साहित्य

* जब सब कुछ मायके से ही लाना है तो काम भी मायके का ही करूंगी ना*

Komal Kumari
===============
* जब सब कुछ मायके से ही लाना है तो काम भी मायके का ही करूंगी ना*
फटाफट रसोई का काम निपटाकर संध्या अपने कमरे में दौड़ी चली आई। बाहर घर के सदस्य सब तैयार हो चुके हैं और संध्या है कि अभी तक तैयार ही नहीं हुई। जानती थी कि अगर दस मिनट के अंदर तैयार नहीं हुई तो सासु मां अच्छा खासा हंगामा कर देगी। क्योंकि पहली बात तो यह कि जब वह तैयार हो जाती तो उनसे सब्र नहीं होता और दूसरी और जरूरी बात कि आज उनकी बेटी रोमा के घर प्रोग्राम था।
यह तो शुक्र मनाओ कि संध्या ने रसोई में जाने से पहले खुद के कपड़े तो निकाल कर रख दिए थे। अब फटाफट हाथ मुंह धोकर कपड़े चेंज कर लिए। हल्का फुल्का मेकअप किया ही था कि इतने में बाहर से पति मयंक की आवाज आने लगी,
” अरे संध्या कितनी देर लगेगी तुम्हें जल्दी आओ। देर हो रही है”
इससे पहले कि संध्या कुछ कहती सासू मां राशि जी ने चिल्लाना शुरू कर दिया,
” अभी खुद के मायके काम होता तो फटाफट तैयार हो जाती। लेकिन यहां तो प्रोग्राम मेरी बेटी के घर पर है तो बस लेट करने में लगी हुई है। जब कह दिया था कि जल्दी तैयार हो जाना तो तैयार नहीं हो सकती थी। बस धीरे-धीरे समय बर्बाद करने में लगी हुई है”
बस अब पता था कि सासु माँ ने चिल्लाना शुरू कर दिया है। अब सब का मूड खराब होना लाजमी है। अब जब तक सब उसे दो चार बातें ना सुना लेंगे तब तक सब को चैन नहीं मिलेगा। खैर संध्या फटाफट अपने सैंडल पहने लगी तो ये क्या सैंडल ही टूट गए। अब उसके पास तो पहनने के लिए कुछ भी नहीं। आखिर मयंक चिल्लाता हुआ कमरे में आया,
” क्या है संध्या तुम अभी तक तैयार नहीं हुई हो। सब बाहर तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। बेचारी रोमा भी वहां हम लोगों का इंतजार कर रही होगी”
उसे देखकर संध्या ने अपने टूटे हुए सैंडल दिखाते हुए कहा,
” मैं क्या करूं मयंक जी? मेरे सैंडल ही टूट गए हैं और मेरे पास दूसरी भी नहीं है”
” हे भगवान! तुम इतनी लापरवाह कैसे हो सकती हो? एक और जोड़ी एक्स्ट्रा में नहीं रख सकती हो। जाकर देखो मम्मी की कोई सैंडल रखी हो तो वो पहन लो”
” पर मम्मी जी के सेंडल मुझे कैसे आएंगे? मम्मी जी के पैर मुझसे छोटे हैं”
संध्या ने भी धीरे से कहा। इतने में सासु मां भी दन-दनाती हुई कमरे में आ गई और चिल्लाते हुए बोली,
“अरे चलना नहीं है क्या तुम दोनों को? देर हो रही है” फिर संध्या के हाथ में टूटे हुए सैंडल देखकर चिल्लाते हुए बोली,
” बस शुरू हो गया इसका तमाशा। कभी एक दिन भी ऐसा गया है कि जब कहीं जाना हो और इसने तमाशा शुरू ना किया हो। अब शुभ काम में जा रहे हैं तो तोड़फोड़ मचा रखी है। यहां मेरे नवासे का जन्मदिन है और ये कामचोर सामने ये टूटी हुई चप्पल लेकर आ गई”
संध्या ने अपने आप को संभालते हुए कहा,
” पर मम्मी जी मैंने जानबूझकर तो नहीं तोड़ा ना। ये काफी पुराने हो गए थे। उस दिन मैंने आपसे कहा भी था कि मम्मी जी मुझे सैंडल लानी है पर आपने मुझे पैसे देने से मना कर दिए थे”
बेटे के सामने अपनी पोल खोलती देखकर सासू मां संध्या पर चिल्लाते हुए बोली,
” हां तो पैसे का पेड़ पर उगते हैं क्या? तेरे मायके गई थी तब ले आती ना वहां से। क्या इतना सा तेरे मायके वालों को नहीं दिखता? और मैं तो तुझे लेकर जा ही रही थी ना बाजार लेकिन अब तेरे काम ही पूरे नहीं हो तो मैं क्या कर सकती हूं ?जिसको नाटक करना है वो तो कहीं से भी कुछ भी नाटक कर लेता है”
मयंक ने बात संभालते हुए कहा,
” पर अब क्या करें मम्मी? एक काम करते हैं रास्ते में से नए सैंडल दिला देंगे”
मयंक की बात सुनकर वो जोर से चिल्लाई,
” हां, हम तो फालतू बैठे हैं। अब समय व्यर्थ नहीं होगा। रहने दे इसे यहीं पर जब घर में अकेली रहेगी तो अकल ठिकाने आ जाएगी”
” पर मम्मी..”
