साहित्य

*बिना मेहनत के मालकिन बनने के ख्वाब*

Laxmi Kumawat
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* बिना मेहनत के मालकिन बनने के ख्वाब *
घर के बाहर ढोल ढमाकों की आवाज, गीत गाती हुई औरतें, पटाखों के फूटने की आवाज, सचमुच बहुत ही मनमोहक दृश्य था। आज नयी दुल्हन का शांति सदन में गृह प्रवेश था। दुल्हन घर के दरवाजे पर उस बड़ी सी कार में आ चुकी थी। जैसे ही कार का दरवाजा खुला, दुल्हन ने पहला कदम बाहर रखा।

और सबसे पहले एक सरसरी सी नजर उस पूरे घर पर दे मारी। उस मकान को देखते ही उसका मन अंदर ही अंदर समुद्र की लहरों की तरह हिलोरे खा गया। उस बड़े से मकान में गृह प्रवेश करते हुए निधि के मन को सुकून मिल रहा था। अब तो वो इस घर की मालकिन होगी। बस यही बात बार-बार मन में आ रही थी।
सचमुच उसका ससुराल कितना समृद्ध है। कहाँ इतना बड़ा मकान, और कहाँ उनका छोटा सा घर। जहां खुद का कोई पर्सनल कमरा ही नहीं था। कहाँ वो इस समय उस छोटे से मकान की कल्पना करने बैठ गई। अपने विचारों को झटक कर निधि घर में प्रवेश करने लगी।

निधि मन ही मन बहुत खुश हो रही थी। और ये खुशी उसके चेहरे से भी जाहिर हो चुकी थी। पति अमर के साथ घर में प्रवेश करने लगी।‌ घर की भव्यता देखकर उसकी आंखें खुली की खुली रह गई। ऐसा घर तो उसने सिर्फ सपनों में ही देखा था।

ये रिश्ता उसकी बुआ ने बताया था। बुआ अमर के घर से दो-चार घर दूर ही रहती थी। अमर की मां की तबीयत ज्यादा खराब रहती थी इसलिए वो अमर की शादी करवाना चाहती थी। शायद यही उनकी अंतिम इच्छा थी। अमर एक अच्छा लड़का था। घर बार भी बढ़िया था। इसलिए निधि के घर में सब लोग शादी के लिए तैयार हो गए थे। बस निधि की मां तैयार नहीं थी। क्योंकि उनका मानना था कि पहले उसे अपनी पढ़ाई पूरी कर आत्मनिर्भर बनना चाहिए।

पर इस रिश्ते की सुनते ही निधि ने सबसे पहले हां की थी। आखिर बुआ के घर आते जाते उसने ये बड़ी सी हवेली देखी जो थी। वो तो उसके ख्वाब ही देखती थी। पर आज वो इस हवेली की मालकिन थी। उसके आगे पीछे नौकर चाकर काम करेंगे। आज उसे अपने फैसले पर बड़ा नाज हो रहा था। अच्छा हुआ जो उसने अपनी मां की बात नहीं मानी। नहीं तो उनकी बात मानकर सिर्फ पढ़ती ही रह जाती और इतना आलीशान बंगला ना मिलता। मन ही मन सोचती हुई निधि ने घर में प्रवेश किया।

घर के अंदर की भव्यता देखते ही निधि की निगाहें यूं ही रुक गई।‌ मन में एक लालच सा समा गया कि अब वो इस घर की मालकिन होगी। अपलक हो वहां की सुंदरता को निहारती रह गई। ये देखकर उसकी ननद जानवी बोली,

” भाभी अभी तो घर में प्रवेश ही किया है तो आंखें अपलक हो गई। आपने तो सपने में भी ऐसा घर नहीं सोचा होगा।‌ सचमुच किस्मत वाली हो आप जो ऐसा घर मिला है। लड़कियां जिसे सपने में ही देखती है “
थोड़ी देर बाद आस पड़ोस की औरतों को विदा कर जानवी निधि को अपनी मां से मिलवाने के लिए उनके कमरे में ले गई। निधि ने वहां जाकर देखा कि उसकी सास प्रतिभा जी बिस्तर पर थी।

अमर ने उसे बताया भी था कि दस महीने पहले उन्हें पैरालाइसिस का अटैक आया था। बस तब से वो बिस्तर पर है। उनकी सेवा के लिए एक नर्स लगा रखी है, जो शाम 8:00 बजे अपनी ड्यूटी से फ्री होकर यहां से चली जाती है। तब फिर जानवी या घर का कोई भी सदस्य जो उस समय घर पर मौजूद हो उन्हें देखता हैं।

