धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-41 : क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किस पर उतरते है…?!

कुरआने मजीद का सूरए नम्ल कुछ ईश्वरीय दूतों की जीवनियों और असत्य से उनके संघर्षों पर आधारित है।

कुरआन में इस प्रकार की घटनाओं के उल्लेख का उद्देश्य मक्के के उन मुसलमानों को सांत्वना देना था जो उस समय इस नगर में अल्पसंख्यक थे। कुरआने मजीद इसी प्रकार हठधर्मी नास्तिकों को यह बताता है कि ईश्वर की अवज्ञा करने वालों का अंजाम क्या होता है ताकि शायद वह अपने किये पर पछताएं और अचेतना की नींद से जाग जाएं।

सूरए नम्ल में हज़रत सुलैमान और सबा की महारानी के जीवन के बारे में कुछ बताने के बाद ईश्वर के दूत, हज़रत सालेह अलैहिस्सलाम के जीवन की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया गया है। हज़रत सालेह का संबंध समूद नामक एक जाति से था और ईश्वर ने उन्हें अपना दूत बना कर, उन्ही की जाति के पास भेजा था ताकि वह उनका मार्गदर्शन करें और बुराइयों से उन्हें रोकें।

हज़रत सालेह ने समूद जाति को ईश्वर की उपासना पर तैयार करने के लिए तरह तरह से समझाया और बारम्बार उनसे कहा कि वह एक ईश्वर की उपासना करें और उसके साथ किसी अन्य को भागीदार न बनाएं।

वास्तव में ईश्वर के सभी दूतों ने एक ईश्वर की उपासना का आह्वान किया है किंतु समूद जाति के लोग एक ईश्वर को नहीं मानते थे और भांति भांति की चीज़ों की पूजा करते थे। इस लिए उन्होंने एक ईश्वर की उपासना के हज़रत सालेह के निमंत्रण को ठुकरा दिया। समूद जाति में 9 लोग सरदार समझे जाते थे जो अन्य लोगों से कई गुना अधिक बुराइयों में डूबे हुए थे। इनमें से हर सरदार के कुछ समर्थक थे और उनका अपना साम्राज्य था किंतु वह सब बुराइयों और अत्याचार तथा पापों में एक समान थे और उनमें हर प्रकार की बुराइ मौजूद थी। यह लोग किसी भी दशा में अपने कुकर्मों से हाथ खींचने पर तैयार नहीं थे यही वजह है कि हज़रत सालेह के प्रचार से उन्हें समस्या होने लगी और उन सब ने मिल कर, हज़रत सालेह की हत्या की योजना तैयार की और एक दूसरे से सहयोग करने की क़सम खायी और तय किया कि रात में हज़रत सालेह के घर पर हमला करके उन्हें और उनके पूरे परिवार को खत्म कर दिया जाए और जब हज़रत सालेह के परिवार के अन्य लोग, उनकी हत्या के बारे में पूछें तो उनकी हत्या में किसी भी प्रकार से लिप्त होने और हत्या से अनभिज्ञता प्रकट की जाए।

नगर के बाहर एक पहाड़ था जिसमें एक गुफा भी थी , हज़रत सालेह कभी कभी ईश्वर की उपासना के लिए रात में उस गुफा में जाया करते थे और अपने ईश्वर की उपासना करते थे। उनके शत्रुओं ने उनकी हत्या के लिए यह तय किया कि छुप कर उस पहाड़ पर पहुंचा जाए और पत्थरों के पीछे हज़रत सालेह के आने का इंतेज़ार किया जाए और जैसे ही वह वहां पहुंचे उन्हें मार डाला जाए और फिर सब लोग अपने अपने घर वापस चले जाएं किंतु ईश्वर ने उनकी योजना पर पानी फेर दिया क्योंकि जब वह पत्थरों के पीछे छिपे, हज़रत सालेह का इंतेज़ार कर रहे थे उसी समय पहाड़ से एक बड़ा पत्थर गिरा और उन सब को अपने साथ समेट ले गया।

