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चीन समर्थक मालदीव के राष्ट्रपति की पार्टी ने संसदीय चुनाव में दो तिहाई से अधिक सीटें जीतीं, क्या भारत की मुश्किलें और बढ़ेंगीं?

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू की पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस संसदीय चुनाव में दो तिहाई से अधिक सीटें जीत ली हैं.

पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ये चुनाव उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था.

जानकार पीपुल्स नेशनल कांग्रेस की इस जीत को मुइज़्ज़ू की चीन समर्थक और भारत विरोधी नीतियों पर मुहर के तौर पर देख रहे हैं.

मुइज़्ज़ू की पार्टी ने मालदीव की 93 सीटों वाली मजलिस में दो तिहाई से अधिक सीटें जीत ली हैं.

अब तक 86 सीटों के नतीजे घोषित हो चुके हैं. इनमें से उनकी पार्टी ने 66 सीटें जीती हैं.

मुइज़्ज़ू की ये जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि पिछली संसद में उनकी पार्टी पीपुल्स नेशनल कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के पास सिर्फ़ आठ सीटें थीं.

इससे किसी भी बिल को पारित कराने में उन्हें मुश्किल आ रही थी.

मौजूदा संसद में पूर्व राष्ट्रपति और भारत समर्थक मोहम्मद सोलीह की पार्टी मालदिवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीएपी) का बहुमत है.

बहुमत में होने की वजह से एमडीपी ने पिछले दिनों मुइज़्ज़ू सरकार के तीन मंत्रियों की नियुक्ति रुकवा दी थी और कुछ खर्चों को मंजूर करने से भी इनकार कर दिया था.

अब बहुमत से ज्यादा सीटें मिलने पर मुइज़्ज़ू देश में चीन के निवेश से जुड़े फैसलों को लागू कर सकते हैं.

भारत के साथ रिश्तों में कड़वाहट
चुनाव में प्रमुख विपक्षी दल मालदिवियन डेमोक्रेटिक पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ रहा है. उसे एक दर्जन सीटें ही मिल पाई हैं.

हालांकि मालदीव की अर्थव्यवस्था की हालत ठीक नहीं है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उसको भारी कर्ज को लेकर चेतावनी दी है.

लेकिन अपने चुनावी वादे के मुताबिक़, भारतीय सैनिकों की वापस भेजने के फैसले को लागू करने से मुइज़्ज़ू के प्रति मालदीव के वोटरों में विश्वास बढ़ा है.

मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और मालदीव के रिश्ते काफी खराब हुए हैं .

भारत-मालदीव रिश्तों में दिखती दरार में चीन अपने लिए संभावनाएं तलाश रहा है ताकि वो इस क्षेत्र में अपनी पकड़ को मज़बूत कर पाए.

मुइज़्ज़ू ने कहा था कि उनके सत्ता में आते ही मालदीव में मौजूद भारतीय सेना के टेक्निकल स्टाफ वापस भेज दिए जाएंगे.

मुइज़्ज़ू ने कहा था, ”10 मई के बाद देश में कोई भी भारतीय सैनिक नहीं होगा, न तो वर्दी में और न ही सादे कपड़ों में. मैं यह बात विश्वास के साथ कहता हूँ कि भारतीय सेना इस देश में किसी भी तरह से नहीं होगी.”

चीन से करीबी भारत के लिए बड़ी चिंता
कुछ जानकारों ने आगाह किया है कि छोटा सा देश मालदीव एशिया की दो ताकतों, भारत और चीन के बीच में फँसने के जोखिम का सामना कर रहा है.

बीते कुछ सालों में चीन ने मालदीव को करोड़ों डॉलर का क़र्ज़ दिया है. इनमें से ज़्यादातर क़र्ज़ आर्थिक विकास और निर्माण क्षेत्र के लिए दिया गया है.

पिछले दिनों जब संसदीय चुनाव अभियान जोरों पर था तो मालदीव सरकार ने चीन को कई हाई प्रोफाइल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉन्ट्रैक्ट दिए थे.