मयंक इससे पहले कुछ कहता उसके फोन पर रोमा का फोन आने लगा। जिसे देखकर सासू मां ने कहा,
” जरूर रोमा का ही फोन होगा। उसे क्यों उसके ससुराल में शर्मिंदा कर रहे हो। चलो जल्दी, रहने दो इसे घर पर”
मयंक भी ज्यादा कुछ कह ना पाया और संध्या को घर पर ही छोड़कर सब लोग रवाना हो गए। संध्या की आंखों में आंसू आ गए। शादी को दो साल हो गए पर हर छोटी चीज के लिए वो मोहताज हो जाती है या यूं कहे मोहताज कर दी जाती है। मयंक अपनी सारी सैलरी अपनी मां के हाथों में रखता। यहां तक की संध्या के हाथों में कुछ ना देता। संध्या अगर जरूरत भर के पैसे भी मांगती तो उससे कह देता कि मां से ले लो।
और इधर सासू मां और भी महान। संध्या जब जरूरत पड़ने पर पैसे मांगती तो सासू मां का जवाब होता कि अपने मायके वालों से ले लो। मेरे पास फालतू पैसे खर्च करने के लिए नहीं हैं। सोचते सोचते ही संध्या की आंखों में से आंसू बहे जा रहे थे। आज सिर्फ एक चप्पल के कारण उसे ये लोग घर छोड़ कर चले गए। अब क्या अपनी चप्पल लेने भी वो मायके जाएगी।
खैर जैसे-तैसे रात निकली। संध्या ने किसी से कोई बात नहीं की। दूसरे दिन सुबह के 8:00 बज गए लेकिन किसी को चाय नसीब तक नहीं हुई। आखिर सासू मां को चाय नहीं मिली तो वे बाहर आकर चिल्लाने लगी,
” आज चाय मिलेगी कि नहीं? पता नहीं कहां चली गई कामचोर। किस्मत खराब है मेरी, जो ऐसी बहू मेरे पल्ले पड़ी है”
थोड़ी देर बाद संध्या अपने कमरे से तैयार होकर बैग लेकर बाहर निकली तो उसे देखकर सासु मां बोली,
” ये सुबह-सुबह कहां बन ठन के निकली? अभी तक तो हमने चाय भी नहीं पी। घर का काम कौन करेगा”
सासु मां की बात सुनकर संध्या मुस्कुरा कर बोली,
” सासु मां अपने मायके जा रही हूं नयी चप्पल लेने के लिए”
उसकी बात सुनकर सासु माँ तमतमाते हुए बोली,
” जहां जाना है वहां जा। पर पहले घर का काम करके जा। चाय नाश्ता तैयार करके जा”
” ऐसा है सासू मां कि जब सब कुछ मुझे मेरे मायके वालों से ही लेना है तो काम भी मायके वालों का ही करूंगी ना। अब आप लोगों की तो औकात नहीं है तो चप्पल खरीदने उन्हीं के पास जाना पड़ेगा। आपका घर है आप लोग कीजिए अपने घर का काम”
सासु मां ने गुस्से में मयंक की तरफ देखा तो मयंक भी नजरें झुका कर बैठा हुआ था,
” अरे तू कुछ बोलता क्यों नहीं है?”
” क्या बोलूं मैं? मैं तो कल भी कुछ नहीं बोला था आज भी कुछ नहीं बोलूंगा। मुझे तो संध्या का कहना भी गलत नहीं लग रहा”
मयंक ने कहा तो सासू मां उसे डाँटते हुए बोली,
” तो तुझे तेरी मां ही गलत लग रही है”
“नहीं मां आप भी गलत नहीं है। गलत तो मैं हूं। मैं ये भूल गया था कि मैं शादीशुदा हूं। मेरी पत्नी को भी खर्चों के लिए पैसों की जरूरत पड़ती होगी तो कुछ खर्चा उसके हाथ में भी मुझे देना चाहिए था। और मैं नालायक सारी सैलरी आपके हाथ में लाकर देता था। पर अब नहीं। अब मैं सारी सैलरी आपके हाथ में देने की जगह कुछ खर्चा संध्या के हाथ में जरूर दूंगा ताकि उसे कोई भी सामान खरीदने के लिए मायके का मुंह देखना पड़े”
आखिर बेटे को बहू का पक्ष बोलते देखकर सासू मां से कुछ कहते हैं ना बना। वही उस दिन मयंक में छुट्टी लेकर संध्या को उसकी जरूरत की चीजों की शॉपिंग करवाई।
मौलिक व स्वरचित
✍️लक्ष्मी कुमावत