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“कौन कहता है कि इंसानियत मर चुकी है इस दौर में……….”
दफ़्तर से अपना काम ख़तम करने के बाद जब अपने घर के लिए गुप्ता जी निकलने लगे तो उस समय उनकी घड़ी में तक़रीबन रात के 9 बज रहे थे । हालांकि रोज़ गुप्ता जी शाम 7 बजे के लगभग अपने ऑफिस से निकल जाया करते थे लेकिन आज काम के दवाब के कारण कुछ […]
ई हमार भारतीय संस्कृति को, का होई गवा बा——लेख-जयचंद प्रजापति
जयचंद प्रजापति =========== व्यंग्यात्मक लेख——— ई हमार भारतीय संस्कृति को, का होई गवा बा ——————– हम इलाहाबाद के सिविल लाइन में थोड़ा भारतीय संस्कृति का दर्शन करने के इरादे से साइकिल से निकले तभी एक लेडीस फ्राक में सड़क पर घूम रही थी। हम जिज्ञासावश स्थानीय लोगों से पूछा- ‘ई का है ‘ कुल लोग […]
माओ त्से-तुंग की एक कविता
Kavita Krishnapallavi ================ जन्मदिन ( 26 दिसंबर ) के अवसर पर माओ त्से-तुंग की एक कविता चिङकाङशान पर फिर से चढ़ते हुए (मई 1965) बहुत दिनों से आकांक्षा रही है बादलों को छूने की और आज फिर से चढ़ रहा हूं चिङकाङशान पर। फिर से अपने उसी पुराने ठिकाने को देखने की गरज से आता […]