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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की बातचीत में कश्मीर का मुद्दा उठा : रिपोर्ट

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अपनी सऊदी अरब यात्रा के दौरान क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाक़ात की है.

मोहम्मद बिन सलमान और शहबाज़ शरीफ़ की बैठक के बाद दोनों देशों की ओर से साझा बयान जारी किया गया. ये बयान दोनों नेताओं की बैठक के एक दिन बाद जारी किया गया है.

इस बयान के मुताबिक़, शरीफ़ और सलमान की बातचीत में कश्मीर का मुद्दा भी उठा.

बयान में कहा गया है, “दोनों पक्षों को पुराने आपसी मसलों को बातचीत के ज़रिए सुलझाना चाहिए, ख़ासकर जम्मू और कश्मीर विवाद ताकि इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाई जा सके.”

इस साझा बयान में पाकिस्तान और सऊदी अरब ने फ़लस्तीन जैसे कई और मुद्दों का भी ज़िक्र किया है. पाकिस्तान-सऊदी अरब के साझा बयान में कश्मीर के मसले पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव का ज़िक्र नहीं किया गया है.

सऊदी अरब का रुख़

अतीत में पाकिस्तान कश्मीर मसले का समाधान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के ज़रिए करवाने की बात करता रहा है.

वहीं, बीते कुछ वक़्त में सऊदी अरब ने कश्मीर के मसले पर नरम रुख़ ही अपनाया है. सऊदी अरब कश्मीर के मसले को भारत का अंदरूनी मामला बताता रहा है.

हालांकि साल 2016 में सऊदी अरब ने कश्मीर के मुद्दे पर कश्मीरियों के आत्मनिर्णय की वकालत की थी. सऊदी अरब का ये बयान पीएम मोदी के दौरे के फ़ौरन बाद आया था.

मगर इसके बाद के सालों में सऊदी अरब का रुख़ कश्मीर पर भारत के प्रति आक्रामक नहीं रहा है.

सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच कश्मीर के अलावा कई और मुद्दों पर भी बात हुई है. इसमें ग़ज़ा पर इसराइल की सैन्य कार्रवाई को रोकने की अपील भी की गई.

पाकिस्तान को सऊदी से क्या मिला?

शहबाज़ शरीफ़ और मोहम्मद बिन सलमान की मुलाक़ात के बाद जारी बयान में बताया गया कि सऊदी अरब पाकिस्तान की पांच बिलियन डॉलर के निवेश पैकेज से मदद करेगा.

पाकिस्तानी अख़बार ‘डॉन’ की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते साल जनवरी में क्राउन प्रिंस ने सऊदी डेवलपमेंट बैंक से पाकिस्तान की पांच बिलियन डॉलर से मदद करने को लेकर विचार करने को कहा था.

सितंबर, 2023 में तत्कालीन पीएम अनवर उल हक़ काकर ने कहा था कि अगले कुछ सालों में सऊदी अरब 25 बिलियन डॉलर पाकिस्तान में निवेश करेगा.

पाकिस्तान बीते कुछ सालों में आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियों का सामना कर रहा है. हाल ही में शहबाज़ शरीफ़ फिर से पाकिस्तान के पीएम बने हैं.

पीएम बनने के बाद शहबाज़ शरीफ़ पहली बार सऊदी अरब के दौरे पर गए थे.

कश्मीर: सऊदी अरब, पाकिस्तान और भारत

शरीफ़ ने इस दौरान मोहम्मद बिन सलमान को पाकिस्तान दौरे पर बुलाया गया. बयान के मुताबिक़, मोहम्मद बिन सलमान ने इस न्योते को स्वीकार कर लिया है.

मगर इस मुलाक़ात की भारत में चर्चा सबसे ज़्यादा कश्मीर पर दिए बयान को लेकर हो रही है.

सऊदी अरब पाकिस्तान और भारत दोनों का मित्र देश है. मगर कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान और सऊदी अरब के सुर बीते कुछ वक़्त में अलग नज़र आए हैं.

कश्मीर एक ऐसा मसला रहा है, जिसके कारण सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच भी दूरियां देखने को मिली हैं.

जब साल 2019 में कश्मीर से अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया गया था, तब पाकिस्तान ने खुलकर भारत की आलोचना की थी और इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिश की थी.

सऊदी अरब ने अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर चिंता तो ज़ाहिर की थी लेकिन इसे भारत का अंदरूनी मामला बताया था.

तब सऊदी अरब के नरम रुख़ पर पाकिस्तान की ओर से नाराज़गी व्यक्त की गई थी.

साल 2020 में अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को हटाए जाने की पहली सालगिरह के मौक़े पर तत्कालीन पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने मायूसी ज़ाहिर की थी.

