विशेष

#हज़रत_शाह_वलीउल्लाह_मुहद्दिस_देहलवी

Ruknuddin Raza
============
#हज़रत_शाह_वलीउल्लाह_मुहद्दिस_देहलवी
21 फरवरी सन 1703 ग्राम फूलत जिला मुजफ्फरनगर मे जन्मे 20 अगस्त सन 1762 में हज़रत शाह वली उल्लाह मुहद्दिस देहलवी (रह.) की वफ़ात हो गई अपने तारीख़ी वसीयत नामे में शाह साहब ने दर्दमंदाना लफ़्ज़ों में फ़रमाया था,
शाह साहब देख रहे थे कि अगर यही हालत रही तो इस मुल्क में अब दीन और अहले दीन का ख़ुदा ही हाफ़िज़ है जो कुछ होने वाला था उनकी दूरदर्शी नज़र में रोशन था लेकिन उस वक़्त तक दिल्ली पर अंग्रेज़ों का ग़लबा नहीं हुआ था और हालात इस क़दर संगीन नहीं हुए थे,
हज़रात शाह वलीउल्लाह पर पुरानी दिल्ली में इकलौती लाइब्रेरी है जो रात में दस बजे तक खुलती है छोटे से कमरे में बनी ये लाइब्रेरी दुर्लभ हो रही किताबों का खजाना है,
किताब के लिए कुतुबखाने का होना बहुत जरुरी है यहाँ 700 साल पुरानी किताबें मौजूद हैं हज़रत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी में दिल्ली के कॉलेजों के छात्रों के साथ-साथ देश और दुनिया से लोग रिसर्च करने आते हैं,


इस लाइब्रेरी में 700 साल पुरानी किताबों की श्रेणी में उर्दू-संस्कृत मिश्रित गीता और अल्लामा अजीमुद्दीन की किताब बदयूमिजान मौजूद है उर्दू के साथ विभिन्न जुबानों में भगवद गीता रामायण महाभारत उपनिषद और 4O जुबानों में कुरान शरीफ भी मौजूद हैं
हज़रत शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी ने अपनी किताबों में तज़किरा किया हैं और उससे बचने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते रहने की हिदायत दी है
आज सूरत ऐ हाल वही है,
नास्तिकता का पैगाम इस कदर तेजी से फैलाया जा रहा है कि हम अंदाज़ा नहीं कर सकते और इस तूफान में वही शख्स बच पाएगा जिसके पास फौलादी यानी सहाबा वाला ईमान होगा हल्के फुल्के छोटे मोटे ईमान वाले इस इलहाद की आंधी में बह जाएंगे,
अपने बच्चों को और अपने आप को इस कदर मज़बूत इमान वाला बनाइए कि दुनिया की सारी बातिल ताकतें मिलकर भी झुका ना सके और सारी दज्जाली कुव्वतें भी दिल से ईमान को निकाल ना सके,
उधर दिल्ली में बैठकर “हुज्जतुल इस्लाम हज़रत शाह वलीउल्लाह” के साहबज़ादे “अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी रह0” एक आज़ाद हिंदुस्तान का सपना देख रहे थे अंग्रेज़ सरकार के खिलाफ पहला फतवा हज़रत शाह ने ही दिया था ये ही फतवा हिंदुस्तान की आज़ादी की बुनियाद है और हिंदुस्तानी आवाम का दर्द देखते हुए अंग्रेज़ो से टक्कर लेने का फैसला ले लिया था,
जंगे आजादी की लड़ाई 1757 में शुरू हो गई थी ईस्ट इंडिया की स्थापना के दौरान शुजाउद्दौला के विरोध करने पर उन्हें मार दिया गया इसके बाद देशभर के मदरसों-पाठशालाओं से अंग्रेजों को मुल्क से खदेड़ने का पाठ पढ़ाया जाने लगा शिक्षकों के साथ ही बच्चों ने भी आजादी के लिए लड़ाई लड़ी,
हिन्दुस्तान में जेहाद का पहला फतवा अंग्रेजों के खिलाफ दिया गया अंग्रेजों के खिलाफ देशभर में बिगुल बज गया तब अंग्रेजों ने धर्म के नाम पर लड़ाना शुरू कर दिया ऐसे हालातों में आजादी मुश्किल हो गई थी,
शाह वलीउल्लाह ने सभी को एकजुट कर आजादी की लड़ाई लड़ी आजादी की लड़ाई में उर्दू की भी मुख्य भूमिका थी लड़ाई के दौरान सभी पत्र और संदेश उर्दू में ही तैयार किए जाते थे,