धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-14

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ (45) قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ (46) قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَعَكَ قَالَ طَائِرُكُمْ عِنْدَ اللَّهِ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ (47)

और हमने समूद (जाति के लोगों) की ओर उनके भाई सालेह को भेजा (उन्होंने कहा) कि ईश्वर की उपासना करो। तो फिर वे लोग आपस में लड़ने वाले दो गुटों में बंट गए। (27:45) सालेह ने कहा, हे मेरी जाति के लोगो! तुम भलाई से पहले बुराई के लिए क्यों जल्दी कर रहे हो? तुम ईश्वर से क्षमा याचना क्यों नहीं करते? शायद तुम पर दया हो जाए। (27:46) उन्होंने कहा, हमने तो तुम्हें भी और तुम्हारे साथ वालों को भी अपशकुन पाया है। सालेह ने कहा, तुम्हारा शकुन-अपशकुन तो ईश्वर के पास है, बल्कि बात यह है कि तुम लोग आज़माए जा रहे हो। (27:47)

وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ (48) قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ (49)

और (उस) नगर में नौ गुट थे जो धरती में बुराई फैलाते थे और सुधार का काम नहीं करते थे। (27:48) उन्होंने कहा आपस में ईश्वर की क़सम खाओ कि हम अवश्य ही सालेह और उनके परिजनों पर रात में हमला करेंगे। फिर उसके उत्तराधिकारी से कह देंगे कि हम उनके परिजनों की हत्या के अवसर पर उपस्थितति ही न थे (उनकी हत्या करने की तो बात ही अलग है) और हम बिलकुल सच्चे हैं। (27:49)

وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ (50) فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ (51) فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَةً لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ (52) وَأَنْجَيْنَا الَّذِينَ آَمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ (53)

उन्होंने (सालेह की हत्या के लिए) एक चाल चली और हमने भी (उनकी चाल को विफल बनाने के लिए) एक युक्ति अपनाई और उन्हें ख़बर तक न हुई। (27:50) तो देखिए कि उनकी चाल का कैसा परिणाम हुआ? हमने उन्हें और उनकी जाति, सबको विनष्ट कर दिया। (27:51) तो ये उनके घर हैं जो उनके अत्याचार के कारण उजड़े पड़े हैं। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए एक बड़ी निशानी है जो जानकार हैं। (27:52) और हमने उन लोगों को बचा लिया जो ईमान लाए और (ईश्वर का) डर रखते थे। (27:53)

وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنْتُمْ تُبْصِرُونَ (54) أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِنْ دُونِ النِّسَاءِ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ (55)

और (हे पैग़म्बर! याद कीजिए उस समय को) जब लूत ने अपनी जाति के लोगों से कहा कि क्या तुम एक दूसरे के सामने आँखों से देखते हुए यह अश्लील कर्म करते हो? (जबकि तुम इसकी बुराई से अवगत हो।) (27:54) क्या तुम स्त्रियों को छोड़कर अपनी वासन की पूर्ति के लिए पुरुषों के पास जाते हो? बल्कि बात यह है कि तुम बड़े ही अज्ञानी लोग हो। (27:55)

فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَنْ قَالُوا أَخْرِجُوا آَلَ لُوطٍ مِنْ قَرْيَتِكُمْ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ (56)

परन्तु उनकी जाति के लोगों का उत्तर इसके अतिरिक्त कुछ न था कि उन्होंने कहा, लूत के घर वालों को अपनी बस्ती से निकाल बाहर करो कि ये ऐसे लोग हैं जो पवित्रता की खोज में रहते हैं। (27:56)

فَأَنْجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ (57) وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَطَرًا فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِينَ (58)

तो हमने लूत और उनके परिजनों को बचा लिया सिवाय उनकी पत्नी के जिसके लिए हमने निर्धारित कर दिया था कि वह पीछे रह जाने (और तबाह होने) वालों में से होगी। (27:57) और हमने उन पर (पत्थरों की) एक वर्षों की (जिससे वे सब पत्थरों के नीचे दफ़्न हो गए) तो क्या ही बुरी बारिश थी उन लोगों के लिए जिन्हें डराया (और सचेत किया) जा चुका था। (27:58)

قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَى عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَى آَللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ (59)

(हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि समस्त प्रशंसा ईश्वर के लिए है और सलाम है उसके उन बन्दों पर जिन्हें उसने चुन लिया। क्या ईश्वर बेहतर है या वह वस्तुयें जिन्हें वे (उसका) समकक्ष ठहरा रहे है? (27:59)

أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنْزَلَ لَكُمْ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَنْبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَا كَانَ لَكُمْ أَنْ تُنْبِتُوا شَجَرَهَا أَءلَهٌ مَعَ اللَّهِ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ (60)

(जिन्हें तुम ईश्वर का समकक्ष ठहराते हो वे बहतर हैं) या वह जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से पानी बरसाया? जिसके द्वारा हमने हरे-भरे बाग़ उगाए, जिनके पेड़ उगाना तुम्हारे लिए सम्भव न था? क्या ईश्वर के साथ कोई और भी पूज्य है? (नहीं) बल्कि वे पथभ्रष्ठ लोग हैं। (27:60)

أَمَّنْ جَعَلَ الْأَرْضَ قَرَارًا وَجَعَلَ خِلَالَهَا أَنْهَارًا وَجَعَلَ لَهَا رَوَاسِيَ وَجَعَلَ بَيْنَ الْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا أَءلَهٌ مَعَ اللَّهِ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ (61)

(जिन्हें वे ईश्वर का समकक्ष ठहराते हैं वे बेहतर हैं) या वह जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसके बीच नदियाँ बहाईं और उसके लिए मज़बूत पहाड़ बनाए और (मीठे व खारे पानी के) दो समुद्रों के बीच एक रोक लगा दी (ताकि वे आपस में न मिलें)? क्या ईश्वर के साथ कोई और पूज्य है? (नहीं) बल्कि उनमें से अधिकतर लोग जानते ही नहीं! (27:61)

أَمَّنْ يُجِيبُ الْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ وَيَكْشِفُ السُّوءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَاءَ الْأَرْضِ أَءِلَهٌ مَعَ اللَّهِ قَلِيلًا مَا تَذَكَّرُونَ (62)

क्या (तुम्हारे द्वारा ठहराए गए ईश्वर के समकक्ष बेहतर हैं) या वह जो व्यग्र की पुकार सुनता है, जब वह उसे पुकारे और दुख दूर कर देता है और तुम्हें धरती में उत्तराधिकारी बनाता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य है? तुम कितना कम उपदेश स्वीकार करते हो (27:62)

أَمَّنْ يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَنْ يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ أَءلَهٌ مَعَ اللَّهِ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ (63)

क्या (तुम्हारे द्वारा ठहराए गए ईश्वर के समकक्ष बेहतर हैं) या वह जो थल और जल के अंधेरों में तुम्हारा मार्गदर्शन करता है और जो अपनी दया (की वर्षा) के आगे हवाओं को शुभ सूचना बनाकर भेजता है? क्या ईश्वर के साथ कोई और पूज्य है? ईश्वर उससे उच्च है जो वे किसी को उसका समकक्ष ठहराते हैं? (27:63)

أَمَّنْ يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَمَنْ يَرْزُقُكُمْ مِنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ أَءِلَهٌ مَعَ اللَّهِ قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (64)

(जिन्हें वे ईश्वर का समकक्ष ठहराते हैं वे बेहतर हैं) या वह जिसने सृष्टि का आरम्भ किया है, फिर उसकी प्रलय में पुनरावृत्ति भी करता है और जो तुम्हें आकाश और धरती से आजीविका देता है? क्या अल्लाह के साथ कोई और ? पूज्य है? (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि अगर तुम सच्चे हो तो अपना तर्क ले आओ। (27:64)

قُلْ لَا يَعْلَمُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ إِلَّا اللَّهُ وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ (65) بَلِ ادَّارَكَ عِلْمُهُمْ فِي الْآَخِرَةِ بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِنْهَا بَلْ هُمْ مِنْهَا عَمُونَ (66)

(हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि आकाशों और धरती में जो भी गैब अर्थात छिपा हुआ है, ईश्वर के सिवा किसी को भी उस का ज्ञान नहीं है और न उन्हें यह पता है कि वे कब उठाए जाएँगे। (27:65) बल्कि प्रलय के बारे में उनका ज्ञान समाप्त हो गया है, बल्कि ये उसकी ओर से कुछ संदेह में है, बल्कि (ये) उसे (समझने में अक्षम व) अंधे हैं। (27:66)

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَئِذَا كُنَّا تُرَابًا وَآَبَاؤُنَا أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ (67) لَقَدْ وُعِدْنَا هَذَا نَحْنُ وَآَبَاؤُنَا مِنْ قَبْلُ إِنْ هَذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ (68) قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ (69)

