साहित्य

मेरे घर के बाजू में एक आंटी अकेले रहती थीं, वो…

लक्ष्मी कान्त पाण्डेय
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करीब 32 साल पुरानी बात है, मेरे घर के बाजू में एक बुजुर्ग आंटी अकेले रहती थीं, वो शासकीय सहायता से गरीब बच्चों के लिऐ स्कूल चलाती थीं , जो आर्थिक योगदान उन्हें मिलता था उससे वो अपना जीवन यापन करती थीं बच्चो को खाने के नाम पर सिर्फ़ लकड़ियों से मार खाते ही देखा , सुना था पति बच्चों से पटती नहीं इसलिए यहां अकेली रहतीं थीं ।

एक साधारण महिला वहां बच्चों को पढ़ाने आती थी, पार्लर में व्यस्त रहने के कारण उनसे कभी मेरी बात हो ही नहीं पाती थी,


एक दिन जोरदार बारिश हो रही थी वो महिला स्कूल आई तो देखा तो ताला लगा हुआ था आंटी काफी कठोर थीं तो वो वहीं खड़ी आंटी के आने का इंतजार करने लगी। मेरी नजर पड़ी तो मैने उन्हें अंदर बुला लिया परिचय हुआ तो उन्होंने बताया पति का देहांत हो चुका है छोटे तीन बच्चे हैं पति पंचायत इंस्पैक्टर थे 700 रुपए पेंशन मिलती है , पिता ने एक रूम दे दिया है , आंटी 150 रुपए पगार देती हैं, इतने में आंटी आ गईं और वो चली गईं ।

उसके बाद आंटी की अनुपस्थिति में हम बातें करने लगे, मैने उनसे कहा, आप इतने कम पैसों में कैसे घर और बच्चे देख पाएंगी अभी तो बच्चे छोटे हैं आगे जाकर खर्च बढ़ेंगे ? वो बोलीं १० वी पास हूं क्या काम करूं ,मेरे मुंह से निकल गया आप रोटी बनाकर ऐसे लोगों को बेचना शुरू करो जिन्हें रोटी बनाना आती नहीं , बहुत सारे बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं कुछ नौकरी कर रहे हैं अकेले रहते हैं, इससे उन्हें भी सहायता होगी आपकी आमदनी भी शुरु हो जाएगी, आप अपनी कॉलोनी में ही शुरू करो… मैंने देखा वो कुछ हिचकिचा रही थीं।

कुछ दिनों बाद ही पतिदेव ने कंपनी चेंज की हम जबलपुर चले गए, करीब ५ साल बाद हम दोबारा इंदौर ट्रांसफर हो कर आए, इस बार हमने पुरानी कॉलोनी के पास ही घर बनाया, पतिदेव के मित्र के बेटे के बर्थडे पार्टी के लिए हम होटल पहुंचे, तभी वो दीदी आई साथ उनके तीनो बच्चे थे, उन्होंने बच्चों से कहा आंटी के पैर छुओ मैने रोका तो बोली भाभी आपकी दिखाई दिशा आज मुझे बहुत कुछ दे गई मैं टिफिन सेंटर चला रही हूं और बच्चों को भी अच्छी तरह पढ़ा भी रही हूं । शुरू में मुझे लगा ये प्रयास विफल होगा, पर ईश्वर की कृपा और आपकी बताई दिशा मुझे सफलता दे ही गई ।

शुभकामना देकर हम घर तो आ गए पर मुझे ये समझ आ गया ईश्वर ही हमारे माध्यम से सबकी सहायता करते हैं कहते हैं न जिव्हा पर सरस्वती का वास होता है , इसलिए शुभ वचन निकले तो वो सत्य भी हो जाते हैं ।
आभार -प्रीति सक्सेना