साहित्य

”तुम एक ऐसे श्राप से शापित हो जो हज़ार नदियों के पास से गुज़रा फिर भी प्यासा ही रहा”

Suraj Samrat
=========
·
वो अहमदाबाद से वापिसी ट्रेन से लौट रहा था…शाम के 6 बजे रहे थे…
मोबाइल निकाल कर उसने ट्रेन का रनिंग स्टेटस चेक किया..ट्रेन रात 11 बजे अपने अतिंम स्टेशन,जो कि उसका गंतव्य था, पहुंचेगी.
बीच के स्टेशन पर यूँ ही नजर चली गई, तो एक शहर के नाम पर रुक गई.
नव्या का शहर…!
ट्रेन के पहुँचने का समय 7.10…
यादों के झरोखे खुलने लगे, अतीत आवाजें देने लगा.
उसने इस एप्प को क्लोज किया, व्हाट्सएप्प ओपन किया.
उस का नाम सर्च किया. हैरत ये हुई कि इतने सालों बाद भी उसका वही नंबर काम कर रहा था..क्योंकि स्टेटस पर लास्ट सीन 25मिनट पहले का शो हो रहा था.
7-8 बरसो से उनकी कोई बात, कोई चैट नही हुई थी.
चैट हिस्ट्री भी शो नही हो रही थी या तो डिलीट कर दी होगी या फोन चेंज से डिलीट हो गई होगी.
ना जाने किस भावना आवेश में उसने “हैल्लो” टाइप करके सेंट कर दिया.
कुछ देर वो टकटकी लगा कर स्क्रीन को देखता रहा.
चंद सेकंड्स में उसका स्टेटस ऑनलाइन हुआ.
हैल्लो के आगे के टिक नीले हुए.
टाइपिंग….
-“हैल्लो”-उसका रिप्लाई चमका.
-” जिन्दा हो”- उसने लिख दिया.
-“नही,भूत हूँ उसका,बोलो😁”
-“उसका भूत(काल) तो मैं हूँ😁”
-“😁😁😁”
-“😊😊😊”
-” कैसे ,क्यों,कहाँ से आज मेरी याद निकल आई”
-“तेरे शहर से गुजरने वाला हूँ,ये देख कर याद आ गई”
-“अच्छा!वो कैसे”
-“अहमदाबाद से लौट रहा हूँ,ट्रेन में हूँ…7.10 पर ट्रेन तेरे शहर की सर जमीन को चूमेगी.”
-“ओ, तो ये बात है, तभी मैं सोचूं -‘उसके दिल मे कहा मेरी याद का परचम, हल्का सा बादल था छंट गया होगा’-“
-“तुम कहां से हल्का बादल हो,तुम तो पूरा तूफान हो😁”
-“बस रहने दो”
-“अच्छा,सुनो 7.10 पर ट्रेन पहुंचेगी,20 मिनट का वहाँ स्टॉपेज है, अभी घण्टा भर है. क्या तुम आ सकती हो स्टेशन? अरसे बाद मिलना हो जाएगा.
-“ओ…तो ये बात है. पर मुश्किल है इस वक़्त घर के कामकाज छोड़ कर निकल पाना”
-“देख लो,मन हो, सुविधा हो तो…वैसे भी तुम्हारा घर स्टेशन के पास ही है
5 मिनट आने के 5 जाने के और 20 मिनट यहाँ, कुल आधे घण्टे का बंक मारना है”
-“पक्का नही कहती, देखती हूँ”
-“कोशिश करना, मैं वेट करूँगा”
-“ना,पक्का नही..,वेट मत करना, नही आ पाई तो मन खराब होगा मेरा भी तुम्हारा भी”
-“ह्म्म्म”
-“अभी बाय”
-“बाय”
-“B1,34”
-ओके”
स्टेटस ऑफलाइन हो गया.
उसने भी मोबाइल साइड में रखकर किताब निकाल ली, पर किताब से ज्यादा उस का ध्यान घड़ी पर था.
ट्रेन 7.12 पर स्टेशन पहुंची, उसकी बोगी जहाँ रुकी, वो ठीक वही खड़ी थी, उसने ग्लास विंडो से उसे देख लिया,और उसने भी.
वो बोगी में ही आ गई,
आज भी वो उतनी ही खूबसूरत थी…बल्कि उस भी ज्यादा.मैच्योरिटी और शरीर मे आया भराव उसे और बेहतर बना रहा था.
