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तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-14
وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ (45) قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (46) قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَعَكَ قَالَ طَائِرُكُمْ عِنْدَ اللَّهِ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ (47) और हमने समूद (जाति के लोगों) की ओर उनके भाई सालेह को भेजा […]
इस्लामी संस्कृति व मूल्यों की ओर पलट आना मुसलमानों के पश्चिमी संस्कृति से मुक़ाबले का एकमात्र मार्ग है
एक अध्ययनकर्ता का कहना है कि आपसी समझबूझ इस्लामी संस्कृति के प्रचार- प्रसार का रास्ता व मार्ग है और एक विचार व धारणा को फ़ैलाने का सबसे बेहतरीन रास्ता जंग व विवाद नहीं है बल्कि चिंतन- मनन करने वालों के साथ सिद्धांतिक व तार्किक वार्ता है। अंतरराष्ट्रीय दर्शनशास्त्र दिवस के अवसर पर दर्शनशास्त्र की बहसों […]
तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-7
ज़ोमर आयतें 51-53 فَأَصَابَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَالَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ هَؤُلَاءِ سَيُصِيبُهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَمَا هُمْ بِمُعْجِزِينَ (51) इस आयत का अनुवाद हैः फिर उनके कर्मों के बुरे नतीजे उन्हें भुगतने पड़े और उन (मक्का के नास्तिकों) में से जिन लोगों ने नाफ़रमानियाँ की हैं उन्हें भी अपने अपने किए की सज़ाएँ भुगतनी पड़ेंगी […]