शाह महमूद कुरैशी ने कहा था, “पाकिस्तान का मुसलमान सऊदी अरब के लिए लड़ने मरने को तैयार है. वो आपसे कह रहा है कि कश्मीर के मसले पर उस नेतृत्व की भूमिका निभाएं, जो मुसलमान आपसे उम्मीद कर रहे हैं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो मैं इमरान ख़ान से कहूंगा कि हमें आगे बढ़ना होगा, सऊदी अरब के साथ या उसके बिना.”

क़ुरैशी ने अगस्त, 2020 में इस्लामिक देशों के संगठन ‘ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक कॉपरेशन’ यानी ‘ओआईसी’ की भी आलोचना की थी.

भारत कश्मीर को अपना अभिन्न अंग बताता रहा है. भारत का कहना है कि कश्मीर देश का अभिन्न अंग था, है और रहेगा.

इसके अलावा भारत कश्मीर के मसले पर आपसी बातचीत के ज़रिए और पाकिस्तान से आतंकवाद को पनाह ना दिए जाने के साथ ही वार्ता किए जाने की बात करता रहा है.

वहीं, पाकिस्तान कई मंचों पर कश्मीर का मसला सुलझाने का मुद्दा उठा चुका है. संयुक्त राष्ट्र में भी पाकिस्तान ये मसला उठाता रहा है और ओआईसी पर भी दबाव बनाता रहा है.

सऊदी अरब की ओर से साल 2016 में जो आत्मनिर्णय की बात कही गई थी, वो भी ओआईसी के मंच पर ही कही गई थी.

भारत कश्मीर के मुद्दे को साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लेकर गया था. तब 21 अप्रैल, 1948 को प्रस्ताव संख्या 47 में जनमत संग्रह पर सहमति बनी थी.

प्रस्ताव में कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान दोनों जम्मू और कश्मीर पर नियंत्रण का मुद्दा जनमत संग्रह के स्वतंत्र और निष्पक्ष लोकतांत्रित तरीक़े से तय होना चाहिए.

कश्मीर पर ओआईसी और सऊदी अरब का रुख़

ओआईसी मुस्लिम देशों का संगठन है. 57 सदस्यों के इस संगठन में सऊदी अरब की अहम भूमिका है. कहा जाता है कि इस संगठन के फ़ैसले सऊदी अरब की मर्ज़ी के बगैर नहीं हो सकते.

साल 2020 में कश्मीर के मसले पर ओआईसी के कॉन्टैक्ट ग्रुप के विदेश मंत्रियों की आपातकालीन बैठक बुलाई गई थी.

इस बैठक के बाद कश्मीर के मसले पर कहा गया था, “भारत सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर पर जो फ़ैसला किया है और नए डोमिसाइल नियम लागू किए गए हैं, वो संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव और अंतरराष्ट्रीय क़ानून- जिसमें चौथा जिनेवा कंवेंशन भी शामिल है- उसका उल्लंघन है.”

ओआईसी ने इस कदम को संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को मानने की भारत की प्रतिबद्धता का उल्लंघन बताया था.

इसी बैठक में संयुक्त राष्ट्र की उन दो रिपोर्टों का स्वागत किया गया था, जिसमें कहा गया था कि कश्मीर में लोगों के मानवाधिकार का व्यवस्थित तरीक़े से हनन किया गया.

कश्मीर के मुद्दे पर मई 2023 में भी सऊदी अरब का अलग रुख देखने को मिला था.

तब कश्मीर में जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक में चीन, तुर्की, पाकिस्तान के अलावा सऊदी अरब ने भी शामिल होने से मना कर दिया था.

सऊदी अरब के इस फ़ैसले के बारे में तब जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ा चुके कश्मीर मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर अमिताभ मट्टू ने बीबीसी से बात की थी.

प्रोफ़ेसर अमिताभ मट्टू ने कहा था, “सऊदी अरब ने बीते सालों में ये बताने की कोशिश की है कि वो किसी गुट में नहीं है. सऊदी अरब यह संदेश देना चाहता है कि वो रणनीतिक स्वायत्ता और राजनीतिक व्यवहारिकता की तरफ़ जा रहा है और उसका अपना राष्ट्रीय हित सबसे महत्वपूर्ण है.”

प्रोफ़ेसर मट्टू की राय में, “सऊदी अरब के श्रीनगर की बैठक में शामिल नहीं होने को पाकिस्तान और चीन से जोड़कर देखने की बजाय इस संदर्भ में देखना चाहिए.”

साल 2020 में सऊदी अरब ने 20 रियाल का नोट जारी किया था. इस नोट में विश्व के नक्शे में कश्मीर को भारत का हिस्सा नहीं बताया गया था.

तब भारत के विदेश मंत्रालय ने इस पर आपत्ति जताते हुए सऊदी अरब से कदम उठाने को कहा था.

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो जी-20 अध्यक्षता के दौरान जारी किए इस नोट को बाद में सऊदी अरब ने सुधार के साथ जारी किया था.

जानकारों का कहना है कि हाल के सालों में भारत और सऊदी अरब के संबंध बेहतर हुए हैं.