दुनिया

हमास-इस्राईल जंग के 75वे दिन की ख़ास ख़बरें : मोदी-नेतन्याहू के बीच लाल सागर में हूती के ख़तरे पर हुई बात : रिपोर्ट

मोदी-नेतन्याहू के बीच लाल सागर में हूती विद्रोहियों के ख़तरे पर बात, भारत पर क्या असर होगा?

हमास के साथ जारी जंग के बीच इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी से फ़ोन पर बात की.

सात अक्टूबर को इसराइल पर हमास के हमले के बाद दोनों नेताओं ने दूसरी दफ़ा बात की है.

दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच शांति और स्थिरता बनाए रखने को लेकर तो बात हुई लेकिन इस दौरान रेड सी यानी लाल सागर से गुज़रने वाले कमर्शियल जहाज़ों पर हूती विद्रोहियों के हमलों की वजह से उपजे सुरक्षा खतरे का मुद्दा भी उठा.

हूती विद्रोहियों ने हमास का समर्थन करते हुए ये कहा है कि वो इसराइल जाने वाले जहाज़ों को निशाना बना रहे हैं. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं है कि अभी तक उन्होंने जितने भी जहाज़ों पर हमला किया है, वो इसराइल ही जा रहे थे.

जानकारों का कहना है कि दुनियाभर के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री रास्तों में से एक लाल सागर में हूती विद्रोहियों के हमले से वैश्विक आपूर्ति बाधित हो सकती है. इससे कच्चे तेल और अन्य ज़रूरी उत्पादों के दामों में भी तेज़ी आ सकती है.

अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉएड ऑस्टिन ने मंगलवार को ये बयान दिया कि पिछले चार सप्ताह के भीतर यमन के हूती विद्रोहियों ने 12 बार या तो कमर्शियल जहाज़ों पर हमले किए हैं या फिर इनपर कब्ज़ा कर लिया है.

दुनिया की कई बड़ी शिपमेंट कंपनियों ने हमले का ख़तरा देखते हुए लाल सागर की बजाय लंबे रास्तों से अपने मालवाहक जहाज़ भेजने शुरू कर दिए हैं. इससे न सिर्फ़ समय बल्कि लागत में भी बढ़ोतरी हुई है.

भारत पश्चिम एशिया, अफ़्रीका और यूरोप के साथ कारोबार के लिए इसी रास्ते पर निर्भर है.

विश्लेषकों का मानना है कि ये असर धीरे-धीरे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी होगा. ज़ाहिर है कि भारत भी इससे अछूता नहीं रह पाएगा. रोज़मर्रा के सामान के दाम में उछाल संभवतः आम लोगों की जेब पर भी भारी पड़े.

मोदी-नेतन्याहू में लाल सागर की सुरक्षा पर क्या हुई बात?

इसराइल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने दोनों नेताओं की बातचीत के बाद एक बयान जारी किया.

इसमें कहा गया है कि दोनों नेताओं के बीच बाब-अल-मंदेब में मुक्त आवाजाही के महत्व पर चर्चा हुई, जो कि हूतियों के आक्रमण से खतरे में हैं, जिन्हें ईरान उकसा रहा है. दोनों नेताओं ने माना कि हमले रोकना ही भारत और इसराइल की अर्थव्यवस्थाओं के साथ ही वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी है.

भारत की ओर से जारी किए गए बयान में भी कमोबेश यही जानकारी दी गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने ट्वीट में ये ज़िक्र किया कि उन्होंने नेतन्याहू के साथ समुद्री आवाजाही से जुड़ी सुरक्षा को लेकर अपनी चिंताओं पर चर्चा की.

अब तक क्या हुआ है?

इसराइल और हमास के बीच अक्तूबर में जंग शुरू होने के बाद ही हूती गुट ने अपने हमले तेज़ कर दिए.

