साहित्य

अब ये तुम पर निर्भर करता है कि तुम्हें किराए के घर में रहना है या नहीं!

Laxmi Kumawat

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* ननद रानी मुझे मत सिखाओ कि मुझे अपनी सास को कैसे रखना है *
“दीदी आप यहां अपनी मां से मिलने आई है, उनसे मिलिए और अपने काम से मतलब रखिए। बेवजह मेरे काम में टांग अड़ाने की जरूरत नहीं है। आखिर बर्दाश्त की भी हद होती है। जब देखो मुझे समझाती रहती है आप।‌ मैं भी आपकी ही उम्र की हूं। मुझ में भी आपके जितनी समझ है। मुझे मेरे काम में दखलअंदाजी पसंद नहीं है”
तान्या ने मुंह तोड़कर जवाब दिया।
उसकी बात सुनकर मनीषा चुप रह गई। आखिर बोलती भी क्या? भाभी तो सीधे मुंह बात भी नहीं करती थी। उसने भाई मनन की तरफ देखा इस उम्मीद के साथ कि भाई तो कुछ कहेगा। लेकिन वो तो नजरे झुकाए चुपचाप बैठ हुआ था।
उसकी नज़रें तभी अपनी मां जानकी जी से टकराई। जानकी की कातर नजरों से उसकी तरफ देख रही थी। आखिर बोल भी तो क्या बोले? रहना तो बेटे बहू के साथ ही था।
मनीषा बेइज्जती का घूट पीकर रह गई। आखिर जानती थी कि अगर वो कुछ बोलेगी तो बाद में भाभी मां का जीना दुश्वार कर देगी।
आज इतने दिनों बाद मनीषा अपने मायके आई थी। पर मायके में इतना कुछ बदल चुका है ये उसकी सोच से बाहर था। जिस घर में कभी मां पापा की चलती थी, आज वहां बहू तान्या का सिक्का बोल रहा था। आखिर भाई इतना चुप कैसे हो गया। वो तो मां के खिलाफ कुछ सुन भी नहीं सकता था। उसका इस तरह से स्वागत होगा इसका अंदाजा उसे बिल्कुल नहीं था।
मालूम है कि किसी इंसान के जाने के बाद बदलाव होता है।पर पापा के जाने के बाद ऐसा क्या हुआ जो घर का माहौल इतना ज्यादा बदल गया। पापा के सामने तो तान्या कुछ कह नहीं पाती थी। पर अब इतनी हिम्मत कहां से आ गई।
तान्या और मनन की शादी दो साल पहले हुई थी। मनन की शादी के तीन महीने बाद ही मनीषा की भी शादी सूरज के साथ कर दी गई। और वो विदा होकर अपने ससुराल चली गई। घर में सब कुछ सामान्य ही तो था। जब भी मनीषा ससुराल से आती थी तो उसका स्वागत बड़े अच्छे से होता था। मां और भाभी उसकी मनपसंद चीजे बनाकर रखती थी।
पापा शाम को आते समय उसके लिए आइसक्रीम जरूर लेकर आते थे। जानते थे कि मौसम कोई भी हो, मनीषा को आइसक्रीम बहुत पसंद है। और सिर्फ ऐसा नहीं कि सिर्फ बेटी के लिए लेकर आए हो। साथ में बहू के लिए भी उसकी पसंद की चीज जरूर लेकर आते थे।
लेकिन पिछले साल पापा की अचानक हार्ट अटैक से मौत हो गई। उसके बाद मनीषा सिर्फ एक बार मायके आई थी। उसके बाद अब आई है। क्योंकि प्रेगनेंसी में कॉम्प्लिकेशन होने के कारण ससुराल वालों ने नहीं भेजा। अब अपने दो महीने के बेटे के साथ यहां आई थी। पर यहां का तो माहौल पूरा ही बदल चुका था।
कल से देख रही थी। मां चुप हो चुकी थी। अब ज्यादा कुछ बोलती नहीं थी। साड़ियां भी कितनी घिस चुकी थी। उन्हीं को पहने जा रही थी। मां कभी भी बिना प्रेस की साड़ियां नहीं पहनती थी। उनकी साड़ियां इतनी घिसी हुई भी कभी नहीं होती थी। पर आज उन्हें इस तरह की साड़ी में देखकर वो बिल्कुल हैरान रह गई।
जब उसे रहा नहीं गया तो जबरदस्ती मां के लिए साड़ी निकालने के लिए उनकी अलमारी खोली तो देख कर दंग रह गई। जो अलमारी मां की साड़ियों से भरी होती थी, उस अलमारी में बस कुछ घिसी पिटी साड़ियां रखी हुई थी। ये देखकर मनीषा ने कहा,
” मां आपकी सारी साड़ियां कहां गई?”
