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इधर-उधर डोलते बिन पेंदी के नेता : हिम्मत रखिये, वह हारने जा रहे हैं, उनके डर को महसूस कीजिये…

Yogendra Yadav
@_YogendraYadav
कई दोस्तों ने मुझे इस (तथाकथित RSS वाले) और दूसरे सर्वे पर अपनी राय देने को कहा है। मैं नहीं जानता यह किसने करवाया है। यूँ भी मुझे अब चुनावी भविष्यवाणी में दिलचस्पी नहीं है। मुझे भविष्य बताने की बजाय भविष्य बनाने में दिलचस्पी है। संभावनाओं का आँकलन करने में रुचि है, ताकि उसे हक़ीक़त में बदला जा सके।

Sohan Jain Nahar
@smnahar

महाशय ,जो खुद का भविष्य नहीं बना सके ,वो किसी का भविष्य क्या बनायेंगे,याद ह ना अरविन्द ने कैसे पिछवाड़े में लात मार कर भगाया था.योगेन्द्र यादव को बताओ,वो क्या चीज़ ह.उसकी आज तक की योग्यता.,क्या किया जिंदगी में.

Surendra Rajput ‏
@ssrajputINC
एक साजिश है चुनाव से मन घिनवा देने की, आपको इससे इतनी चिढ़ हो जाए कि वोट डालने ही न निकलिए । यह एक स्ट्रेटजी होती है, जिसका प्रयोग इस वक़्त सत्तारूढ़ पार्टी पूरे ज़ोर से कर रही है ।

यह होता कैसे है,जानना बड़ा दिलचस्प है । लोगों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल करना । कल तक जो उन्हें गाली देते थे, उन्हें माला पहनाकर अपने दल में लाना । जो आपके सोशलमीडिया हीरो बने फिरते थे, उन्हें उनके विचार के ठीक उल्टे खड़े होते देखना । यह एक तरीका होता है कि आपको लोगों से, राजनेताओं से, चुनाव से, सबसे पूरी तरह दिल हट जाए ।

मुक्केबाज विजेंदर हों या फिर संजय निरुपम, जयंत, गौरव वल्लभ हों या फिर शहला, इस तरह के हज़ार नाम हैं । यह रोज़ पानी पी पीकर जिन्हें गाली देते थे । अब उन्ही के पट्टे गले मे डालकर घूम रहे हैं । यही नही, बहुत से लोग जो इनके ख़िलाफ़ लिखते थे, रात में लिखकर सोए, सुबह बदल गए । एक रिटायर्ड आईएएस थे, बहुत उल्टा सीधा लिखते थे, पता नही ज़बान पर क्या लगा कि रातों रात बदल गए ।

स्थिति यह है कि लोगों का चुनावी प्रक्रिया और आयोग,दोनों से भयंकर भरोसा उठा हुआ है । ऐसे में जब मन घिना चुका हो तो लोग वोट डालने निकलेंगे, यह बहुत बड़ा प्रश्न है ।

हालात यह हैं कि किसी का भी,कभी भी बदल जाना, अब कुछ लगता ही नही है । नैतिकता, कमिटमेंट, ज़बान, किसी चीज़ का कोई भरोसा नही । सुबह आपके साथ चाय पीकर लोग सत्ता को कोसते हैं और 11 बजे ही दूसरे दल का पट्टा गले में डालकर आपके ही ऊपर गुर्राने लगते हैं । ऐसे में क्या ही कहा जाए ।

इस समय सबसे बड़ी परीक्षा है । ख़ुद को वोट डालने केलिए तैयार करना और लोगों को प्रेरित करना कि वोट डालें । यह शायद मेरा देखा पहला चुनाव है, जिसमें न कोई उत्साह है, न कोई चमक है । दो व्यक्तियों ने लोकतंत्र के महापर्व को ख़रीद-फरोद बनाकर बेमज़ा कर दिया है । वोट है मगर पड़ेगा,इसपर प्रश्न खड़ा है ।

यहजो बिन वोट और बिन पेंदी के नेता इधर उधर डोलते हैं । इनका काम ही है कि आपका इस पूरी प्रक्रिया से मोहभंग हो जाए और निरुत्साहित होकर घर बैठ जाएं । मगर मेरी आपसे एक गुज़ारिश है कि इस झांसे,इस षड्यंत्र में मत फँसीएगा । कोई भी चला जाए,अपना विश्वास मत जाने दीजिएगा ।

यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है, सब जानते हैं । इसलिए सामने वाला हर स्तर के,हर षड्यंत्र को आज़मा रहा है । अपनी चाल चल रहा है, आप सतर्क रहिए,उत्साह बनाए रखिये । भले कोई भी पीठ दिखाकर भागे,यह समझ लीजिए, अन्याय के विरुद्ध अभियान में सदैव मुट्ठी भर लोग ही रहे हैं । उन्होंने ही प्रचंड भीड़ और अथाह संसाधनों से लैस अन्याय के पैरोकारों को हराया है । बस यह वोह लोग थे,जिन्हें अपने आप पर भरोसा था और उनका उत्साह कोई कम नही कर सकता था ।

रणभेरी बज चुकी है । जो निस्तेज रहेगा, मारा जाएगा । हिम्मत रखिये, वह हारने जा रहे हैं । उनके डर को महसूस कीजिये । यहीं पर एक राज़ छिपा है । उसे तोड़िये, यह निपट जाएँगे….
#hashtag हफ़ीज़ किदवई

ट्वीट्स में लेखकों के निजी विचार/जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है