Ambrish Kumar
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मुनस्यारी
रास्ता तो कई बार भटके पर अच्छा ही रहा . पिथौरागढ़ में कुछ खरीदारी करनी थी कुमायूं की शादियों में पहने जाने वाली ओढनी या पिछौरा की इसलिए उधर से जाने का रास्ता लिया पर पिथौरागढ़ से मुनस्यारी का रास्ता भटक गए. रास्ता तो इससे पहले जागेश्वर से ही भटक गए थे. नैनीताल से शाम को चले और जागेश्वर पहुंचते पहुंचते रात हो चुकी थी इसलिए वही विश्राम किया गया. सुबह जिस रास्ते से निकले वह कुछ देर बाद पता चला कि लंबा भी है और बहुत ही खराब भी . कई जगह सड़क ही गायब और नीचे गहरी खाई. रास्ता भी संकरा, खैर पिथौरागड़ पहुंचे तो खरीदारी करते करते दोपहर बीत चुकी थी और जाना मुनस्यारी था. जिस रास्ते से मुड़ना था वहाँ चूक गए और काली नदी के किनारे किनारे दूसरे रास्ते पर जा चुके थे. ये रास्ता मदकोट होकर जाता है .

मदकोट,गोरी नदी और मंदाकनी के बीच घिरी है. एक तरफ से गोरीगंगा आती है और दूसरी ओर से मंदाकनी नदी आती है और मदकोट के छोर पर मिल जाती है . यह रास्ता नदी के साथ साथ चलता है. मदकोट पहुँचने से पहले तीन तरफ से ऊंचे जाते पहाड़ घेर लेते हैं. शाम होने से पहले ही अंधेरा होने लगा था . पर अचानक सामने का दृश्य देखकर चौक गए. हिमालय कि एक चोटी चमक रही थी अंधेरे में बादलों ने उसे घेर रखा था फिर भी वह चोटी सम्मोहित कर रही थी. फिर रास्ता एक गुफा में जाता दिखा जिसके ऊपर से झरना गिर रहा रहा जिसका पानी वेग से बही नदी में जा रहा था. रास्ता तो भटके पर यह दृश्य अद्भुत था. पर इसी के बाद जोखम भर संकरा रास्ता मदकोट से ऊपर चढ़ने लगा था .
मदकोटसे मुनस्यारी से २२ किलोमीटर दूर है. पिथौरागढ़ से आने पर जौलजीवी ,बरम ,बंगापनी,से होकर आना होता है. लौटते समय इसी पर सरमोली , जैती, दरकोट, सेविला, भदेली ,गावे पड़ता है. यह रास्ता संकर है और बरसात में और खतरनाक हो जाता है क्योंकि सड़क के दूसरी तरफ कोई रोक भी नहीं है और नीचे खाई काफी गहरी है . मुनश्यारी मिलम, रालाम और नामिक ग्लेशियर के लिए ट्रेक आधार शिविर के रूप में कार्य करता है, जबकि धारचुला कैलास मानसरोवर यात्रा, आदि कैलाश यात्रा और नारायण स्वामी आश्रम के लिए आधार शिविर के रूप में कार्य करता है. यह समुद्र तल से 2,135 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और पूरे क्षेत्र को जोहर घाटी के रूप में जाना जाता है मुनिशीरी के आसपास महेश्वरी कुंड और थमरी कुंड झीलें हैं. खैर मुनस्यारी पहुंचते पहुंचते शाम के सात बज रहे थे और सामने हिमालय कि कई चोटियां चमक रहीं थी .

पंचाचूली पर्वत सामने था. जौहर घाटी में स्थित पांच चोटियों के कारण इसे पंचाचूली नाम दिया गया है. सूर्यास्त के समय ये चोटियां सोने की चोटियों में बदल जाती हैं .