” बेटा तेरे पापा के जाने के बाद मन नहीं करता। वो साड़ियां मैं पहनती नहीं, इसलिए मैंने वो सारी साड़ियां लेनदेन में निकाल दी”
” पर उसमें तो कई सारी पहनी हुई साड़ियां थी”
” हां, मैंने फिर भी निकाल कर दे दी”
उसके आगे मनीषा कुछ कह नहीं पाई।
खैर, शाम को उसकी सहेली ने उसे खाना खाने बुलाया था, जो पड़ोस में ही रहती थी। तो वो अपने बेटे के साथ उनके घर गई थी। मां से खूब कहा था पर वो घर पर ही रुक गई। लेकिन जब लौट कर आई तब मां खाना खा रही थी। मां की थाली में सिर्फ दाल रोटी देखकर वो हैरान रह गई।
जहां तक उसे याद था शाम को जब वो गई थी तब भाई पनीर लेकर आया था। मतलब भाभी ने पनीर की सब्जी बनाई थी। फिर मां को सिर्फ दाल रोटी क्यों। उसने मां से पूछा,
” मां आप सिर्फ दाल रोटी खा रही हो। पनीर क्यों नहीं लिया। आपको तो बहुत पसंद था ना”
” आजकल ये सब खाने का मेरा मन नहीं करता। सादा खाना खाने से सादे विचार रहते हैं”
पर अब तो ये बातें मनीषा के गले से नहीं उतर रही थी। कुछ ना कुछ तो गलत था। मां बताना नहीं चाह रही थी। पर घर का माहौल जिस तरह से बदला था वो उम्मीद से परे था। लेकिन ये बात उसे जल्दी ही समझ में आ गई। जब रात को भाभी अपनी बड़ी बहन से बात कर रही थी। और उसकी बातें मनीषा ने सुन ली।
“अरे क्या बताऊं जीजी। ननद घर आई हुई है। ये जल्दी से जाए तो मेरा पिंड छूटे। आज अपनी मां से पूछ रही थी कि पनीर की सब्जी क्यों नहीं ली? अरे मैं दूंगी तो लेगी ना। भला विधवा औरत को भी ऐसे खाने की क्या जरूरत है”
सुनकर मनीषा का दिमाग खराब हो गया। मतलब पापा के जाते ही मां का अस्तित्व खत्म हो गया। जरूर साड़ियों के लिए भी भाभी ने कुछ ना कुछ सुनाया होगा। तभी मां ऐसी घिसी पिटी साड़ियां पहनती है।
उसने सोचा कि जाकर भाभी को जवाब दूं। पर वो चुप रह गई। भाभी अपनी मनमानी करती थी पर भाई कुछ बोलता नहीं। कितनी गलत बात थी ये। मनीषा ने रात को मां से बात भी की,
” मां आप कुछ बोलती क्यों नहीं हो? दादी भी तो विधवा थी। लेकिन आपने तो कभी उनके साथ ऐसा नहीं किया। अगर कोई कहता तो आप उससे लड़ जाती थी। पर आज आपको क्या हो गया। उल्टा आप गलत को बर्दाश्त कर रही हो। आखिर क्यों डरती हो आप “
” बेटा रहना तो मुझे अपने बेटे बहू के साथ ही है ना। अब बेवजह की झगड़ा मोल लूंगी तो वो लोग मुझे छोड़कर चले जाएंगे। फिर भला मैं अकेली कैसे रहूंगी”
मां ने लंबी आह भरते हुए कहा।
” पर मां भाभी इतनी मनमानी कर रही है। भाई चुपचाप क्यों सह रहा है। भाई उनको जवाब क्यों नहीं देता”
” पहले शुरू शुरू में जवाब देता था। पर वो हर रोज लड़ पड़ती थी। जीना दुश्वार कर रखा था उसने। तो मैंने ही उसे को चुप रहने के लिए कह दिया। कम से कम वो तो चैन से रहे। मैंने तो उम्र काट ली। अब बाकी बचे हुए दिन जैसे तैसे निकल जाएंगे “
” एक मिनट मां। आपकी उम्र अभी सिर्फ पचपन साल है। वक्त का कोई पता नहीं। कम से कम स्वाभिमान के साथ तो जियो। आप कब तक ये सब बर्दाश्त करोगी। घर आपका, स्वाभिमान आपका, हम बच्चे भी आपके, लेकिन हुकुम भाभी बजा रही है। ये तो गलत है”
” तू छोड़ ये सब बातें। सो जा, नहीं तो फिर तेरा बेटा अगर उठ गया तो तुझे परेशान करेगा”
कहकर मां ने बात पलट दी और दूसरी तरफ मुंह करके सो गई।
लेकिन दूसरे दिन सुबह नाश्ते के लिए भाभी ने कचौरी मंगा ली। सबको कचौरी परोस दी लेकिन सिर्फ मां को नहीं दी। ये देखकर मनीषा ने कहा
” भाभी मेरा बच्चा तो अभी दो महीने का है, मैं कचोरी कैसे खाऊंगी। लेकिन आप मां को भी तो कचौरी दो”
तब भाभी ने तुनकते हुए कहा,
“मां जी यह सब नहीं खाती”