अरब देशों में सबसे गरीब मुल्कों में गिने जाने वाले यमन में साल 2014 से हूती विद्रोहियों और सरकार के बीच संघर्ष जारी है. हूती विद्रोही यमन में उत्तरी इलाके के शिया मुसलमान हैं.

राजधानी सना सहित उत्तरी यमन में हूती गुट का कब्ज़ा है. इस गुट को ईरान का समर्थन मिलता है.

ईरान और इसराइल एक-दूसरे के धुर विरोधी मुल्क हैं. ईरान ने युद्ध की शुरुआत से ही फ़लस्तीन के प्रति समर्थन दिखाया है.

हूतियों ने कहा है कि वे ग़ज़ा में फ़लस्तीनी चरमपंथियों पर इसराइली सेना की कार्रवाई के विरोध में ये हमले कर रहे हैं.

ईरान समर्थित ये विद्रोही गुट बाब अल-मंदाब स्ट्रेट से गुज़रने वाले विदेशी मालवाहक जहाज़ों पर ड्रोन और रॉकेटों से हमले कर रहा है. ये एक 20 मील चौड़ा चैनल है जो अफ़्रीका की ओर से एरिट्रिया और जिबूती को बांटता है और अरब सागर में यमन को.

जहाज़ आमतौर पर दक्षिण से मिस्र की स्वेज़ नहर पहुंचने के लिए और आगे उत्तर की ओर बढ़ने के लिए इसी रास्ते से जाते हैं.

लेकिन हूती विद्रोहियों के हमले और भविष्य में दूसरे हमलों के खतरे को देखते हुए दुनिया की कई बड़ी-बड़ी शिपिंग कंपनियों ने अपने जहाज़ों को इस रास्ते से भेजना बंद कर दिया है. उन्हें अब बड़े रास्तों से भेजा जा रहा है.

भारत पर क्या पड़ सकता है असर?

एस एंड पी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में सप्लाई चेन रिसर्च के प्रमुख क्रिस रॉजर्स का कहना है कि लाल सागर में जहाज़ों के लंबा रास्ता लेने की वजह से उपभोक्ता सामग्रियों की आपूर्ति पर ‘बहुत बड़ा असर’ देखने को मिलेगा.

दुकानों तक ज़रूरी सामान पहुंचने में देर हो सकती है क्योंकि केप ऑफ़ गुड से गुज़रने की वजह से हर जहाज़ को 10 दिन अधिक सफर करना पड़ेगा.

ये लंबा रास्ता कंपनियों पर आर्थिक बोझ भी बढ़ाएगा. पिछले सप्ताह शिपिंग रेट में चार फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई. ये बढ़त कारोबारियों से होते हुए आखिरकार उपभोक्ताओं की जेब पर भी असर करेगी.

आशंका ये भी है कि मौजूदा बाधाओं की वजह से तेल के दामों में उछाल आएगा, जिससे ईंधन महंगा हो सकता है.

भारत के निर्यातकों के अनुसार लाल सागर में चल रहे मौजूदा सुरक्षा खतरे की वजह से यूरोप और अफ़्रीका जाने वाले भारतीय सामान का भाड़ा करीब 25-30 फ़ीसदी बढ़ सकता है.

अधिकांश बीमा कंपनियों ने हूती विद्रोहियों के एक जहाज़ पर बैलिस्टिक मिसाइल दागने के बाद लाल सागर से गुज़रने वाले मालवाहक जहाज़ों को बीमा मुहैया करवाने से इनकार कर दिया है.

कुछ बीमा कंपनियों ने तो 5,200 डॉलर तक वॉर रिस्क सरचार्ज भी वसूलना शुरू कर दिया है. ये राशि माल भाड़े के अतिरिक्त है.