इस संदर्भ में कुरआने मजीद में कहा गया हैः उन लोगों ने बड़ा उपाय किया और हम ने भी बड़ा उपाय किया किंतु उन्हें पता नहीं चल पाया, ध्यान दो कि उनके षडयंत्र का अंजाम क्या हुआ? हमने उनका और उनकी जाति का विनाश कर दिया ! तो देखो यह उनके घर हैं जो उनके अन्याय के कारण खाली हो गये हैं इस दंड में स्पष्ट चिन्ह है ज्ञान व चेतना रखने वालों के लिए, और हम ने ईमान लाने वाले और ईश्वर से डरने वालों की रक्षा की।

सूरए नम्ल में आयत नंबर ६० और उसके बाद की आयतों में ईश्वर की कृपाओं के १२ उदाहरणों की ओर संकेत किया गया है। और इसके लिए आयत नंबर ६४ तक प्रश्न की शैली अपनायी गयी है और उसका ठोस उत्तर भी दिया गया है। सब से पहले आकाश व धरती की रचना, वर्षा और उसके लाभों का उल्लेख किया गया और कहा गया हैः

कौन है जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया? और तुम्हारे लिए आकाश से पानी भेजा और उनसे सुंदर व मनमोहक बाग उगाए। यह तुम्हारा काम नहीं है कि तुम पेड़ उगा लो या ईश्वर के अलावा कोई और पूज्य है? नहीं बल्कि वह लोग पथभ्रष्ट हैं।

यदि हम गौर करें तो पता चलेगा कि इन्सान का काम केवल बीज बोना या पौधा लगाना और उसकी सिंचाई करना होता है किंतु बीज में जो जान डाला है और सूरज की किरनों, हवा , वर्षा और मिट्टी के कणों को बीज को पौधा बनाने का जो आदेश देता है वह ईश्वर है। यह एसी वास्तविकता है जिसका कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। यदि हम इस सृष्टि की बारीकियों, जीव जन्तुओं की रचना बल्कि केवल एक फूल की संरचना और उसके सुन्दर रंगों पर ध्यान दें तो भी हम उसके रचयता की महानता को भलीभांति परिचित हो जाएंगे।

इसके बाद की आयतें धरती और उसे मनुष्य के लिए शांति का स्थान बनाए जाने का उल्लेख करते हुए कहती हैः कौन है जिसने धरती को ठिकाना बनाया और उसमें नदियां बहायीं और उसके लिए स्थिर पहाड़ बनाए और इसी प्रकार दो मीठे और खारे पानियों के मध्य पर्दा डाला ताकि वह एक दूसरे में मिलने न पाएं क्या, इन प्रतिमाओं ने ऐसी अदभुत और विचित्र व्यवस्था बनायी है?

एक अन्य आयत में समस्याओं के समाधान और दुआओं के क़ुबूल होने का उल्लेख किया गया है वह भी उस समय जब मनुष्य के सामने सारे दरवाज़े बंद हो चुके होते हैं और हर ओर से उस पर निराशा छायी होती है तो इस दशा में उसकी समस्या का निवारण यदि कोई कर सकता है तो वह ईश्वर ही है। आयत नंबर बासठ में कहा जाता है वह कौन है जो परेशान हाल की पुकार का जवाब देता है और समस्याओं का निवारण करता है?

इसके बाद हिदायत और मार्गदर्शन के मामले पर बात होती है और कहा जाता है कि कौन है जो तुम्हें धरती और सागर के अंधकारों में मार्ग दिखाता है? और कौन है जो पवन को शुभसूचना देने वाले के रूप में अपनी कृपा की बरसात से पहले भेजता है?

आगे कहा गया हैः कौन है जो पहले रचना करता है और फिर उसे क़यामत के दिन वापस लौटाता है? और कौन है जो तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी देता है? क्या ईश्वर के अलावा कोई पूज्य है?

