धर्म

पवित्र क़ुरआन पार्ट-39 : क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किस पर उतरते है…?!

सूरए शोअरा, पवित्र क़ुरआन का 26वां सूरा है।

इसमें 227 आयते हैं। सूरए शोअरा की 4 आयतों के अतिरिक्त इसकी सारी आयतें पवित्र नगर मक्के में नाज़िल हुईं। आयतों की संख्या की दृष्टि से यह सूरए बक़रा के बाद क़ुरआन का दूसरा सबसे बड़ा सूरा है।

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अपने पूरे जीवन लोगों के मोक्ष और उनके कल्याण के लिए अथक प्रयास किये। उन्होंने अपने पूरे जीवन, लोगों से एकेश्वरवाद का आह्वान किया और उनको अनेकेश्वरवाद से रोका। जब वे यह देखते थे कि कुछ लोग पवित्र क़ुरआन जैसे मार्गदर्शक के होने के बावजूद इस पवित्र ईश्वरीय स्रोत से लाभान्वित नहीं होते और ईमान नहीं लाते तो वे बड़े दुखी होते थे। ऐसे में ईश्वर सूरए शोअरा की तीसरी आयत के माध्यम से उन्हें सांत्वना देते हुए कहता हैः शायद इसपर कि वे ईमान नहीं लाते, तुम अपने प्राण ही खो बैठोगे। बाद में ईश्वर कहता है कि यदि हम चाहें तो उनपर आकाश से एक निशानी उतार दें। फिर उनकी गर्दनें उसके आगे झुकी रह जाएँ। अर्थात ईश्वर यदि चाहे तो आकाश से उनके लिए चमत्कार या कोई निशानी भेजे ताकि लोग उसके सामने नतमस्तक हो जाएं किंतु इस प्रकार का ईमान, महत्वहीन है। महत्वपूर्ण बात यह है कि लोग, स्वेच्छा से ईश्वर पर ईमान लाएं और सच्चाई को स्वीकार करें।

ईश्वर की पहचान के बहुत से मार्ग हैं जिनमे सर्वोत्तम मार्ग, सृष्टि में चिंतन-मनन करना है। ईश्वर की निशानियों में से एक, वनस्पतियों में नर और मादा का पाया जाना है। सूरए शोअरा की आयत संख्या सात में ईश्वर कहता हैः क्या उन्होंने धरती को नहीं देखा कि हमने उसमें कितने ही प्रकार की अच्छी चीज़ें पैदा की है?

विगत में मानव यह जानता था कि कुछ वनस्पतियों में नर और मादा पाए जाते हैं किंतु 18वीं शताब्दी में मानव को इस वास्तविकता का ज्ञान हुआ कि वनस्पतियों में भी नर और मादा, सामान्य रूप में पाए जाते हैं।

सूरए शोअरा ने इसी प्रकार से सात महान ईश्वरीय दूतों के जीवन की कहानी और मानवता के मार्गदर्शन के लिए उनके अथक प्रयासों का उल्लेख किया है। इस सूरे में अनेकेश्वरवादियों की ज़िद और उनके व्यवहार का भी उल्लेख मिलता है। ईश्वरीय दूतों की जीवनी, मानवजाति के लिए पाठ है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि ईश्वरीय दूतों की जीवनी, हमारे लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगी। पवित्र क़ुरआन इन महान ईश्वरीय दूतों के जीवन का उल्लेख करके बाद वाले दूतों और ईश्वर के मानने वालों को आश्वस्त करता है कि ईश्वर के मार्ग मे कठिनाइयां भी सहन करनी पड़ती हैं और इस प्रकार की घटनाएं इतिहास में भरी पड़ी हैं।

ईश्वरीय दूतों से संबन्धित आयतें उस समय नाज़िल हुईं कि जब, मुसलमान अल्पसंख्या में थे और उनके शत्रु बहुत शक्तिशाली थे। ईश्वर, पिछली क़ौमों या जातियों की कहानी इसलिए बताता है ताकि मुसलमान यह समझ जाएं कि अत्याचारियों के सशक्त होने और मुसलमानों के कमज़ोर होने के बावजूद उन्हें पराजय से डरना नहीं चाहिए बल्कि, अपनी समस्त शक्ति के साथ उनका मुक़ाबला करना चाहिए। सूरए शोअरा में महान ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा के जीवन की विभिन्न घटनाओं का उल्लेख किया गया है जिसमें फ़िरऔन के साथ उनके मुक़ाबले और फ़िरऔन के डूबकर मर जाने की घटना का भी उल्लेख मिलता है।