-“ए हैलो,क्या हुआ? कहाँ खो गये”
-“अ.. कुछ नही,बैठो”
-“इतनी जल्दी क्या है, क्यों इतने जल्दी बूढ़े हो रहे” नव्या ने बढ़े गौर से उसका मुआयना करते हुए कहा
-“नही तो..मैं तो एक दम फिट हूँ”
-“मैं शरीर की नही दिमाग की बात कर रही हूं”उसने छेड़ते हुए कहा और हंसी.
क्या हंसी थी,आज भी जानलेवा.
-“अच्छा ,ये पकड़ो,”-उसने हाथ मे पकड़ा हुआ पैकेज मुझे देते हुए कहा.
-“ये क्या है”
-“जब तुम्हारा मैसेज आया तो मैं सोच ही रही थी कि डिनर में क्या बनाऊं,
बात होने के बाद ये दुविधा खत्म हो गई, भिंडी और मसर की दाल बना ली, तुम्हे बहुत पसंद है ना”
-“अरे..वाह! तुम्हे याद है”
-“याद वाद नही करती मैं तुम्हे, मेरे पास इतना फालतू टाइम नही है
ये तो गाहे बगाहे किसी सीरियल में या कुछ पढ़ते वक्त तुम्हारा नाम सामने आ जाता तो बस इतना याद आता है कि था एक बन्दा इस नाम का”-वो अभी भी मजाक के मूड में थी.
-“शाबाश”-उसने भी मजे लेते हुए कहा.
“और तुम्हे? तुम्हे आती है मेरी याद”
-“तुम जानती हो मैं अच्छी चीजें नही भूलता, और तुम भी कोई भूलने वाली शख्सियत हो क्या भला”
“हां, तुम्हे तो पता नही “कितनी अच्छी चीजें” याद है, सारा दिन इन “चीजों” की फेसबुक पर जुगाली करते रहते हो”-नव्या की आवाज में हल्का सा तंज था.
-“तुमने कब पढ़ी?तुम तो फेसबुक हो ही नही?”
-“मैं हुं फेसबुक पर,पर तुम्हरी फ्रेंड लिस्ट में नही हूँ,मैंने तुम्हें फॉलो किया हुआ है”
-“लेकिन तुम्हारे नाम की तो कोई आईडी नही फेसबुक पर,मैंने खूब सर्च करके देख है”
-“हा हा हा..मेरे नाम से नही है फेक नाम से है”
-“ओ,तो तुम मुझे पढ़ती रहती हो”
-“हां, शेरो शायरी,सामाजिक, राजनीतिक और क्रांतिकारी के साथ साथ बीच बीच मे जो तुम रोमांटिक किस्से लिखते हो,सब पढ़ती हूँ. ना जाने कितने को तूम याद करते हो, उनकी बातें करते है, हां कुछ मेरी भी बाते लिखी है,सब पढा है”
-” तुम जानती ही हो कि मैं खुली किताब सा हूँ”
-“नही, तुम शापित हो, तुम एक ऐसे श्राप से शापित हो जो हजार नदियों के पास से गुजरा फिर भी प्यासा ही रहा”
-“……..”
-“क्यों ऐसी जिंदगी जी रहे हो?,क्या मिलता है इस आवारगी से?किसी एक के ना हो सके तो सब के हिस्से में थोड़ा थोड़ा क्यों बने बैठे हो?जैसे सब जीते है वैसे क्यों नही जी पा रहे? सीधा साधा जीना क्यों नही होता तुम से?
मैं जानती हो लोग तुम्हे मुंह पर चाहे कुछ ना कहे,लेकिन पीठ पीछे तो ना जाने क्या क्या कहते है, मैं ये भी जानती हूं कि तुम जिस के हिस्से में जितना आये वो अपने आप मे मुकम्मल था.”
-“तुम खामख़्वाह ड्रामेटिक हो रही हो, ऐसी कोई बात नही है”
-“बस रहने दो, मुझ से बेहतर तुम्हे कोई नही समझ सकता..तुम सचमुच शापित हो…दुनिया की नजर में चाहे तुम कैसोनोवा बने घूमते फ़िरो,,लेकिन अंदर से तुम खाली हो”
तभी ट्रेन का हॉर्न बज उठा.
वक्त के प्रहरी ने ‘मुलाकात का वक्त खत्म हुआ’ का होंका दे दिया था.
नव्या उठ खड़ी हई
-“चलूं अब”
-“ह्म्म्म..”
वो चली गई.
नही…
वो तो विंडो से हाथ हिलाती हुई प्लेटफॉर्म पर खड़ी दिख रही है..
चला तो वो जा रहा है….
ना जाने कहाँ …….
पोस्ट पसंद आए तो कृप्या पेज को लाईक एवम फॉलो करें एवम कॉमेंट में अपना सुझाव व्यक्त करें।