मनोरंजन

वाह रे कन्हैयालाल……क्या अंदाज़-बयां है……

𝐊𝐚𝐧𝐡𝐚𝐢𝐲𝐚𝐥𝐚𝐥 𝐂𝐡𝐚𝐭𝐮𝐫𝐯𝐞𝐝𝐢
𝐃𝐢𝐞𝐝: 𝟏𝟒 𝐀𝐮𝐠𝐮𝐬𝐭 𝟏𝟗𝟖𝟐
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वाह रे कन्हैयालाल,…… क्या अंदाजे-बयां है। ……
जब भी आप पर्दे पर आते है कुछ ऐसा रंग जम जाता है कि धुले नही धुलता। चरित्र-नायक और खलनायक तो बहुत हुए है और आगे भी होंगे, पर आप में जो अदाएं है, वे भुलाये भूली नही जाती। वाह रे, कन्हैयालाल! अब बूढ़े हो रहे हो पर अभिनय में अभी भी वैसी ही तरंग, वैसी ही जवानी, वैसी ही ताज़गी, वैसी ही उमंग है जिसकी छाप मिटाये नही मिटती।
कन्हैयालाल जी, आप तो पूरे बनारसी है यदि आपके रूप-रंग, चाल-ढ़ाल हाव-भाव को देखकर हम आपको कन्हैयालाल बनारसी कहें तो ज्यादा अच्छा लगेगा। बनारसीपान की तरह आपके रोल भी विख्यात हो गये हैं। तीन दशक से अधिक समय से आप कंजूस सेठ, कठोर साहूकार, बदमाश मुनीम, लालची बनिया, चालाक नौकर, बेईमान पोस्टमेन, झूठे गवाह, गांव में फूट की आग लगाने वाले विभीषण की और न जाने कितनी भूमिकाएं कर चुके हैं और कर रहे हैं और भगवान करे आगे भी करते रहें। आपके भोलेपन के नीचे दबा खलनायक अंगार की तरह धधक रहा है और चरित्र-चित्रण की तरह चमक रहा है।
अब तक आपने जो भी रोल किये, अपनी-अपनी अदाओं के साथ जमकर उदाहरण बन गये। आज तो हाल यह है कि पर्दे पर धोती कुर्ता, गंजी या गंवाई जाकेट, साफा या गंवाई टोपी, हाथ में छड़ी या छाता धारण किये मूंछोवाली कोई छाया भी नज़र आ जाये तो दर्शक आपको पहचान कहेंगे ये तो कन्हैयालाल है फिर भी आश्चर्य की बात है कि आपके अभिनय में एड़ी से चोटी तक खालिस भूमिकाएं पसंद की जाती है। किसी ने कहा असली बनारसी ठग हैं तो कन्हैयालाल ही, जो हर भूमिका में अपना रूप रंग और हाव-भाव बदल कर दर्शकों को ठग लेते हैं।
वस्तुत: देखा गया है कि आप एक्टिंग के लिए एक्टिंग नहीं करते बल्कि उसे जिंदगी का रस समझकर पात्र के चरित्र को बारीकी के साथ पेश करने की पूरी कोशिश करते हैं। यही वजह है कि चलने में, उठने में, हंसने में, आंखे मटका कर बातें करने में, चुटियां लटका कर गंवाई भोलेपन के साथ बातें करने में किसी को फंसाने के लिए जाल रचने की क्रिया में, यहां तक कि हंसने और खांसने तक में आपका मैनेरिज़्म कुछ इस तरह का होता है कि रोल में जान आ जाती है। वैसे आपके रोल बंधे-बंधाये रहते हैं और जब परदे पर आपका नाम आता है तो दर्शक कुछ