ईश्वरीय दूतों की कहानियों में उल्लेखनीय बिंदु, मानव जाति के प्रशिक्षण के आयाम हैं। उनके निमंत्रण का उद्देश्य, अपने भीतर ईश्वरीय भय उत्पन्न करना और न्याय की स्थापना है। ईश्वरीय दूतों की कहानियों में पैग़म्बरों के दायित्व और इस दायित्व के बदले किसी भी प्रकार का बदला न लेने पर बल दिया गया है।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की कहानी में फ़िरऔन उसके समर्थकों के अत्याचारों की ओर संकेत किया गया है। इसमें बताया गया है कि फ़िरऔन ने किसी प्रकार से अपने काल में लोगों पर अत्याचार किये। हूद जाति के बारे में बताया गया है कि उसमें घमण्ड आ गया था और वह मायामोह के जाल में फंस गई थी। सालेह नाम की जाति की ख़राबी यह थी कि वे विलासितापूर्ण जीवन के आदी हो गए थे। लूत जाति में यह बुराई पाई जाती थी कि उसके लोग नैतिक पतन का शिकार होकर समलैंगिक हो गए थे। शोऐब जाति के लोग धन-संपत्ति एकत्रित करने के कारण कम तौला करते थे और चीज़ों को बेचने में धोखा देते थे। ईश्वरीय दूतों ने अपने काल में इन समस्त प्रकार की बुराइयों का डटकर सामना किया। इसके बावजूद उनके काल के बहुत से लोग बुराइयों के मार्ग पर चल पड़ें और उन्होंने ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया। यहां पर यह बताना आवश्यक है कि जिन लोगों ने सच को झुठलाया उन्हें ईश्वरीय प्रकोप का सामना करना पड़ा। शोऐब, लूत, सालेह और हूद जातियां, भूकंपों और बिजली के गिरने से समाप्त हो गईं जबकि कुछ जातियां, तूफ़ान और भीषण बाढ़ के कारण काल के गाल में समा गईं।

सूरए शोअरा की आयत संख्या 213 के बाद की कुछ आयतों में ईश्वर, अपने दूतों के कार्यक्रमों को निर्धारित करता है। सर्वप्रथम वह अपने दूतों को एकेश्वरवाद पर पक्की आस्था का निमंत्रण देता है। एकेश्वरवाद वह विषय है जो समस्त ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण का आधार है। हे पैग़म्बरः अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य को न पुकारना, अन्यथा तुम भी ईश्वरीय प्रकोप का शिकार बनोगे। इसके बाद वह अपने दूतों के कार्यक्रम के अगले चरण का उल्लेख करते हुए कहता है कि अपने निकटतम रिश्तेदारों को सचेत करो।

इस प्रकार ईश्वर, अपने दूतों से चाहता है कि वे अपने परिजनों को अनेकेश्वरवाद और ईश्वर के संदेश की अवहेलना से सुरक्षित रखें। इसके बाद ईश्वर लोगों को संबोधित करते हुए कहता है कि और जो ईमानवाले तुम्हारे अनुयायी हो गए है, उनके लिए अपनी भुजाएँ बिछाए रखो, किन्तु यदि वे तुम्हारी अवज्ञा करें तो उनसे कह दो कि जो कुछ तुम करते हो, उसकी ज़िम्मेदारी से मैं बरी हूँ।

अंततः वह पैग़म्बरों से चाहता है कि वे ईश्वर पर भरोसा करें। इसका अर्थ यह है कि विरोध, तुमको निराश न कर दे या अपने अनुयाइयों की संख्या में कमी, तुम्हारे संकल्पों में कंपन उत्पन्न न कर दे क्योंकि तुमने जिस पर भरोसा किया है वह कृपालु एवं अजेय, ईश्वर है।

बेअसत अर्थात ईश्वर की ओर से औपचारिक रूप में पैग़म्बर निर्धारित किये जाने के तीसरे साल, हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम को आदेश मिला कि वे अपने निकट परिजनों को इस्लाम का निमंत्रण दें। उन्होंने अपने परिजनों को अबूतालिब के घर निमंत्रित किया। खाना खाने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि मैं तुम्हारे लिए लोक-परलोक की भलाइयां लाया हूं। ईश्वर ने मुझको इस्लाम का निमंत्रण देने का आदेश दिया है। तुममे कौन है जो इस कार्य में मेरी सहायत करे ताकि वह मेरे बाद मेरा उत्तराधिकारी बने। वहां पर मौजूद लोग चुप बैठे रहे। उपस्थित लोगों में से केवल हज़रत अली उठे और उन्होंने कहा कि हे ईश्वर के दूत इस मामले में मैं आपकी सहायता करने के लिए तैयार हूं। यह सुनने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपना हाथ हज़रत अली के कांधे पर रखते हुए कहा कि यह मेरा उत्तराधिकारी है। तुम उसकी बातों को सुनो और उनके आदेश का पालन करो।