चीन और मालदीव के संबंधों में ज़्यादा क़रीबी तब दिखी थी, जब मुइज़्ज़ू राष्ट्रपति बनने के बाद शी जिनपिंग के बुलावे पर चीन गए थे.

अब तक मालदीव के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत के दौरे पर आते रहे हैं. मगर मुइज़्ज़ू के मामले में ऐसा नहीं हुआ.

मुइज़्ज़ू तुर्की, यूएई, चीन के दौरे पर जा चुके हैं, मगर वो अब तक भारत नहीं आए हैं.

चीन से लौटने के बाद मुइज़्ज़ू ने कहा था- ‘हम छोटे देश हैं, इसका मतलब ये नहीं कि उन्हें हमें धौंस दिखाने का अधिकार है”.

मुइज़्ज़ू के इस बयान को भारत से जोड़कर देखा गया था. हालांकि मुइज़्ज़ू ने भारत का नाम नहीं लिया था.

क्या भारत की मुश्किलें और बढ़ेंगीं?

साल की शुरुआत में मालदीव सरकार और चीन के बीच सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समझौते ने भारत की भी चिंताएं बढ़ाई थीं.

मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि ये समझौते बिना किसी भुगतान के हुए हैं. हालांकि इस बारे में मालदीव सरकार और कोई जानकारी नहीं दी थी.

इसके बाद एक रैली में मुइज़्ज़ू ने कहा था कि चीन मालदीव को नॉन लीथल हथियार फ्री में मुहैया करवाएगा और साथ ही मालदीव के सुरक्षाबलों को ट्रेनिंग भी देगा.

अतीत में भारत और अमेरिका मालदीव की सेना को ट्रेनिंग देते रहे हैं.

मालदीव में राजनीतिक विशेषज्ञ अज़ीम ज़ाहिर ने बीबीसी से कहा था, ”ये अभूतपूर्व है. मालदीव ने पहली बार चीन के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं ताकि सैन्य सहयोग मुहैया करवाया जा सके.”

वो बोले थे, ”हम ये जानते थे कि मुइज़्ज़ू निवेश के लिए चीन के क़रीब जाएंगे. मगर वो इस हद तक चले जाएंगे, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.”

हालांकि चीन मालदीव में लंबे समय तक किसी सैन्य योजना की बात से इनकार करता है.

चेंगडू इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स थिंक टैंक के अध्यक्ष डॉ लॉन्ग शिंगचुन ने बीबीसी से कहा था, ”दो देशों के बीच ये सामान्य रिश्ते हैं. अगर चीन हिंद महासागर में अपनी मौजूदगी बेहतर करना चाहेगा तो उसके पास मालदीव से बेहतर विकल्प हैं.”

इंडिया फर्स्ट’ से ‘चीन फर्स्ट’ की नीति
मोहम्मद मुइज़्ज़ू को ‘चीन फर्स्ट’ नीति का समर्थक माना जाता है. हालांकि वो खु़द को कई बार ‘मालदीव फर्स्ट’ नीति का समर्थक बताते रहे हैं.

मालदीव में अतीत की सरकारों को ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति का समर्थक माना जाता रहा.

अपने चुनाव अभियान में मुइज़्ज़ू, तत्कालीन मोहम्मद सोलिह की सरकार को भारत के मुद्दे पर घेर रहे थे.

मुइज़्ज़ू कहते थे कि भारत से समझौतों की जानकारी बताई नहीं जाती. अब ऐसी ही आलोचना मुइज़्ज़ू की भी हो रही है.

इस साल फरवरी में मुइज़्ज़ू प्रशासन ने एक चीनी रिसर्च जहाज़ शियांग यांग हॉन्ह 3 को माले में रुकने की अनुमति दी थी. मालदीव के इस कदम पर भारत की सहमति नहीं थी.