कमरे में दवाइयों और फिनाइल की मिली जुली गंध आ रही थी, जैसी किसी अस्पताल में होती है। निधि ने अपने नाक भौ सिकोड़ लिए। तभी जानवी बोली,
” भाभी देखो, मां आपको देखकर कितनी खुश हो रही है। आप भी पैर छूकर उनका आशीर्वाद लीजिए। सचमुच भाभी अब आप आपको देखकर मेरी मां जल्दी ठीक हो जाएगी। अब आप आ गई हो ना, अब आप मां को संभाल लेना”
निधि ने फीकी सी मुस्कान के साथ सहमति दे दी और मन ही मन सोचने लगी,
‘ बहु हूं, कोई नर्स तो नहीं हूं। यहां दवाइयां की गंध है मुझसे थोड़ी देर खड़े नहीं रहते बन रहा तो इस कमरे में आएगा कौन? मुझे क्या अपनी मां की सेवा के लिए लेकर आए हो”
खैर, थोड़ी देर बाद जानवी उसे उसके कमरे में छोड़कर आ गई। अपने कमरे में आकर निधि ने चैन की सांस ली। सबसे पहले तो वो पलंग पर जाकर बैठ गई और कमरे को निहारने लगी।

” मेरा अपना कमरा। मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा अपना कमरा होगा। और सचमुच कितना बड़ा है ये। इस कमरे के बराबर तो हमारा घर था। सचमुच मेरी तो किस्मत ही खुल गई। लेकिन इस सास का क्या करूं? बीमार सास पल्ले पड़ी है मेरे तो। पर फिर भी ठीक है, ज्यादा किच-किच नहीं करेगी। और फिर कितने दिनों की है। ननद भी शादी करके ससुराल चली ही जाएगी, फिर तो सब कुछ मेरा ही है। खैर अभी ये सब क्यों सोचूं? अभी तो इसके लिए बहुत वक्त है। अभी तो हम हनीमून के लिए कहां जाएंगे, मुझे तो सिर्फ इस पर फोकस करना है”

सोचती सोचती वो बिस्तर पर लेट गई। और उसे कब नींद आ गई उसे खुद पता नहीं चला। जब अमर कमरे में आया तो वो सोई हुई थी। उसे सोता देखकर अमर ने उसे जगाना ठीक नहीं समझा। और वो पलंग की दूसरी तरफ जाकर सो गया। फिर जब सुबह हुई तब निधि की नींद खुली। तब तक अमर उठ चुका था और अपनी मां के कमरे में उनसे मिलने चला गया था।

“कैसा पति मिला है? यहां नई दुल्हन आई हुई है, उसका ख्याल नहीं है। अपनी बीमार मां से मिलने चला गया”
मन ही मन बुदबुदाती हुई निधि तैयार हुई और बाहर आई। बाहर हाल में से बुआ सास चुपचाप बैठी हुई थी। उन्हें देखकर निधि ने उनके पैर छुए तो बुआ सास ने आशीर्वाद दिया। फिर निधि इधर उधर देखने लगी तो वो बोली,
” सब लोग भाभी के कमरे में है। आज तबीयत थोड़ी ज्यादा खराब थी इसलिए डाॅक्टर को बुलाया हैं। मैं बस अभी उस कमरे से आई हूं। तुम भी कमरे में जाकर ही मिल लो। भाभी को अच्छा लगेगा”
” फिर से उस कमरे में”
मन ही मन सोचती हुई निधि कमरे की तरफ बढ़ गई। आखिर अपना इंप्रेशन खराब थोड़ी ना करना था। कमरे में गई तो सब लोग प्रतिभा जी के पास ही खड़े हुए थे। निधि को देखते ही जानवी प्रतिभा जी को हल्का सा हिलाते हुए बोली,
” मम्मी देखो तो भाभी आई है आपसे मिलने के लिए”
उसकी बात सुनकर प्रतिभा जी ने निधि की तरफ देखा। उसे देखते ही उनके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आई। फिर उन्होंने एक लंबी सांस ली और इस दुनिया से कुच कर गई।
घर में मातम का माहौल हो गया।