बड़ी-बड़ी शिपिंग कंपनियों ने इस रास्ते से अपने मालवाहक जहाज़ों की आवाजाही रोक दी है. बहुत से एशियाई, अफ़्रीकी देश और यूरोप के देशों को भारत जो भी सामान बेचता है, वो लाल सागर के ज़रिए बेचते हैं. भारत इस रास्ते से मुख्यतः पेट्रोलियम पदार्थ, दालें और मशीनी उपकरण भेजता है. मोटा-मोटी भारत के ट्रेड का 30 फ़ीसदी इसी रास्ते से होकर जाता होगा.

ऐसे में ये संकट भारत के लिए कितना बड़ा ख़तरा हो सकता है?

वाणिज्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइज़ेशन के डायरेक्टर जनरल और सीईओ डॉक्टर अजय सहाय कहते हैं, “अभी जो गतिविधियां हैं उसने अनिश्चतता बढ़ा दी है क्योंकि जो दुनिया की 10 सबसे बड़ी शिपिंग लाइन्स हैं, उनमें से सात ने बोला है कि वो रेड सी में नहीं जाएंगे. इससे चुनौतियां बढ़ गई हैं.हालांकि, कुछ देशों ने मिलकर पट्रोलिंग के लिए जो गठबंधन बनाया है, उससे अगले सात से 10 दिनों में स्थितियां सुधरने की संभावना है.”

डॉक्टर सहाय का मानना है कि अभी भी काफ़ी नुकसान हो गया है. क्योंकि काफ़ी सारा माल जो भारत में आना था वो नहीं आ रहा है. जहाज़ रुके हुए हैं. कुछ शिपिंग लाइन्स केप ऑफ़ गुड के रास्ते ट्रांसपोर्ट जारी रखने की बात कर रही हैं, लेकिन इससे समय भी बहुत ज़्यादा लगेगा. अगर ये समस्या जल्दी हल हो जाती है, तो ये नुक़सान क्षणिक होगा लेकिन अगर ये मामला खींचेगा तो वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी उभरती चुनौती हो सकती है.

सहाय कहते हैं, “अगर ये समस्या चलती रही तो भारत में पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ सकते हैं, जो कि अभी काफ़ी कम हैं. अगर जैसे मध्य पूर्व के देश पेट्रोल सप्लाई नहीं कर पाएंगे, तो एनर्जी प्राइस बढ़ सकते हैं. अगर ये लंबा चलता है तो भारत के निर्यात पर भी असर पड़ने की आशंका है. तत्कालिक असर यही है कि भारत के लोगों को पेट्रोल-डीज़ल के लिए ज़्यादा कीमतें देनी पड़ेंगी.”

क्यों ज़रूरी है ये रास्ता?

करीब 2000 किलोमीटर लंबा लाल सागर स्वेज़ नहर के ज़रिए भूमध्य सागर से हिंद महासागर को जोड़ता है.

वर्ष 1869 में स्वेज़ नहर के बनने से पहले यूरोप से एशिया के बीच आवाजाही के लिए जहाज़ों को दक्षिण अफ़्रीका के केप ऑफ़ गुड से होकर गुज़रना पड़ता था. स्वेज़ नहर से जहाज़ों के सफ़र में लगने वाला समय तो घटा ही, साथ में लंबे रास्ते के लिए संसाधनों की ज़रूरत भी घटी.

स्वेज़ नहर से होकर हिंद महासागर से आने और जाने वाले किसी भी जहाज़ को बाब-अल-मंदाब और लाल सागर से आना पड़ता है.

स्वेज़ नहर एशिया और यूरोप के बीच सबसे छोटा रास्ता है. कच्चे तेल और लिक्विफ़ाइड नैचुरल गैस यानी एलएनजी को एक से दूसरी जगह लाने-ले जाने के लिहाज से ये अहम है.

एनालिटिक्स फ़र्म वॉर्टेक्सा के अनुसार साल 2023 के शुरुआती छह महीनों में हर दिन करीब 90 लाख बैरल तेल स्वेज़ नहर से गुज़रा.

