

Related Articles
कभी तक़दीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला
मधुसूदन उपाध्याय =============== कभी तकदीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला _____________________________________ इस शीर्षक से शकील बंदायूनी की एक गजल के एक मकते को आधार बना कर यह लिख रहा हूँ। शुद्ध मन से तथा ईश्वर को साक्षी रखकर । जो लोग भाग्य नहीं मानते उनके लिए यह सब कुछ एक बार सोचने का विषय […]
काश! मेरे भी पापा होते….
लक्ष्मी कान्त पाण्डेय =========== यश पैर पटकता हुआ रूम से निकला और अपने पापा की कार में पिछली सीट पर जाकर बैठ गया. दीपक और उनकी पत्नी उदास से कार में बैठे थे… क्योंकि यश की प्रतिक्रिया देखकर जाने का मन नहीं था, पर बचपन के दोस्त शेखर ने अपने बर्थडे पर सपरिवार बुलाया था. […]
वो महिला स्कूल आई तो देखा, ताला लगा हुआ था…
लक्ष्मी कान्त पाण्डेय ============= करीब 32 साल पुरानी बात है, मेरे घर के बाजू में एक बुजुर्ग आंटी अकेले रहती थीं, वो शासकीय सहायता से गरीब बच्चों के लिऐ स्कूल चलाती थीं, जो आर्थिक योगदान उन्हें मिलता था उससे वो अपना जीवन यापन करती थीं बच्चो को खाने के नाम पर सिर्फ़ लकड़ियों से मार […]