मालदीव ने इस जहाज़ के रुकने की वजह सेना से जुड़ी नहीं बताई थी.

हालांकि भारतीय विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं दिखते हैं. इन विशेषज्ञों का मानना है कि जहाज के जुटाए डेटा का बाद में चीनी सेना इस्तेमाल कर सकती है.

मुइज़्ज़ू भले ही भारत से दूरियां बढ़ाते हुए दिख रहे हैं. मगर भारत ऐतिहासिक तौर पर मालदीव की मदद करता आया है.

मालदीव की अर्थव्यवस्था में पर्यटन की अहम हिस्सेदारी रहती है. मालदीव जाने वालों में भारतीयों की तादाद सबसे ज़्यादा रहती है.

मालदीव भारत पर दवाइयों, खाने की सामग्री और निर्माण से जुड़ी चीजों के लिए निर्भर रहता है.

कोरोना के बाद मालदीव में वैक्सीन सबसे ज़्यादा भारत की ओर से भेजी गई थीं.

इसी साल की शुरुआत में मुइज़्ज़ू के मंत्रियों ने जब पीएम मोदी की लक्षद्वीप की तस्वीरों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, तब भारत में इस पर काफ़ी आक्रामक रवैया देखने को मिला था.

कुछ टूरिज्म कंपनियों ने मालदीव का बायकॉट किए जाने की बात कही थी.

इस विवाद के बाद के दो महीनों में मालदीव जाने वालों की संख्या क़रीब चार लाख रही थी. इन पर्यटकों में 13 फ़ीसदी चीन से रहे. भारत विवाद से पहले नंबर एक पर था, मगर अब वो पांचवें नंबर पर आ गया है.

मोहम्मद मुइज़्ज़ू के इस रुख़ के कारण उन्हें देश में भी आलोचना का सामना करना पड़ा था.

भारत और मालदीव संबंधों में आए बदलाव
मुइज़्ज़ू की संसदीय चुनावों में जीत ऐसे वक़्त में हुई है, जब बीते दिनों मालदीव और भारत के संबंधों में कुछ बर्फ पिघलती हुई दिखी है.

9-10 अप्रैल को भारतीय पर्यटकों को लुभाने के लिए मालदीव की एक प्रमुख टूरिज्म संस्था ने भारतीय शहरों में रोड शो आयोजित करने की घोषणा की.

इस रोड शो का मतलब यह है कि मालदीव की टूरिज्म से जुड़ी यह संस्था अलग-अलग शहरों में जाकर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शो आयोजित करेगी, जिसमें लोगों को बुलाया जाएगा.

हाल के दिनों में मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट आई थी.

पीएम मोदी पर की टिप्पणी के बाद भारत की कुछ निजी पर्यटन कंपनियों ने भी मालदीव की बुकिंग बंद करने की बातें कही थीं.

मालदीव पर्यटन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पर्यटक देश के तौर पर भारत का स्थान लुढ़कते हुए जनवरी, 2024 में पांचवें नंबर पर आ गया था.

आंकड़ों के मुताबिक जनवरी, 2023 में मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या 17,029 थी, जो जनवरी 2024 में घटकर 12,792 रह गई.

वहीं पीएम मोदी ने भी 10 अप्रैल को मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्जू को खास संदेश भेजा था.

पीएम मोदी ने कहा था- ”हम पारंपरिक उत्साह के साथ ईद-उल-फितर मना रहे हैं, ऐसे में दुनिया भर के लोग करुणा, भाईचारे और एकजुटता के उन मूल्यों को याद कर रहे हैं, जो एक शांतिपूर्ण और समावेशी दुनिया के निर्माण के लिए जरूरी हैं और इसकी हम इच्छा रखते हैं.”

इसके अलावा भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने मालदीव के लिए कुछ चीजों को निर्यात करने की सीमा तय की है. इनमें अंडे, आलू, प्याज, चावल, गेंहू का आटा, चीनी और दाल शामिल हैं.