एस एंड पी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस के विश्लेषक कहते हैं कि एशिया और खाड़ी देशों से यूरोप, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका पहुंचने वाला 15 फ़ीसदी सामान समुद्र के रास्ते ही भेजा जाता है. इननें 21.5 फ़ीसदी रिफ़ाइंड तेल और 13 फ़ीसदी से अधिक कच्चा तेल भी शामिल है.

लेकिन बात सिर्फ़ तेल की नहीं है. कंटेनर जहाज़ टीवी, कपड़े, खेल उपकरण सहित दुकानों में दिखने वाली हर तरह की उपभोक्ता सामग्री इस रास्ते से ले जाते रहे हैं.

क्या लाल सागर के रास्ते का कोई विकल्प है?

इस पर सहाय कहते हैं, “ये लंबे रास्ते हैं. जिसमें 10 से 14 दिन ज़्यादा समय लगेगा और इससे ट्रेड कॉस्ट भी 30 से 40 फ़ीसदी तक बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर आम लोगों पर भी आएगा.”

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प्रियंका झा
पदनाम,बीबीसी संवाददाता

यमन: हूती विद्रोही कौन हैं और वो लाल सागर में इसराइल के जहाजों को क्यों बना रहे हैं निशाना

यमन के बड़े हिस्से पर नियंत्रण रखने वाले हूती विद्रोहियों ने लाल सागर से होकर इसराइल जाने वाले सभी जहाज़ों को निशाना बनाने की चेतावनी दी है.

नवंबर में हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में एक मालवाहक जहाज़ को हाइजैक कर लिया था.

इस जहाज़ के मालिक का संबंध इसराइल से हो सकता है. पिछले दो महीनों में हूती विद्रोहियों ने यहां रॉकेट और ड्रोन से कई व्यापारिक जहाज़ों को निशाना बनाया है.

हमास के हमले के बाद सात अक्टूबर को ग़ज़ा पर इसराइल के जवाबी हमलों की शुरुआत के बाद से ही हूती विद्रोहियों ने इसराइल की ओर कई मिसाइल और ड्रोन छोड़े हैं.

अमेरिका का कहना है कि लाल सागर में मौजूद उसके युद्धपोतों ने इनमें से कुछ मिसाइलों और ड्रोन को मार गिराया था, जबकि कुछ लाल सागर में मिस्र की समुद्री सीमा में गिर गए.

नवंबर 2023 में हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में एक कार्गो शिप अपने क़ब्ज़े में ले लिया था. उनका कहना था कि ये इसराइल का है. वे इसे यमन के तट पर एक जगह ले गए थे.

इसराइल का कहना है कि न तो ये जहाज़ इसराइल का था और न ही इसके क्रू का कोई सदस्य इसराइली था. लेकिन अपुष्ट रिपोर्टें बताती हैं कि इस जहाज़ का मालिक एक इसराइली नागरिक हो सकता है.

तीन दिसंबर के बाद से हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में कई सारे व्यापारिक जहाज़ों को निशाना बनाया है. इसके लिए उन्होंने यमन के तट पर अपने नियंत्रण वाले इलाक़े से ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया है.

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांसीसी युद्धपोतों ने हवा से मार करने वाले ऐसे कई हथियारों को मार गिराया, फिर भी बहुत से जहाज़ इनकी चपेट में आ गए.

दुनिया की सबसे बड़ी मालवाहक कंपनी, मेडिटेरेनियन शिपिंग कंपनी, ने कहा है कि वह अपने जहाज़ों को लाल सागर से हटा रही है.

फ्रांसीसी कंपनियों सीएमए सीडीएम, डेनमार्क की कंपनी मेर्स्क, जर्मन कंपनी हैपेग-लॉयड और तेल कंपनी बीपी ने भी ऐसा ही फ़ैसला लिया है.

