धर्म

तौहीद और शिर्क : उन्हें इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि वे अपने कर्मों की सज़ा और प्रतिफल से बच जाएंगे : पार्ट-9

وَالَّذِينَ يَبِيتُونَ لِرَبِّهِمْ سُجَّدًا وَقِيَامًا (64) وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا اصْرِفْ عَنَّا عَذَابَ جَهَنَّمَ إِنَّ عَذَابَهَا كَانَ غَرَامًا (65) إِنَّهَا سَاءَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا (66)

और जो अपने पालनहार के आगे सजदा करके और खड़े रह कर रातें गुज़ारते हैं (25:64) और जो कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! नरक के दंड को हमसे टाल दे कि निश्चय ही उसका दंड कड़ा और सदैव रहने वाला है। (25:65) निःसंदेह नरक अत्यंत बुरा ठिकाना और गंतव्य है। (25:66)

وَالَّذِينَ إِذَا أَنْفَقُوا لَمْ يُسْرِفُوا وَلَمْ يَقْتُرُوا وَكَانَ بَيْنَ ذَلِكَ قَوَامًا (67)

और (ईश्वर के अच्छे बंदे वही हैं) जो जब ख़र्च करते हैं तो न अपव्यय करते हैं और न ही कड़ाई से काम लेते हैं बल्कि वे इनके बीच मध्यमार्ग अपनाते हैं। (25:67)

وَالَّذِينَ لَا يَدْعُونَ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آَخَرَ وَلَا يَقْتُلُونَ النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ وَلَا يَزْنُونَ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ يَلْقَ أَثَامًا (68) يُضَاعَفْ لَهُ الْعَذَابُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَيَخْلُدْ فِيهِ مُهَانًا (69)

और जो ईश्वर के साथ किसी दूसरे पूज्य को नहीं पुकारते और न किसी मनुष्य की, जिस (की हत्या) को ईश्वर ने वर्जित किया है, हक़ के बिना हत्या करते हैं, और न वे व्यभिचार करते है और जो कोई ऐसा करे तो वह कड़े दंड में ग्रस्त होगा। (25:68) प्रलय के दिन उसका दंड दुगना हो जाएगा और वह सदैव अपमानित होकर उसमें पड़ा रहेगा। (25:69)

إِلَّا مَنْ تَابَ وَآَمَنَ وَعَمِلَ عَمَلًا صَالِحًا فَأُولَئِكَ يُبَدِّلُ اللَّهُ سَيِّئَاتِهِمْ حَسَنَاتٍ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا (70) وَمَنْ تَابَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَإِنَّهُ يَتُوبُ إِلَى اللَّهِ مَتَابًا (71)

सिवाए उसके जो पलट आए और ईमान लाए और अच्छे कर्म करे तो ऐसे लोगों की बुराइयों को ईश्वर भलाइयों से बदल देगा और ईश्वर तो है ही अत्यन्त क्षमाशील और दयावान। (25:70) और जिसने तौबा की और अच्छे कर्म किए तो निश्चय ही वह ईश्वर की ओर पलटता है, जैसा कि पलटने का हक़ है। (25:71)

وَالَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ الزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا بِاللَّغْوِ مَرُّوا كِرَامًا (72)

और ये वे लोग हैं जो झूठ के गवाह नहीं बनते (और असत्य कार्यों में सम्मिलित नहीं होते) और जब किसी व्यर्थ काम के पास से गुज़रते है, तो प्रतिष्ठापूर्वक गुज़र जाते हैं। (25:72)

وَالَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِآَيَاتِ رَبِّهِمْ لَمْ يَخِرُّوا عَلَيْهَا صُمًّا وَعُمْيَانًا (73)

और जो ऐसे हैं कि जब उनके पालनहार की आयतों के द्वारा उन्हें उपदेश दिया जाता है तो वे उन (आयतों) पर अंधे और बहरे होकर नहीं गिरते (अर्थात आंख और कान बंद करके उन्हें नहीं देखते)। (25:73)

وَالَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَا هَبْ لَنَا مِنْ أَزْوَاجِنَا وَذُرِّيَّاتِنَا قُرَّةَ أَعْيُنٍ وَاجْعَلْنَا لِلْمُتَّقِينَ إِمَامًا (74)

और जो कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! हमें अपनी पत्नियों और संतान से आँखों की ठंडक प्रदान कर और हमें (तुझसे) डर रखने वालों का अग्रणी बना दे। (25:74)

أُولَئِكَ يُجْزَوْنَ الْغُرْفَةَ بِمَا صَبَرُوا وَيُلَقَّوْنَ فِيهَا تَحِيَّةً وَسَلَامًا (75) خَالِدِينَ فِيهَا حَسُنَتْ مُسْتَقَرًّا وَمُقَامًا (76)

यही वे लोग है जिन्हें, उनके द्वारा किए गए धैर्य के बदले में, (स्वर्ग के) उच्च भवन प्राप्त होंगे तथा वहाँ स्वागतम और सलाम से उनका सत्कार होगा। (25:75) वे वहाँ सदैव रहेंगे और वह क्या ही अच्छा ठिकाना और गंतव्य है। (25:76)

قُلْ مَا يَعْبَأُ بِكُمْ رَبِّي لَوْلَا دُعَاؤُكُمْ فَقَدْ كَذَّبْتُمْ فَسَوْفَ يَكُونُ لِزَامًا (77)

(हे पैग़म्बर लोगों से) कह दीजिए कि अगर तुम (उसे) न पुकारो तो मेरे पालनहार को तुम्हारी कोई परवाह नहीं है (क्योंकि) तुम (सत्य को) झुठला चुके हो तो शीघ्र ही वह दंड तुम्हें अपनी चपेट में ले लेगा। (जिससे बचना असंभव होगा) (25:77)