“भाभी आप खिलाओगे तो मां खाएगी ना। आपने परोसा ही नहीं तो कैसे खाएगी”
कहकर मनीषा ने अपनी प्लेट मां को दे दी।
“मैं अपने लिए दलिया या खिचड़ी बनाकर ले आती हूं”
कहकर मनीषा रसोई की तरफ जाने लगी। तो तान्या बीच में ही बोली,
” आपको दलिया खिचड़ी खानी है तो शौक से खाइए। पर मां जी कचौरी नहीं खा सकती”
“क्यों? कौन से शास्त्र में लिखा है कि विधवा औरत को सादा खाना ही खाना चाहिए”
बस इतना कहना था कि तान्या ने मनीषा को उक्त सारी बातें सुना दी। अपने भाई और मां को चुपचाप सुनते देखकर मनीषा की आंखों में आंसू आ गए।
पर तान्या का पेट तो उससे भी नहीं भरा। अपने हाथों को नचाते हुए बोली,
” आपको आना है इस घर में तो शांतिपूर्वक आईए। बेवजह मेरे काम में दखलअंदाजी करने की जरूरत नहीं है। अगर इतना ही शौक है अपनी मां को खिलाने, पिलाने, ओढ़ाने पहनाने का, तो अपने साथ ही ले जाइए। पर हमें बक्शो। यूं ही सब कहना और करना है तो आइंदा इस घर में आने की जरूरत नहीं है। और ना ही मुझे सिखाने की जरूरत है कि मुझे अपनी सास को कैसे रखना है “
तान्या की बात सुनकर मनीषा को गुस्सा आ गया। वो अपने बेटे को मां की गोद से लेते हुए बोली,
” ठीक है भाभी, जा रही हूं।‌ पापा के साथ-साथ इस घर के लोगों का स्वाभिमान भी खत्म हो चुका है। मुझे नहीं पता था कि पापा के साथ मेरा मायका खत्म हो गया”
” मनीषा कहां जा रही हो?”
अचानक जानकी जी ने कहा। ये सुनकर तान्या बोली,
” जाती है तो जाने दीजिए। मायके आकर कोई एहसान नहीं करती है ये।‌ और आपको इसे रोकने की कोई जरूरत नहीं है। आप जाइए अपने कमरे में”
” चुप कर बहु। बहुत ज्यादा बोल रही हो तुम। तू होती कौन है मुझ पर हुकुम में चलाने वाली। मैं चुपचाप बर्दाश्त करती हूं तो इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे बोलना नहीं आता है। मैं अपने घर में शांति रखने के लिए चुप रहती हूं। खबरदार जो मेरी बेटी को कुछ भी कहा तो”
“अच्छा! आज तो बेटी को देखकर जबान खुल गई। सारी जिम्मेदारी हम निभाए और यहां बेटी के लिए जबान खुल रही है। भूलिए मत, आप हमारे साथ रहती हो”
तान्या ने बेशर्मी से कहा।
” नहीं भूली हूं मैं, कुछ भी नहीं भूली हूं। पर बहु तू भूल गई है। ये घर मेरा है। और मैं तुम्हारे साथ नहीं, तुम मेरे साथ रहती हो। चाहे तो आज तुम्हें घर से निकाल सकती हूं”
“अच्छा! तो फिर रहेंगी किसके साथ? बताओ मुझे। कौन उठायेगा आपकी जिम्मेदारी “
” मेरी जिम्मेदारी मैं खुद उठा सकती हूं। मुझे तेरी जरूरत नहीं है। अपने स्वाभिमान को मार कर मैंने बहुत जी लिया। तुझे जाना है तो तू शौक से जा सकती है”
जानकी जी ने कहा तो तान्या मनन से बोली,
” आप खड़े-खड़े क्या सुन रहे हो? अपनी मां को समझाते क्यों नहीं कि अपनी बहू से पंगा लेना उन्हें भारी पड़ सकता है”
” मैं क्या समझाऊं? जब मैं तुम्हें नहीं समझा पाया तो अपनी मां को क्यों समझाऊं। वैसे मां सही कह रही है। वो आज हमें इस घर से निकाल सकती है। उनके पास इसका पूरा हक है। कानूनन ये हमें अपने घर से निकाल सकती है। और कल को प्रॉपर्टी अपनी बेटी के नाम भी कर सकती है। अब ये तुम पर निर्भर करता है कि तुम्हें किराए के घर में रहना है या नहीं। मैंने तुम्हें दोनों ऑप्शन दे दिए। अब तुम देख लो कि पंगा लेना किसको भारी पड़ेगा “
कहते हुए मनन ने भी हाथ खड़े कर दिए। इसके आगे तान्या कुछ कह नहीं पाई। आखिर मनन सही तो कह रहा था। प्रॉपर्टी हाथ से चली जाएगी तो बचेगा क्या। तो प्रॉपर्टी के लालच में ही सही, उसने चुप रहना ही ठीक समझा।
मौलिक व स्वरचित
✍️ लक्ष्मी कुमावत
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