सूरए शोअरा की अन्तिम आयतों में अनेकेश्वरवादियों के इस दावे का कड़ाई से खण्डन किया गया है कि पवित्र क़ुरआन, शैतानी उकसावा है। क़ुरआन में कहा गया है कि क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि शैतान किसपर उतरते है? वे प्रत्येक ढोंग रचनेवाले गुनाहगार पर उतरते हैं।

शैतानी उकसावे की स्पष्ट निशानियां हैं। शैतान एक विध्वंसकारी और यातनाएं देने वाला है। वह लोगों को बुरे कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। उसके मानने वाले झूठे और पापी हैं। स्पष्ट है कि यह बात क़ुरआन और उसके लाने वाले पर लागू नहीं होतीं। इसके अतिरिक्त पवित्र क़ुरआन एकेश्वरवाद, सच्चाई, न्याय और मानव जाति में सुधार का निमंत्रण देता है इसलिए उसे किसी भी स्थिति में शैतानी उकसावा नहीं कहा जा सकता।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) का विरोध करने वाले उन्हें शायद कहकर संबोधित करते थे। हालांकि वे यह जानते थे कि क़ुरआन शेर का संकलन नहीं है फिर भी वे पैग़म्बरे इस्लाम को शायर कहा करते थे। पवित्र क़ुरआन की आयतें बहुत ही मनमोहक और आकर्षक हैं जिसके कारण लोग उसकी ओर बहुत तेज़ी से खिंचे चले जा रहे थे। यही कारण है कि अनेकेश्वरवादी, इसे जादू भी कहा करते थे। स्वयं पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बर को शायरों या कवियों की श्रेणी से अलग करता है। कवियों में कुछ कवि ऐसे भी होते हैं जो कल्पनाओं में डूबे रहते हैं और काल्पनिक संसार में रहते हुए शेर कहते हैं। यहां पर यह बताते चलें कि जिस काल में पवित्र क़ुरआन नाज़िल हुआ उस काल के अरब के कवि सामान्यतः सुन्दर महिलाओं की प्रशंसा, अज्ञानता के काल पर गर्व, अतिश्योक्ति और इसी प्रकार के विषयों पर शेर कहा करते थे। वे यदि किसी से प्रसन्न हो जाते थे तो उसकी अत्यधिक प्रशंसा किया करते थे और यदि किसी से क्रोधित हो जाते थे तो उसकी बुराई किया करते थे। इस प्रकार के कवि अधिकतर राज दरबारों में अपनी सेवाएं प्रदान किया करते थे। वे लोग व्यवहारिक जीवन से बहुत दूर होते थे। इसके विपरीत पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस प्रकार की बातों से बहुत दूर थे। वे जीवन की वास्तविकताओं को लोगों को समझाते और इस बात का प्रयास किया करते थे कि लोगों का कल्याण की ओर मार्गदर्शन किया जाए। उनकी एक विशेषता यह भी थी कि उनके शत्रु भी उनके दृढ़ संकल्प के कारण अचंभित थे। अब यहां पर स्वयं मनुष्य को निर्णय करना होगा कि कौन यथार्थवादी है और कौन वास्तविकता से दूर।

हालांकि हर कवि को बुरा नहीं कहा जा सकता क्योंकि एसे भी कवि है जो लक्ष्यपूर्ण बात कहते हैं। यह कवि लोगों को सच्चाई की ओर बुलाते हैं। पवित्र क़ुरआन इस प्रकार के कवियों को दूसरों से अलग करता है। यह एसे कवि हैं जो अपने शेरों में लक्ष्यपूर्व विषयों को प्रस्तुत करते हैं। यह कवि, काल्पनिक संसार में नहीं रहते। वे ईश्वर की याद में रहते हैं और उनकी कविताएं लोगों को ईश्वर की याद की ओर ले जाती हैं।

सूरए शोअरा इस चेतावनी के साथ समाप्त होता है कि जिन लोगों ने अत्याचार किया, उन्हें शीघ्र ही मालूम हो जाएगा कि वे किस जगह पलटाए जांएगे।