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सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को एक बार फिर से आड़े हाथो लिया, जानिये क्यों?

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित लोगों को केवल उनके राजनीतिक संबंधों या अदालत में सरकार के खिलाफ मामला लड़ने के कारण चुनिंदा रूप से नजरअंदाज़ न करें।

द हिंदू के मुताबिक, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि सरकार को इस बात को समझना होगा कि 40 प्रतिशत राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं।

पीठ ने कहा कि तो ऐसे लोग हो सकते हैं जो क़ानून अधिकारी के पद पर हों या इन पार्टियों से कुछ संबंध रखते हों।

पीठ ने यह भी कहा कि कॉलेजियम ने कुछ ऐसे वकीलों की सिफारिश की थी जो राजनीतिक रूप से सक्रिय न होने के बावजूद सत्तारूढ़ या विपक्षी दलों से संबंध रखते हैं। जस्टिस कौल ने यह भी कहा कि किसी आपराधिक वकील की विशेषज्ञता, जिसने सरकार के खिलाफ लोगों का बचाव किया है, उसे किसी के खिलाफ नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने जोड़ा, ‘चुनिंदा तरीके से होने वाला चयन रोका जाना चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पीठ ने अटॉर्नी जनरल से यह भी कहा कि वह सरकार से अदालत द्वारा अनुशंसित तबादलों को अधिसूचित करने के लिए कहें, क्योंकि ऐसा करने में विफल रहने से ‘प्रणाली में विसंगति पैदा करती है।

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के सुझावों पर केंद्र सरकार के रवैये को लेकर निरंतर विवाद और बयानबाज़ी होती रही है। 2021 में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि अगर केंद्र सरकार को जजशिप के लिए प्रस्तावित किसी नाम पर कोई आपत्ति है तो वह 18 सप्ताह के भीतर कॉलेजियम को इसे वापस भेजने के लिए बाध्य है।