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”मेरी अम्मी मेरी जन्नत”….By-फ़ारूक़ रशीद फ़ारुक़ी

Farooque Rasheed Farooquee

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. मेरी अम्मी मेरी जन्नत!
. मुश्किल राहों पे जो आसान सफ़र लगता है
यह मेरी मां की दुआओं का असर लगता है
मां की आंखें दर-ए-मस्जिद की तरह खुलती हैं
वर्ना हर आंख बस इक रस्म अदा करती है

मैंने अम्मी पूछा, “आपके बाद मेरे लिए दुआ कौन करेगा।” अम्मी ने जवाब दिया, ” दरिया अगर सूख भी जाए तो ज़र्रों में नमी बाक़ी रहती है।”

ज़िन्दगी की राहों में मेरी अम्मी का प्यार, उनका साया, उनकी नसीहतें और उनकी दुआएं मेरे साथ हैं। उन्होंने अपनी ज़िन्दगी मेरे लिए, मेरे भाई-बहनों के लिए और मरहूम अबी के लिए वक़्फ़ कर दी। ख़ुद वह बहुत सादगी और सब्रो-शुक्र के साथ दीनदारी की ज़िन्दगी गुज़ारती हैं।

हाॅं दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुबहो-शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ़ ऐ गर्दिश-ए-अय्याम तू

बहुत पीछे……. ज़िन्दगी की उन भूली-बिसरी वादियों में खो जाता हूं जिन्हें वक़्त ने तसव्वुरात के धुंधले पर्दों में सॅंभालकर रखा है। धुॅंधले से मंज़र में देखता हूं एक नन्हा-सा बच्चा जो अभी पैदा हुआ है। तसव्वुर करता हूं उन पुराने और प्यारे दिनों का जब ज़िन्दगी शुरू की थी। यह, वह दौर था जब मैं कुछ नहीं जानता था। किसी रिश्ते और किसी चेहरे का कोई अहसास मुझे नहीं था। एक ही ज़ात सब-कुछ थी। तब हर वक़्त मेरी अम्मी मुझे कलेजे से लगाए रहती थीं और मेरे नन्हे-मुन्ने हाथ उनसे लिपटे रहते थे। तब दूध से ज़्यादा मुझे उनकी क़ुरबत की ज़रूरत थी। हर वक़्त उन्हीं का चेहरा देखता था और कोई चेहरा वैसा प्यारा न था। जब वह मुझे देखतीं तो उनकी आंखों में मुझे जन्नत नज़र आती। वो मुझे ख़ुशी से निहारतीं। अनार के दाने फूटते जब वह हॅंसतीं। कलियां चटकतीं जब वह मुस्कुरातीं। उनका हॅंसना, मुस्कुराना और दुलार करना सब मेरे लिए था।
रात में जब मैं बिस्तर भिगो देता तो वह मुझे बिस्तर के सूखे हिस्से में लिटाकर ख़ुद गीले हिस्से में लेट जातीं। उन्होंने मुझे अपने ख़ून-ए-जिगर से, अपने दूध से पाला। मुझे सब-कुछ दिया और बदले में कभी अपने लिए कुछ नहीं मांगा। वो जब रोतीं तो ख़ामोशी से, जब बीमार पड़तीं तो अपनी परवाह न करतीं। जब मैं बीमार पड़ता तो रात-रात जागतीं, आंसू बहातीं और दुआ करतीं। ख़ुद जागकर मुझे लोरियां देकर सुलातीं।

जब रहमदिल परियों, फ़रिश्तों और हूरों का ज़िक्र आता है तो मुझे अपनी अम्मी का चेहरा और उनका दुलार याद आता है। आज भी ग़मों के सागर में वह तन्हा मुस्कान हैं जो सहारा देती हैं। घनघोर काले बादलों के बीच वह अकेला चमकता हुआ सितारा हैं। दूर-दूर तक तपते रेगिस्तान में वह शीतल जल की फुहार हैं। तेज़ तूफ़ानों में वह मेरे लिए मज़बूत चट्टान हैं। वह आज भी हर मज़बूत ताले की सुनहरी चाबी हैं। उनकी परवरिश ही उनकी सबसे बड़ी रहनुमाई है। मैं उनसे दूर हूॅं या क़रीब उनकी आवाज़ मेरे दिल की आवाज़ है।
(फ़ारूक़ रशीद फ़ारुक़ी)