सबको पहले से ही पता था कि प्रतिभा जी की हालत बहुत ज्यादा खराब थी। वो शायद अमर की शादी के लिए ही रुकी हुई थी। इसलिए सब लोगों ने दुखी मन से उन्हें विदा किया।‌ ये माहौल तो निधि के लिए पूरी तरह से उम्मीद के बाहर था। दो दिन बाद जानवी अकेले रसोई में सबके लिए खाना बना रही थी तो बुआ सास ने निधि से कहा,
” बहू अब तुम भी रसोई संभालो। जानवी अकेले काम कर रही है, उसकी मदद कर दो। आज से खाना घर पर ही बनेगा”
‘ इतनी बड़ी हवेली, और खाना खुद बनाते हैं’ निधि मन ही मन सोचती हुई एकटक बुआ जी को देखते रह गई।
” अरे क्या सोच रही है बहू”
निधि में ना में गर्दन हिलाई और आखिर मन मार कर रसोई में गई और जानवी की मदद कराने लगी। थोड़ी देर बाद जानवी और निधि को ससुर जी ने अपने कमरे में बुलाया। निधि जानवी के साथ जब कमरे में गई तो वहां ससुर जी, बुआ सास और अमर पहले से ही बैठे हुए थे। वो दोनों भी एक तरफ जाकर खड़ी हो गई। तब ससुर जी बोले,
” देखो जैसा कि तुम सब जानते हो कि प्रतिभा के इलाज के लिए काफी पैसों की जरूरत थी। ये बंगला हमे बेचना पड़ा था। वो तो इसे मैंने अपने दोस्त को बेचा था इसलिए उसने इजाजत दे दी थी कि जब तक प्रतिभा है। तब तक हम यहां रह सकते हैं। पर अब हमें पंद्रह दिन के पूरे कार्यक्रम करने के बाद ये घर खाली करना है। तुम लोगों पर एकदम से काम का वजन न पड़े इसलिए कह रहा हूं कि धीरे-धीरे इन दिनों में अपना अपना सामान पैक कर लेना। ताकि तुम लोगों को परेशानी ना हो”
ये सुनकर सब लोग जहां चुप थे, वही निधि के तो पैरों तले जमीन खिसक गई। कहां तो वो उसे बंगले को देखकर के इसकी मालकिन बनने के ख्वाब देख रही थी। और कहां एकदम से जमीन पर आकर गिरी।
उस समय तो वो कुछ नहीं बोली। चुपचाप अपने कमरे में चली गई। पर कमरे में जाते ही उसने सबसे पहले अपनी बुआ को फोन किया और फोन पर ही उन्हें सुनाने लगी,
” बुआ कौन से जन्म का बदला लिया है आपने मुझसे। ये कहां शादी करवा दी आपने मेरी। इतना बड़ा धोखा मेरे साथ। आपको पता भी है ये बंगला तो बिका हुआ है। इनके पास कुछ भी नहीं है। बर्बाद कर दी आपने मेरी जिंदगी”
बिना बुआ की कोई बात सुने ही उसने फोन रख दिया। रात का समय था इसलिए दूसरे दिन बुआ निधि के पापा मम्मी के साथ उसके ससुराल पहुंची।
घर का माहौल ही ऐसा था तो किसी को शक भी नहीं हुआ कि वो लोग क्यों आए हैं। आते ही निधि की मम्मी ने उसकी बुआ सास से पूछा,
” निधि नहीं दिख रही। अंदर रसोई में है क्या?”
” अरे नहीं नहीं समधन जी, आज उसकी तबीयत थोड़ी ठीक नहीं है। इसलिए अपने कमरे में आराम कर रही है। आप उसके कमरे में ही जाकर मिल लो”
उनकी बात सुनकर बुआ और मम्मी कुछ देर बाद निधि के कमरे में गई। निधि सिर दर्द का बहाना कर बिस्तर पर पड़ी हुई थी। उन दोनों को वहां देखते ही निधि बरस पड़ी,
” बर्बाद कर दी आप लोगों ने मेरी जिंदगी। बुआ को क्या पता नहीं था कि यहां सब कुछ बिका हुआ है। आप तो बहुत अच्छे से जानती थी इनके परिवार को। कहा तो मैंने सोचा था कि घर की मालकिन बनूंगी। अरे आपने तो मुझे नौकरानी बनाकर छोड़ दिया “
” चुप, बिलकुल चुप। एक शब्द नहीं बोलेगी अब तू”
अचानक निधि की मम्मी ने उसे डांटते हुए कहा।
” तेरी बुआ ने हर बात क्लियर बोली थी। सबके सामने बोली थी। तू भी वहीं बैठी हुई थी। पर तेरी आंखों पर तो हवेली की पट्टी लगी हुई थी। जो ना तू देख सकी और ना ही सुन सकी। अब ये बेवजह का रोना बंद कर।‌ ससुराल आते ही ससुराल की मालकिन बनना है, लेकिन जिम्मेदारी कुछ भी नहीं लेनी है। इसीलिए कहा था कि पढ़ लिखकर आत्मनिर्भर बन। कम से कम पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी गृहस्थी तो चला पाएगी। लेकिन नहीं तुम्हें तो सीधा पति की प्रॉपर्टी चाहिए, वो भी बिना जिम्मेदारी के”
अपनी मम्मी की बात सुनकर निधि चुप हो गई। आखिर मम्मी गलत तो नहीं कह रही थी।
” पर अब क्या होगा?”
उसने धीरे से कहा।

” माता-पिता है हम। गड्ढे में तो तुझे फेंका नहीं होगा। ये हवेली वगैरह बिक चुके हैं लेकिन इन लोगों ने अपना एक फ्लैट खरीद रखा है। समधी जी का बिजनेस डूब चुका है लेकिन अमर की तो नौकरी अच्छी है। और वो मेहनती भी है। तेरी तरह ख्याली पुलाव नहीं बनाता। भविष्य में कुछ ना कुछ तो वो कर ही लेगा। बस तू उसका साथ दे, उसके रास्ते का रोड़ा मत बन। जाॅब नहीं कर सकती तो उसके घर को अच्छे से संभाल ले। ताकि वो बेफिक्र होकर आगे बढ़ सके। इतना अच्छा ससुराल मिला है उसे खराब मत कर। वो लोग तो अभी वैसे ही दुखी है। अगर उन लोगों को तेरी सोच पता चलेगी तो उन्हें कितना दुख होगा”

मम्मी के बात सुनकर निधि अब चुपचाप ससुराल में अपने आप को ढालने की कोशिश करने लगी। कुछ महीनों बाद निधि अपने ससुराल की धुरी बन चुकी थी।

मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत
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