साहित्य

बेटी….By-#लक्ष्मी कान्त पाण्डे

बेटी:-
पापा मैनें आपके लिए हलवा बनाया हैं।जिसकी उम्र अभी 11साल हैं।अपने पिता से बोल रही हैं।जो अभी आँफिस से घर में आया ही था।

पिता- वहाँ क्या बात है लाकर खिलाओ पापा को हलवा मेरी प्यारी बेटी।बेटी जो की पिता के मुहँ से ये बात सुनकर फूले नही समा रही थी दौड़कर रसोईघर मे जाती है।और एक कटोरा भरके हलवा लेकर आती हैं।पिता ने बहुत प्यार से खाना शुरू किया और बेटी को देखकर उसकी आँखों मे आँसू थे।बेटी ने सवाल करते हुए कहाँ की पापा हलवा अच्छा नही बना हैं क्या।पिता ने जवाब देते हुए बोला नही मेरी प्यारी बेटी हलवा बहुत अच्छा हैं और ये बोलते हुये पूरा कटोरा खाली कर दिया।

इतने में उसकी माँ जो उस समय बहार थी अंदर आयी और बोली ला मुझे भी अपना हलवा खिला।पिता ने इनाम स्वरूप उसे 50 रूपये इनाम में दिये।वो और भी खुशी से अपनी माँ के लिए रसोईघर से हलवा लेकर आई।मगर ये क्या हुआ उसने एक चम्मच हलवा खाते ही थूक दिया।और बोली ये भी कोई हलवा हैं इसमे चीनी की जगह पूरा नमक हैं।और फिर वो अपने पति से बोली आपने पूरा हलवा कैसे खा लिया।ये तो पूरा कड़वा हैं

पत्नी-मेरे खाने मे तो कभी कम हैं कभी मिर्च ज्यादा हैं बोलते रहते हो।

और बेटी को कुछ बोलने के बजाय इनाम दे रहो हो।पती हँसते हुए बोलापगली तेरा और मेरा तो जीवन भर का साथ हैं।हमारा तो पति पत्नी का रिश्ता हैं जिसमें प्यार तकरार नोंक- झोंक रूठना -मनना सब चलेगा।मगर ये बेटी हैं आज हैं कल चली जायेगी।आज इसको वो अपनापन महसूस हुआ है जो मुझे इसके जन्म के समय हुआ था।आज उसने पहली बार इतने प्यार से मेरे लिए कुछ बनाया था।फिर वो कैसा भी हो मुझे कोई फर्क नही पड़ता हैं।हर बेटी अपने पापा की परी होती हैं जैसे तुम हो अपने पापा के लिए।वो रोती हुई अपने पति के गले से लग गई।और सोचने लगी इसीलिए हर लड़की अपने पति मे अपने पिता की छवि को खोजती हैं।हर बेटी अपने पिता के बहुत करीब़ होती हैं ।या यूं कहे की पिता के कलेजे का टुकड़ा होती हैं।इसलिए पिता कभी रोये या ना रोये बेटी की विदाई के समय सबसे ज्यादा रोता है।

कई जन्मों की जुदाई के बाद बेटी का जन्म होता हैं।
इसीलिए तो कन्यादान करना सबसे बड़ा पुण्य होता हैं।

#लक्ष्मी कान्त पाण्डे जी