और काफ़िरों ने कहाः क्या जब हम और हमारे बाप-दादा (मर कर) मिट्टी हो जाएँगे तो क्या वास्तव में हम (क़ब्र से जीवित करके) निकाले जाएँगे? (27:67) वस्तुतः इससे पहले भी इस (प्रकार) का वादा हमसे और हमारे बाप-दादा से किया जा चुका है। यह तो बस पिछले लोगो की कहानियोँ के अतिरिक्त कुछ नहीं है। (27:68) (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि धरती में घूमो-फिरो और देखो कि अपराधियों का कैसा परिणाम था? (27:69)

وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُ فِي ضَيْقٍ مِمَّا يَمْكُرُونَ (70) وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (71) قُلْ عَسَى أَنْ يَكُونَ رَدِفَ لَكُمْ بَعْضُ الَّذِي تَسْتَعْجِلُونَ (72)

(हे पैग़म्बर!) उन (के पथभ्रष्ट होने) पर शोकाकुल न हों और जो चाल वे चल रहे हैं, उस पर भी दुखी न हों। (27:70) और वे कहते हैं कि यदि तुम सच्चे हो तो यह (दंड का) वादा कब पूरा होगा? (27:71) कह दीजिए कि जिसकी तुम जल्दी मचा रहे हो संभव है कि उसका कोई भाग तुम्हारे पीछे ही लगा हो। (27:72)

وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ (73) وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ (74) وَمَا مِنْ غَائِبَةٍ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُبِينٍ (75)

निश्चय ही आपका पालनहार लोगों पर दया व कृपा करने वाला है किन्तु उनमें से अधिकतर कृतज्ञ नहीं हैं। (27:73) और जो कुछ वे अपने सीनों में छिपाए हुए हैं और जो कुछ वे प्रकट करते हैं, उससे निश्चय ही आपका पालनहार भली-भाँति अवगत है। (27:74) और आकाश व धरती में छिपी कोई भी (बात) ऐसी नहीं जो (ईश्वर के निकट) एक स्पष्ट किताब में मौजूद न हो। (27:75)

إِنَّ هَذَا الْقُرْآَنَ يَقُصُّ عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ (76) وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ (77) إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُمْ بِحُكْمِهِ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ (78) فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ (79)

(निस्संदेह यह क़ुरआन बनी इसराईल से अधिकतर ऐसी बातें बयान करता है जिनके बारे में उनमें मतभेद है। (27:76) और निस्संदह यह (क़ुरआन) ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन और दया (का कारण) है। (27:77) (हे पैग़म्बर!) निश्चय ही आपका पालनहार उनके बीच अपने आदेश से फ़ैसला कर देगा और वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली और जानकार है (27:78) तो आप ईश्वर पर ही भरोसा कीजिए कि निश्चय ही आप स्पष्ट सत्य पर हैं। (27:79)

إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَى وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ (80) وَمَا أَنْتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَنْ ضَلَالَتِهِمْ إِنْ تُسْمِعُ إِلَّا مَنْ يُؤْمِنُ بِآَيَاتِنَا فَهُمْ مُسْلِمُونَ (81)

(हे पैग़म्बर!) निश्चय ही आप अपनी बात मुर्दों को नहीं सुना सकते और न ही बहरों को अपनी पुकार सुना सकते हैं जब वे मुंह मोड़ कर जा रहे हों। (27:80) और न आप अंधों को उनकी गुमराही से हटाकर (सही) मार्ग पर ला सकते हैं। आप तो बस उन्हीं को (अपनी बात) सुना सकते हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाना चाहें। तो वही (सत्य के प्रति) नतमस्तक होते हैं। (27:81)

وَإِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَابَّةً مِنَ الْأَرْضِ تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ النَّاسَ كَانُوا بِآَيَاتِنَا لَا يُوقِنُونَ (82) وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِمَّنْ يُكَذِّبُ بِآَيَاتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ (83)

और जब (प्रलय के निकट) उनके लिए (दंड की) बात निश्चित हो जाएगी तो हम उनके लिए धरती से एक जीव सामने लाएँगे जो उनसे बातें करेगा कि लोग हमारी आयतों पर विश्वास नहीं करते थे। (27:82) और जिस दिन हम प्रत्येक समुदाय में से, ऐसे लोगों का एक गुट, जो हमारी आयतों को झुठलाते हैं, एकत्र करेंगे। फिर उन्हें (इकट्ठा चलने के लिए) रोक दिया जाएगा। (27:83)