मध्य पूर्व में अमेरिका की सैन्य गतिविधियों की देखरेख करने वाले सेंटकॉम ने कहा है, “ये हमले भले ही यमन से हूती विद्रोहियों ने किए हों, लेकिन ये पूरी तरह ईरान ने करवाए हैं.”

अमेरिका ने एक नौसैनिक टास्कफ़ोर्स बनाने का प्रस्ताव रखा है ताकि व्यापारिक जहाजों को हूती विद्रोहियों से हमलों से बचाया जा सके.

कौन हैं हूती और उनका मक़सद क्या है?

हूती यमन के अल्पसंख्यक शिया ‘ज़ैदी’ समुदाय का एक हथियारबंद समूह है.

इस समुदाय ने 1990 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के कथित भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए इस समूह का गठन किया था.

उनका नाम उनके अभियान के संस्थापक हुसैन अल हूती के नाम पर पड़ा है. वे ख़ुद को ‘अंसार अल्लाह’ यानी ईश्वर के साथी भी कहते हैं.

2003 में अमेरिका के नेतृत्व में इराक़ पर हुए हमले में हूती विद्रोहियों ने नारा दिया था, “ईश्वर महान है. अमेरिका का ख़ात्मा हो, इसराइल का ख़ात्मा हो. यहूदियों का विनाश हो और इस्लाम की विजय हो.”

उन्होंने ख़ुद को हमास और हिज़्बुल्लाह के साथ मिलकर इसराइल, अमेरिका और पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ ईरान के नेतृत्व वाली ‘प्रतिरोध की धुरी’ का हिस्सा बताया था.

यूरोपियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पीस के एक विशेषज्ञ हिशाम अल-ओमेसी कहते हैं कि इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हूती क्यों खाड़ी से इसराइल की ओर जा रहे जहाज़ों को निशाना बना रहे हैं.

वह कहते हैं, “दरअसल वे अब औपनिवेशकों से लड़ रहे हैं. वे इस्लामिक राज्य के दुश्मनों से लड़ रहे हैं. यह विचार उनके आधार के साथ अच्छे से मेल भी खाता है.”

यमन के बड़े इलाक़े पर कैसे नियंत्रण कर पाए हूती?
यमन में 2014 की शुरुआत में हूती राजनीतिक रूप से काफ़ी मज़बूत हो गए, जब वे राष्ट्रपति के पद पर अली अब्दुल्ला सालेह के उत्तराधिकारी बने अब्दरब्बुह मंसूर हादी के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए.

उन्होने अपने दुश्मन रहे सालेह के साथ एक समझौता किया और उन्हें फिर से सत्ता में लाना चाहा.

यमन के उत्तर में हूती सादा प्रांत पर नियंत्रण करने में सफल रहे और साल 2015 की शुरुआत में उन्होंने राजधानी सना पर क़ब्ज़ा कर लिया. ऐसे में राष्ट्रपति हादी यमन छोड़कर विदेश भाग गए.

यमन के पड़ोसी देश सऊदी अरब ने सैन्य दख़ल दिया और हूती विद्रोहियों को हटाकर फिर से हादी को सत्ता में लाने की कोशिश की. उसे यूएई और बहरीन का भी साथ मिला हुआ था.

हूती विद्रोहियों ने इन हमलों का सामना किया और यमन के बड़े हिस्से पर नियंत्रण बनाए रखा.

उन्होंने साल 2017 में अली अब्दुल्लाह सालेह की हत्या कर दी, जब उन्होंने पाला बदलकर सऊदी अरब के साथ जाने की कोशिश की थी.

इन विद्रोहियों की मदद कौन करता है?
हूती विद्रोही लेबनान के सशस्त्र शिया समूह हिज़बुल्लाह के मॉडल से प्रेरणा लेते हैं.

अमेरिका के रीसर्च इंस्टिट्यूट ‘कॉम्बैटिंग टेररिज़म सेंटर’ के अनुसार, हिज़्बुल्लाह ही उन्हें 2014 से बड़े पैमाने पर सैन्य विशेषज्ञता और ट्रेनिंग दे रहा है.

