू के लिए मुश्किल रास्ता

वहीं इसराइल में नेतन्याहू अपने युद्ध कैबिनेट से दो मंत्री खो चुके हैं. गैंट्ज़ और इसेनकोट, ये दोनों चाहते थे कि युद्ध में अस्थायी विराम हो ताकि बंधकों को छुड़ाने के लिए बातचीत हो सके.

अब जब ये दोनों कैबिनेट का हिस्सा नहीं हैं तो नेतन्याहू हार्डलाइनर बेन-ग्वीर और स्मोट्रिच के सामने और ज्यादा कमज़ोर पड़ सकते हैं.

शायद एंटनी ब्लिंकन उनसे बातचीत करेंगे और एक ऐसा समझौता करेंगे जिससे लाखों इसराइली संतुष्ट हों कि बंधक वापस आने चाहिए.

हो सकता है कि नेतन्याहू के पास अपनी सरकार को ख़तरे में डालने और चुनाव पर दांव लगाने के अलावा कोई चारा ना बचे.

अगर नेतन्याहू चुनाव हारते हैं, तो उनके ख़िलाफ़ जांच आयोग बैठाया जा सकता है. जो इस बात की जांच करे कि वे कौन सी राजनीतिक, ख़ुफ़िया और सैन्य चूक हुईं, जिनके कारण आठ महीने पहले हमास ने इसराइल पर हमला कर दिया.

या फिर नेतन्याहू पैंतरेबाज़ी और दुष्प्रचार की उन तकनीकों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, जो उन्होंने इसराइल के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने के दौरान सीखी हैं.

24 जुलाई को नेतन्याहू अपने पसंदीदा मंच पर लौटेंगे. वह वॉशिंगटन डीसी में अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करेंगे.

हो सकता है, वहां उनके लिए कुछ बेहतर निकल कर सामने आए.

जेरेमी बॉवेन
पदनाम,इंटरनेशनल एडिटर, बीबीसी

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यहाँ बता दें कि हमास ने ग़ज़ा में जंगबंदी के लिए पेश किये गए अमेरिकी प्रस्ताव पर रज़ामंदी दे दी है, अमेरिका ने फ्रांस वाले प्रस्ताव को ही पेश किया है जिस पर बने रहने के लिए चीन और रूस ने फ़लस्तीनी संगठनों को कहा था, ये प्रस्ताव पहले फ्रांस में ”बाइडेन डॉक्ट्रीन” के नाम से पेश किया गया था जिसे ऐन वक़्त पर इस्राईल स्वीकार नहीं किया था, इस बार इसराइल के कहने पर अमेरिका ने ये प्रस्ताव पेश किया है