حَتَّى إِذَا جَاءُوا قَالَ أَكَذَّبْتُمْ بِآَيَاتِي وَلَمْ تُحِيطُوا بِهَا عِلْمًا أَمْ مَاذَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (84) وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ بِمَا ظَلَمُوا فَهُمْ لَا يَنْطِقُونَ (85)

यहाँ तक कि जब वे (हिसाब के कटघरे में) आ जाएँगे तो ईश्वर कहेगा, क्या तुमने मेरी आयतों को झुठलाया, जबकि तुम्हें उनके बारे में संपूर्ण ज्ञान नहीं था या फिर तुम (जीवन भर) क्या कर रहते थे? (27:84) और उन्होंने जो अत्याचार किया है उसके कारण उनके विरुद्ध (दंड की) बात निर्धारित कर दी गई तो वे कुछ बोल नहीं सकेंगे। (27:85)

أَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا اللَّيْلَ لِيَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآَيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ (86)

क्या उन्होंने देखा नहीं कि हमने रात बनाई ताकि वे उसमें आराम करें और दिन को प्रकाशमान (बनाया कि उसमें काम करें)? निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो ईमान ले आएँ। (27:86)

وَيَوْمَ يُنْفَخُ فِي الصُّورِ فَفَزِعَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَنْ شَاءَ اللَّهُ وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَاخِرِينَ (87)

और जिस दिन सूर में फूँका जाएगा तो जो भी आकाशों और धरती में है, घबरा उठेगा सिवाय उसके जिसे ईश्वर चाहे, और सब विनम्रता के साथ (सिर झुकाए) उसके समक्ष उपस्थित हो जाएँगे। (27:87)

وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِ صُنْعَ اللَّهِ الَّذِي أَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍ إِنَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَفْعَلُونَ (88)

और तुम पहाड़ों को देख कर समझते हो कि वे जमे हुए हैa जबकि वे बादलों की तरह चल रहे होंगे। यह अल्लाह की कारीगरी है, जिसने हर चीज़ को सुदृढ़ किया। निःसंदेह जो कुछ तुम करते हो उससे वह भली भांति अवगत है। (27:88)

مَنْ جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِنْهَا وَهُمْ مِنْ فَزَعٍ يَوْمَئِذٍ آَمِنُونَ (89) وَمَنْ جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (90)

जो कोई प्रलय में भला कर्म लेकर आया उसे उससे भी अच्छा (प्रतिफल) प्राप्त होगा और ऐसे लोग भय व घबराहट से उस दिन सुरक्षित होंगे। (27:89) और जो कोई बुरा कर्म लेकर आया तो (प्रलय में) ऐसे लोग मुँह के बल आग में फेंक दिए जाएंगे (और उनसे कहा जाएगा) क्या तुम्हें उसके अतिरिक्त किसी और चीज़ का बदला दिया जा रहा है जो तुम करते रहे हो? (27:90)

إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَذِهِ الْبَلْدَةِ الَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُ كُلُّ شَيْءٍ وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْمُسْلِمِينَ (91) وَأَنْ أَتْلُوَ الْقُرْآَنَ فَمَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ وَمَنْ ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَا أَنَا مِنَ الْمُنْذِرِينَ (92)

मुझे तो बस यही आदेश दिया गया है कि इस नगर के पालनहार की उपासना करूँ जिसने इसे सम्मानीय ठहराया और हर चीज़ उसी की है। और मुझे आदेश दिया गया है कि मैं उसके समक्ष नतमस्तक रहूँ। (27:91) और (मुझे) यह (आदेश दिया गया है) कि (लोगों को) क़ुरआन पढ़कर सुनाऊँ। तो जो कोई मार्गदर्शन स्वीकार करे तो वह अपने ही लिए मार्गदर्शन स्वीकार करता है और जो पथभ्रष्ट हो जाए (वह अपने ही अहित में पथभ्रष्ट होता है) तो (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि मैं तो बस सचेत करने वालों में से हूँ। (27:92)

وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ آَيَاتِهِ فَتَعْرِفُونَهَا وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ (93)

और (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए ही है। जल्द ही वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखा देगा और तुम उन्हें पहचान लोगे। और आपका पालनहार तुम लोगों के कर्मों की ओर से निश्चेत नहीं है। (27:93)