इन आयतों में ईश्वरीय दूत से कहा जाता है कि यदि लोग सामने नज़र आने वाले सत्य को स्वीकार नहीं करते और तुम्हारी बातें उन को प्रभावित नहीं करतीं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि तुम मृत लोगों को अपनी बात नहीं सुना सकते! वह लोग दिखने में जीवित हैं किंतु हठधर्मी और पापों पर आग्रह के कारण उनकी चिंतन शक्ति खत्म हो चुकी है और वह अंधे और बहरे हो गये हैं।

सूरए नम्ल की आयत नंबर 88 में प्रकृति के अजूबे की ओर संकेत किया गया है और कहा गया है कि और तुम पहाड़ों को देखते हो तो समझते हो कि वह स्थिर और ठहरे हुए हैं जबकि वह बादल की तरह गतिशील हैं यह ईश्वर की रचना है कि जिसने हर चीज़ को मज़बूती से बनाया और उसे तुम्हारे कामों का ज्ञान है।

इस आयत में प्रकृति के इस अजूबे का वर्णन किया गया है। इस आयत में पृथ्वी की गतिशीलता को जिसे हम महसूस नहीं कर पाते बताया गया है और यह कहा गया है कि और तुम समझते हो कि वह स्थिर और ठहरे हुए हैं जबकि वह बादल की तरह गतिशील हैं ।

निश्चित रूप से धरती पर उगे पहाड़, धरती की गतिशीलता के बिना हिल भी नहीं सकते इस प्रकार इस आयत का अर्थ यह होगा कि धरती तेज़ी से गतिशील है जिस प्रकार से बादल चलते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार धरती अपने अपनी जगह पर 1670 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूमती है जबकि सूर्य के गिर्द चक्कर लगाने की उसकी गति इससे भी तेज़ है किंतु सवाल यह है कि कुरआने मजीद ने क्यों पहाड़ों की बात की है? शायद इसका कारण यह हो कि पहाड़, अपने भारी भरकम रूप के कारण ईश्वर की शक्ति के प्रतीक में समझे जाते हैं।

प्रत्येक दशा में यह आयत कुरआने मजीद के वैज्ञानिक चमत्कारों में गिनी जाती है क्योंकि वैज्ञानिकों को पहली बार 16 वीं शताब्दी के अंत में और 17वीं शताब्दी के आरंभ में पृथ्वी के गतिशील होने के बारे में पता चला किंतु कुरआने मजीद ने उससे लगभग एक हज़ार वर्ष पहले ही इस वास्तविकता से पर्दा हटा दिया था और पृथ्वी की गतिशीलता को ईश्वर के एक होने की निशानी के रूप में बताया है।

सूरए नम्ल की अंतिम आयतों में ईश्वरीय दूत को इस प्रकार से संबोधित किया गया है।

उनसे कह दो कि मैं इस नगर में ईश्वरीय दूत हूं जिसने उसे पवित्रता दी है और मुझे उसकी उपासना का आदेश मिला है सब कुछ केवल उसके लिए है और मुझे आदेश मिला है कि मैं स्वीकार करने वालों में रहूं।

इसके बाद कहा जाता है कि इसी प्रकार मुझे आदेश मिला है कि कुरआन पढ़ूं और उसके चिराग से रौशनी लूं तो फिर जिसको रास्ता नज़र आया उसे स्वंय अपने लिए रास्ता नज़र आया और जो पथभ्रष्ट हो गया वह अपने लिए पथभ्रष्ट हुआ और कह दो कि मैं तो केवल चेतावनी देने वाला हूं।

इस सूरे की आखिरी आयत में ईश्वरीय दूत से कहा जाता है कि इतनी कृपा के कारण वह ईश्वर का गुणगान करेः कहो, गुणगान व प्रशंसा ईश्वर से विशेष है।