सेहत

कोरोना के नए सब-वैरिएंट JN.1 से बचाव को लेकर डायबिटीज़ के शिकार लोगों को अलर्ट रहने की सलाह दी जाती है

कोरोनावायरस का संक्रमण वैश्विक स्तर पर जारी है। इन दिनों कई देशों में रिपोर्ट किए जा रहे संक्रमण के मामलों के लिए ओमिक्रॉन के नए सब-वैरिएंट JN.1 को प्रमुख कारण माना जा रहा है। अध्ययनों में इसकी संक्रामकता दर भी काफी अधिक बताई गई है। कोरोना की इस लहर में कई देशों में मौत के मामलों में भी वृद्धि देखी गई है।

वैज्ञानिकों ने बताया JN.1 अत्यधिक संक्रामक वैरिएंट जरूर है पर इसके कारण गंभीर रोग विकसित होने या फिर मृत्यु का खतरा उन्हीं लोगों में अधिक हो सकता है जो पहले से ही किसी गंभीर क्रोनिक बीमारी के शिकार रहे हैं, या फिर जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर हो।

मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि अमेरिका, चीन, सिंगापुर सहित कई देशों में कोरोना की इस लहर के कारण मौत के मामले भी अधिक रिपोर्ट किए जा रहे हैं। भारत में भी संक्रमितों में मृत्यु का खतरा बढ़ा है। कोरोना रोगियों में मौत के बढ़ते मामलों को समझने के लिए किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया कि संक्रमण से मरने वालों में सबसे अधिक मामले मधुमेह से संबंधित पाए गए हैं। महिला-युवाओं में मौत का खतरा अधिक देखा गया है।

डायबिटीज और कोविड-19
द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध की रिपोर्ट से पता चलता है कि मधुमेह के रोगियों में कोविड-19 के कारण मौत के मामले बढ़े हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पाया कि महामारी ने स्वास्थ्य देखभाल और जीवनशैली में व्यवधान पैदा कर दिया है, जिससे डायबिटीज रोगियों की जटिलताएं बढ़ गई हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) सहित अन्य शोधकर्ताओं की टीम ने इससे संबंधित 138 अध्ययनों की समीझा की, जिसमें पाया गया है कि महामारी के दौरान मधुमेह रोग, कोविड से मृत्यु का एक जोखिम कारक था। जिन डायबिटिक रोगियों को संक्रमण हुआ उनमें समय के साथ जटिलताएं अधिक बढ़ती हुई देखी गईं।

महामारी के दौरान बढ़े टाइप 1 डायबिटीज के केस
मौतों में वृद्धि के साथ-साथ, शोधकर्ताओं ने पाया कि आईसीयू में भी मधुमेह रोगियों की भर्ती में चौंकाने वाली वृद्धि हुई है। बच्चों और किशोरों में डायबिटिक केटोएसिडोसिस (डीकेए) के मामले भी बढे़ हैं। डीकेए मधुमेह की एक संभावित गंभीर जटिलता है, जिससे शरीर में विषाक्तता बढ़ने, उल्टी-पेट दर्द, पेशाब से संबंधित समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।

शोधकर्ताओं ने बताया कि महामारी के दौरान टाइप-1 डायबिटीड के भी उम्मीद से अधिक नए मामले सामने आए हैं। इस प्रकार के मधुमेह वाले लोग महामारी के दौरान अधिक बीमार भी हुए। टाइप-2 डायबिटीज की तुलना टाइप 1 डायबिटीज के केस कम देखे जाते रहे हैं। ये एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसका आमतौर पर बचपन में निदान किया जाता है।

क्या कहती हैं शोधकर्ता?

अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ताओं में से एक हार्टमैन-बॉयस कहती हैं, महामारी के दौरान किए गए अधिकतर शोध में पाया गया कि क्रोनिक बीमारियों के शिकार लोगों में संक्रमण से गंभीर जटिलताओं और मृत्यु का खतरा अधिक हो सकता है। हम इस बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या अन्य किसी महामारी का भी इन रोगियों पर गंभीर असर हो सकता है?

फिलहाल JN.1 जैसे हल्के स्तर वाले वैरिएंट से भी बचाव को लेकर डायबिटीज के शिकार लोगों को अलर्ट रहने की सलाह दी जाती है।

डायबिटीज रोगी करें बचाव

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डायबिटीज की स्थिति शरीर को अंदर ही अंदर कमजोर करती जाती है, इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर भी नकारात्मक असर हो सकता है। यही कारण है कि मधुमेह के शिकार लोगों में कोरोना से मौत का खतरा अधिक देखा जा रहा है। इन दिनों बढ़ रहे कोरोनावायरस से भी क्रोनिक बीमारी वाले लोगों को विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता है, क्योंकि वायरस का शरीर पर गंभीर असर होने का खतरा हो सकता है।

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स्रोत और संदर्भ
Excess diabetes mellitus-related deaths during the COVID-19 pandemic in the United States

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