साहित्य

“ऊपर वाले की लाठी….

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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“ऊपर वाले की लाठी….
बिरजू और सुधा टीवी पर अपने मनपसंद कार्यक्रम देखने के लिए उत्साहित थे सुधा जल्दी से रसोईघर के कामों को निपटाने में लगी हुई थी कि तभी उनके घर का लैंडलाइन फोन बजा…. बिरजू ने फोन उठाया…. उधर सुधा के कान भी खड़े हो गए कि इस वक्त किसने फोन कर दिया कहीं फोन पर अधिक बातें करने वाला हुआ तो कार्यक्रम का मजा ही बेकार हो जाएगा
मम्मी जी ….नमस्ते…. जैसे ही सुधा ने बिरजू के मुंह से सुना उसकी भौंहें तन गई….तभी बिरजू ने दूसरे हाथ से माइक का रिसीवर बंद करके सुधा से कहा….सुनो मम्मी का फोन है बोल रही हैं हमसे मिलने को मन कर रहा है कब आऊं….
अरे अभी पिछले महीने ही तो उन्हें साफ साफ शब्दों में समझाया था कि यहां आकर तंग वो होंगी गांव में ही ठीक है शहर का हवा-पानी उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं रहेगा
अरे बाबा कर लेंगे ना एडजस्ट कुछ दिनों की तो बात है सुधा की और अनुरोध करते हुए बिरजू ने कहा
कमाल करते हो कैसे कर लेंगे दो कमरों का फ्लैट है एक में हम और एक में दोनों बेटियों का रहने भर का इंतजाम है समान भी यहां वहां ठूंसे हुए रखा है आप साफ मना कर दो कह दो बहाना बनाकर की मैं कंपनी के काम से बाहर जा रहा हूं और मुझे और बच्चों को भी साथ लिए जा रहा हूं बस
मुझसे झूठ नहीं बोला जाएगा लो तुम ही समझा दो मम्मी को … कहते हुए बिरजू ने फोन का रिसीवर सुधा के हाथों में थमा दिया
हैलो…. मम्मी जी…. वो क्या है कि यह अपनी कंपनी के काम से बाहर जा रहे हैं तो हमें भी साथ ले जाना चाहते है वापस लौटकर आएंगे तो आपको फोन कर देंगे तब आप आ जाना ….ठीक है … कहकर जल्दी से सुधा ने फोन काट दिया….और बिरजू की तरफ भौंहें मटकाकर बोली…लो कह दिया …
सचमुच यार तुम बड़ी हिम्मत वाली हो
इसमें हिम्मत की कौन सी बात है वो कहते है ना साफ साफ कहना और सदा खुश रहना
मगर यार अपनी मम्मी को यूं साफ साफ कोरा जबाव देना हिम्मत नहीं तो और क्या है… जैसे ही बिरजू ने यह कहा सुधा ने पलटकर उसकी और देखा और उतरे हुए चेहरे को लिए पूछा… फोन….किस…का…था
था तो मम्मी का मगर मेरी नहीं तुम्हारी मम्मी का …..
क्या हुआ बुरा लग रहा है…. सुधा मां तो बस मां होती है मैंने तो शादी के दिन से ही तुम्हारे मम्मी पापा को अपने मम्मी पापा के रुप में स्वीकार कर लिया था और हमेशा करता रहूंगा क्योंकि एक दामाद भी बेटा ही होता है
मगर शायद तुम बहु की बहु ही बने रहना चाहती हो बेटी नहीं बनना चाहती ऐसे में कैसे उम्मीद कर सकती हो एक सांस मां बन जाएं… प्यार पाने के लिए प्यार देना भी जरूरी होता है कहकर बिरजू तो अपने पसंदीदा कार्यक्रम को देखने में लग गया वहीं सुधा आत्मग्लानि से भर गई थी उसे समझ आ गया था कि उसके भेदभाव और ईर्ष्या के कारण वो स्वयं मां के प्यार को और नन्हें बच्चे अपनी नानी के प्यार से वंचित रह गए सच ही कहते हैं हमारे बुजुर्ग ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती…!!