दुनिया

ग़ज़ा इस्राईल की बर्बरता पर संयुक्त स्टैंड नहीं ले पा रहा है यूरोपीय संघ : रिपोर्ट

यूरोपीय परिषद की दो दिवसीय बैठक समाप्त हुई लेकिन 27 सदस्य देश इस बात पर सहमत नहीं हो सके कि बैठक के समापन घोषणा पत्र में किस प्रकार ग़ज़ा के मसले को बयान करें।

यूरोपीय संघ के विदेश नीति विभाग के अधिकारी जोज़ेप बुरेल ने शुक्रवार की शाम यूरोपीय काउंसिल की बैठक की समाप्ति पर साफ़ साफ़ कहा कि ग़ज़ा के हालात के बारे में यूरोपीय देश संयुक्त स्टैंड लेने में नाकाम रहे।

मगर यूरोपीय परिषद के प्रमुख चार्ल्ज़ मिशेल ने टूट स्टेट समाधान के बारे में यूरोपीय देशों के संयुक्त स्टैंड का नाम लिया और वेस्ट बैंक में सेटलर्ज़ के अपराधों की निंदा के बारे में अपनी बात रखते हुए दरअस्ल ग़ज़ा पट्टी की त्रास्दी पर यूरोपीय संघ की ख़ामोशी पर पर्दा डालने की कोशिश की। उन्होंने दावा किया कि यह बैठक इस बारे में नहीं थी कि घोषणापत्र में ग़ज़ा के हालात के बारे में क्या स्वर अपनाया जाए बल्कि पिछले बयान में परिषद का स्टैंड बयान किया जा चुका है। हालांकि इस बैठक से पहले मिशेल ने यूरोपीय नेताओं को लिखे पत्रा में कहा था कि मध्यपूर्व के हालात हमारे एजेंडा का प्रमुख मुद्दा होगा। हमें सारे क़ैदियों की रिहाई की मांग करनी चाहिए और ग़ज़ा में चिंताजनक मानवीय स्थिति पर तवज्जो देने पर ज़ोर देना चाहिए। जबकि परिषद की बैठक के समापन पर जारी होने वाले बयान में बस एक वाक्य कहा गया है कि परिषद ने मध्यपूर्व के बारे में स्ट्रैटेजिक बहसें कीं।

ग़ज़ा जंग के बारे में यूरोपीय देशों के बीच मतभेद फ़िलिस्तीन के बारे में इन देशों की सोच और नज़रिए में गहरे अंतर का नतीजा है। कुछ यूरोपीय देश जैसे स्पेन, आयरलैंड और बेल्जियम कहते हैं कि फ़िलिस्तीनी स्टैट को मान्यता दी जाए और ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराधों की निंदा की जाए। मगर यूरोप में अमरीका के क़रीबी घटक जैसे जर्मनी, आस्ट्रिया और चेक रिपब्लिक का मानना है कि इस्राईल का खुलकर समर्थन किया जाना चाहिए। तेल अबीब की तरह यह देश भी चाहते हैं कि ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के अपराध लगातार जारी रहना चाहिए। ग़ज़ा में संघर्ष विराम के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पास होने वाले प्रस्ताव पर भी आस्ट्रिया और चेक रिपब्लिक ने अमरीका की तरह विरोध में मतदान किया था। फ़्रांस ने बीच का रास्ता चुनते हुए इस्राईल के सेल्फ़ डिफ़ेंस के अधिकार की बात कही थी और इस तरह ग़ज़ा में हो रहे नरसंहार का समर्थन किया था मगर दूसरी तरफ़ यह भी कहा था कि आम नागरिकों का नरसंहार बंद होना चाहिए। ब्रिटेन ने भी अमरीका और जर्मनी जैसा स्टैंड लिया। इस मतभेद की वजह से यूरपीय परिषद ग़ज़ा के बारे में कोई संयुक्त स्टैंड नहीं ले पायी।

इस स्थिति को लेकर यूरोप के भीतर काफ़ी आलोचना भी की जा रही है। आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वारादकार एक बयान में कहा कि यूरोपीय संघ ग़ज़ा के बारे में संयुक्त और मज़बूत स्टैंड लेने में असमर्थ है और इस ब्लाक ने अपनी साख गवां दी है। यूरोपीय परिषद की बैठक से पहले भी उन्होंने एक बयान में कहा कि मैं यूरोपीय नेताओं से कहना चाहता हूं कि फ़िलिस्तीन के बारे में मज़बूत स्टैंड न ले पाने की वजह से यूरोपीय संघ अपनी साख को भारी नुक़सान पहुंचा चुका है। उनका कहना था कि हमारे बारे में दोहरे मापदंड पर अमल करने के आरोप लग रहे हैं और यह बेबुनियाद भी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हमें मज़बूत बयान की ज़रूरत है जिसमें आतंकवाद की निंदा के साथ ही संघर्ष विराम की बात की जाए और टू स्टेट समाधान के तहत फ़िलिस्तीनियों को उनका अधिकार दिया जाए।

मगर यूरोपीय परिषद के बयान से ज़ाहिर हो गया कि यूरोप में कई देश अमरीका की नीतियों और इच्छाओं से प्रभावित हैं और ज़ायोनी शासन के समर्थन में दोहरे मापदंड पर अमल छोड़ने को तैयार नहीं हैं।