हूती ख़ुद को ईरान का सहयोगी भी बताते हैं क्योंकि उनका साझा दुश्मन है सऊदी अरब.

शक जताया जाता है कि हूती विद्रोहियों को ईरान हथियार भी दे रहा है.

अमेरिका और सऊदी अरब कहते हैं कि ईरान ने हूती विद्रोहियों को बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस किया था, जिनका इस्तेमाल 2017 में सऊदी अरब की राजधानी रियाद पर हमले के लिए किया गया था. इन मिसाइलों को हवा में ही मार गिराया गया था.

सऊदी अरब ने ईरान पर हूती विद्रोहियों को क्रूज़ मिसाइल और ड्रोन देने का भी आरोप लगाया है, जिन्हें 2019 में सऊदी अरब के तेल कारखानों पर हमले के लिए इस्तेमाल किया गया था.

हूती विद्रोही सऊदी अरब पर कम रेंज वाली हज़ारों मिसाइल दाग़ चुके हैं और उन्होंने यूएई को भी निशाना बनाया है.

इस तरह के हथियारों की सप्लाई करने का मतलब है संयुक्त राष्ट्र की ओर से हथियारों पर लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन करना. लेकिन ईरान इन सभी आरोपों को खारिज करता है.

कितने ताक़तवर हैं हूती और यमन के कितने हिस्से पर है उनका नियंत्रण?

अप्रैल 2022 में अब्दरब्बुह मंसूर हादी ने प्रेसिडेंशियल लीडरशिप काउंसिल को अपनी शक्तियां सौंपी थीं. ये काउंसिल सऊदी अरब की राजधानी रियाद से काम करती है. उसे ही यमन की आधिकारिक सरकार माना जाता है.

हालांकि, यमन की ज़्यादा आबादी हूती विद्रोहियों के नियंत्रण में रहती है. उनका संगठन देश के उत्तरी हिस्से में टैक्स वसूलता है और अपनी मुद्रा भी छापता है.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने हूती आंदोलन के विशेषज्ञ, अहमद अल-बाहरी के हवाले से कहा था कि 2010 तक हूती विद्रोहियों के पास 1,00,000 से 1,20,000 तक समर्थक थे. इनमें हथियारबंद लड़ाके और बिना हथियारों वाले समर्थक शामिल थे.

संयुक्त राष्ट्र यह भी कहता है कि हूती विद्रोहियों ने बच्चों को भी भर्ती किया था, जिनमें से 1500 की साल 2020 में हुई लड़ाई में मौत हो गई थी और अगले साल कुछ सौ और बच्चे मारे गए थे.

हूती लाल सागर के एक बड़ी तटीय इलाक़े पर नियंत्रण रखते हैं. यहीं से वे जहाज़ों को निशाना बना रहे हैं.

यूरोपियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पीस के एक विशेषज्ञ हिशाम अल-ओमेसी कहते हैं कि इन हमलों से उन्हें सऊदी अरब के साथ जारी शांति वार्ता में अपना पलड़ा भारी करने में मदद मिली है.

वह कहते हैं, “ये दिखाकर कि वे बाब अल-मंदब यानी कि लाल सागर के पतले से समुद्री रास्ते को बंद कर सकते हैं, उन्होंने सऊदी अरब पर रियायतें देने का दबाव बढ़ा दिया है.”

Wajidkhan
@realwajidkhan
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#ब्रेकिंग_न्यूज़
57 मुस्लिम देशों में से यमन के बाद मलेशिया ने इजराइल के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है और इजराइली जहाजों को मलेशियाई बंदरगाहों पर जाने से रोकने का आदेश दिया है.

Hend F Q
@LadyVelvet_HFQ
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37m
Israël is bombing the refugee camp in the south of Gaza. Killing and burning alive children and babies as usual.


