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हर आदमी सुखी होना चाहता है, लेकिन इससे जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रश्न है : लक्ष्मी सिन्हा का शानदार लेख पढ़िये!

Laxmi Sinha
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हर आदमी सुखी होना चाहता है, लेकिन इससे
जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रश्न है की क्या सुखी होने
के लिए सारे संसार पर अपनी मनमानी चलाना
जरूरी है? सुख की ऐसी शर्त नहीं है। हां, लोभ
की ऐसी शर्त आवश्य है। लोभ जरूर कहता है की
पहले संसार को जीतो, उसे पराजित करो, तब
तुम्हें सुख मिलेगा, पर सच तो यह है कि तब भी
व्यक्ति को सुख नहीं मिल पाता है। गरीबी की
गरिमा, सादगी का सौंदर्य, संघर्ष का हर्ष, समता
का स्वाद और आस्था का आनंद-यए सब हमारे
आचरण से पतझड़ के पत्तों की भांति झर गए हैं।
हृदय से मानवीय- प्रेम या करुणा का संवेदनशील
स्वर, मस्तिष्क से नैतिक चिंतन की अवधारणा
और नाभि से अद्भूत संयम और सम्यक आचरण
का संकल्प कहीं खो गया है।


दो प्रमुख बातें हैं मानव जीवन में। एक है
आवश्यकता और दूसरी है वासना। जीने के
लिए आपको जीवन की सरल आवश्यकताएं तो
पूरी करनी ही होगी। रोटी, वस्त्र और रहने को
एक छोटा- सा मकान यही है आपकी वास्तविक
आवश्यकताएं। इससे आगे जो कुछ भी है वह
वासना है। वासना अर्थात अहंकार, महत्वाकांक्षा
और लोलुपता। इसे पूरा करने का कोई उपाय नहीं
है। ऐसे पात्र जिसमें तली नहीं है, उसमें जो भी
डालेंगे और जितना भी डालेंगे फिर भी वह खाली
ही रहेगा। आवश्यकता कहती है मुझे रोटी चाहिए।
वासना रहती है मुझे स्वर्णथाल में सजी हुई रोटी
चाहिए। आवश्यकता कहती है मुझे वस्त्र चाहिए,
वासना कहती है मुझे अन्य लोगों से सुंदर वस्त्र
चाहिए। आवश्यकता रहती है सिर ढकने को एक
झोपड़ी चाहिए, वासना रहती है मुझे महल चाहिए,
ऐसा महल जो सबसे सुंदर हो, सबसे बड़ा हो।
हमारी इच्छाओं, आदतों और अनुशासित दिनचर्या
में एक अपूर्व ताकत है। हमारी कोशिशें हमें उन्नत
एवं नए रास्तों तक ले जाती है। हमें नहीं भूलना
चाहिए कि मरी हुई मछलियां ही धारा के साथ
बहती है इसलिए प्रवाहपाती होने से बचना चाहिए।

लक्ष्मी सिन्हा, पटना बिहार