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सुप्रीम कोर्ट जल्लीकट्टू क़ानून की वैधता बरक़रार रखने वाले अपने फैसले पर पुनर्विचार को तैयार

सुप्रीम कोर्ट जल्लीकट्टू कानून की वैधता बरकरार रखने वाले अपने फैसले पर पुनर्विचार याचिकाओं को सूचीबद्ध करने के लिए तैयार हो गया है।

यह है कानून
गौरतलब है, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मई में तमिलनाडु सरकार के उस कानून को वैध करार दिया था, जिसमें जलीकट्टू को एक खेल के तौर पर मान्यता दी गई है। कोर्ट ने कहा था कि तमिलनाडु का जानवरों के साथ क्रूरता कानून (संशोधन), 2017 जानवरों को होने वाले दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है। बत्ता दें, जल्लीकट्टू, जिसे इरुथाझुवुथल भी कहा जाता है, सांडों के साथ खेला जाने वाला खेल है, जिसका आयोजन पोंगल में फसलों की कटाई के दौरान किया जाता है।

पीठ ने यह कहा
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील पेश की। उनकी दलील पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने संज्ञान लिया। पीठ ने माना कि पुनर्विचार याचिकाओं को सूचीबद्ध करने और उन पर विचार करने की आवश्यकता है।

पांच सदस्यीय पीठ ने लिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस केएम जोसेफ के नेतृत्व वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पिछले साल 18 मई को एकमत से निर्णय सुनाते हुए महाराष्ट्र में होने वाली बैलगाड़ी की दौड़ों की मान्यता भी बरकरार रखी थी। पांच जजों की पीठ के अन्य जजों में जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार भी शामिल थे।

अनुच्छेद 21 के दायरे में सांडों को लाना न्यायिक दुस्साहस
पीठ ने कहा था, ‘अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत सुरक्षा एक नागरिक के विपरीत व्यक्ति को प्रदान की गई है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (भाषण की स्वतंत्रता आदि के संबंध में कुछ अधिकारों का संरक्षण) में एक मामला है। हमें नहीं लगता कि उक्त संरक्षित तंत्र के भीतर सांडों को लाने के लिए न्यायिक दुस्साहस करना हमारे लिए विवेकपूर्ण होगा।’ तमिलनाडु के कानून मंत्री एस रघुपति ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया था और कहा था कि हमारी परंपराओं और संस्कृति की रक्षा हुई है।