Wajidkhan
@realwajidkhan
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3h
⚡️ब्रेकिंग

इज़राइली वित्तीय समाचार पत्र ग्लोब्स ने बताया कि इज़राइली शिपिंग कंपनियों ने अपने बाजार मूल्य का लगभग 23% खो दिया है, जो अरबों डॉलर के नुकसान का प्रतिनिधित्व करता है।

हौथिस ने इजरायली अर्थव्यवस्था पर एक छोटा परमाणु बम गिराया है।


Wajidkhan
@realwajidkhan
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3h
⚡️ब्रेकिंग

इज़राइली वित्तीय समाचार पत्र ग्लोब्स ने बताया कि इज़राइली शिपिंग कंपनियों ने अपने बाजार मूल्य का लगभग 23% खो दिया है, जो अरबों डॉलर के नुकसान का प्रतिनिधित्व करता है।

हौथिस ने इजरायली अर्थव्यवस्था पर एक छोटा परमाणु बम गिराया है।

महमूद सय्यद 🇮🇳
@AfrozjaleelSyed
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11m
यमन को मिला मलेशिया का साथ
🇮🇱🇲🇾इजरायल के शिपिंग निर्यात-आयात के खिलाफ प्रतिबंध धीरे-धीरे वैश्विक होते जा रहे हैं। मलेशिया ने इजरायल स्थित ZIM शिपिंग कंपनी को देश के बंदरगाहों में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया, यह निर्णय 4 सप्ताह में प्रभावी होगा। 1/2

The Jerusalem Post
@Jerusalem_Post
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Israel wants ‘peaceful Palestinian government’ in post-war Gaza – spokesperson

PM Netanyahu’s spokesperson Ofir Gendelman stated that Israel is seeking, “for the first time, a peaceful Palestinian government that wants to live alongside Israel.”

M.M. Dhera(Advocate)
@AdvocateDhera
21 मार्च 1933.

हिटलर की संसद राइखस्ताग ने एक नया कानून पास किया।

कहा गया कि जो कोई भी सत्ता या सत्ता पर काबिज नेताओं की आलोचना करेगा, उसे दुर्भावना मानकर अपराधी कहा जायेगा।

यहां तक कि सत्ता को लेकर कहानियां या मजाक भी बर्दाश्त नहीं होगा।

और सजा? जेल या फिर जर्मन कंसंट्रेशन कैंप में सड़ने के लिए डाल दिया जायेगा।

झुठलर की सत्ता ने आज 2 और सांसदों को बाहर किया है। कुल 143 हो गए।

नाज़ी सत्ता की भारतीय अवाम अपने झुठलर को और बेरहम होते देखना चाहती है।

चुपचाप। सिर्फ़ 5 किलो राशन के लिए।

Wajidkhan
@realwajidkhan
#ब्रेकिंग_न्यूज़

⭕ यमन की सीमा में इजरायली जहाजों पर हमले के दौरान इजरायल जाने वाले जहाजों ने चीनी नौसैनिक जहाजों से मदद मांगी।

लेकिन चीनी सैन्य जहाजों ने इजराइल जा रहे जहाजों की मदद करने से इनकार कर दिया

हालाँकि इनमें से कुछ जहाज हांगकांग की एक कंपनी के थे

मशहूर समाचार एजेंसी AP की रिपोर्ट।


Wajidkhan
@realwajidkhan
🔴 “ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन” पर यमनी हौथिस की टिप्पणी:

जो कोई भी विवाद बढ़ाना चाहता है, उसे अपने कृत्य का परिणाम भुगतना होगा।’

अमेरिका द्वारा बनाए गए गठबंधन का उद्देश्य इजरायल की रक्षा करना और बिना किसी औचित्य के सैन्य उद्देश्यों के लिए समुद्र का उपयोग करना है।

यमन गाजा के समर्थन में अपने वैध कार्यों को नहीं रोकेगा।