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‘सीएपीएफ’ में ‘पुरानी पेंशन’ की बहाली और दूसरे लंबित पड़े मुद्दों को लेकर 25 सितंबर को जंतर-मंतर पर हल्लाबोल होगा : रिपोर्ट

केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ में ‘पुरानी पेंशन’ की बहाली और दूसरे लंबित पड़े मुद्दों को लेकर 25 सितंबर को जंतर-मंतर पर हल्लाबोल होगा। इससे पहले फरवरी में भी कॉन्फेडरेसन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया था। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन लागू करने का फैसला दिया था, लेकिन केंद्र सरकार ने उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्टे ले लिया है। इन बलों की दूसरी मांगों पर भी विचार नहीं किया जा रहा। यह आंदोलन अब नहीं थमेगा, बल्कि इसकी रफ्तार और तेज होती जाएगी। 25 सितंबर को होने वाले हल्लाबोल में देश के विभिन्न हिस्सों से रिटायर्ड अर्धसैनिक जंतर-मंतर पर आवाज बुलंद करेंगे।

ओपीएस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई सरकार
एसोसिएशन के चेयरमैन एवं पूर्व एडीजी ‘सीआरपीएफ’ एचआर सिंह कह चुके हैं कि वे सीएपीएफ में पुरानी पेंशन को लेकर लंबी लड़ाई के लिए तैयार हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन बहाली का फैसला दिया था। केंद्र सरकार इस फैसले को लागू करने की बजाए, उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चली गई। एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह ने कहा, गत फरवरी में जंतर मंतर पर आयोजित प्रदर्शन में विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने सीएपीएफ में ओपीएस लागू नहीं करने को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। पदाधिकारियों ने उस वक्त कहा था कि कोई खिलाड़ी ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीत कर आता है तो उसे केंद्र सरकार पांच करोड़ रुपये देती है। राज्य सरकार भी दो करोड़ रुपये दे देती है। एक प्लाट भी मिलता है और दूसरी कई सुविधाओं का अंबार लगता है। जिसे ये सब मिलता है, वह एक जिंदा व्यक्ति है। दूसरी तरफ सीएपीएफ के जवान को देखें, वह देश के लिए शहीद हो जाता है। वह दोबारा से जीवन में नहीं आ सकता। सरकार उसके मां बाप को एक तय राशि देकर राम-राम बोल देती है।

‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात
एसोसिएशन के मुताबिक, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी को दिए अपने एक फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना है। इन बलों में लागू ‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही गई है। अदालत ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। केंद्र ने इस फैसले को भी लागू नहीं किया। सीएपीएफ के लिए न तो अर्ध सैनिक कल्याण बोर्ड हैं और न ही अर्ध सेना झंडा दिवस कोष स्थापित किया गया है। इनके बच्चों के लिए अर्धसैनिक स्कूल भी नहीं हैं। सीपीसी कैंटीन को जीएसटी से छूट नहीं मिलती। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि सरकार भूल रही है कि चुनावों को निष्पक्ष ढंग से कराने में केंद्रीय सुरक्षा बलों की अहम भूमिका है। अर्धसैनिक बलों के सेवारत जवानों, उनके परिवार, सगे संबंधियों और नजदीकी रिश्तेदारों की संख्या देखें तो वह एक करोड़ से ज्यादा है। कई बार महज एक प्रतिशत वोटों के अंतर से सत्ता इधर-उधर हो जाती है।

जॉब छोड़ रहे हैं सीएपीएफ के युवा अफसर
सीआरपीएफ के एक्स सहायक कमांडेंट सर्वेश त्रिपाठी ने कहा, बल के 40 जवानों ने पुलवामा में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। सीएपीएफ को तो रोजाना ही आतंकियों और नक्सलियों से लड़ना पड़ रहा है। कभी कश्मीर में तो कभी नक्सल प्रभावित इलाकों में ऑपरेशन को अंजाम देना पड़ता है। वे अपने परिवार को किसके भरोसे छोड़कर जाते हैं। सीआरपीएफ के एक जांबाज अफसर नितिन भालेराव, जो 2020 में शहीद हुए थे, बाद में उनकी पत्नी का निधन हो गया था। परिवार में उनकी आठ वर्षीय बेटी बची है। उनकी मदद के लिए कुछ नहीं हो रहा। उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। ऐसे मामले में न तो कोई कल्याण बोर्ड है और न ही ऐसा कोई मेकेनिज्म है, जो कल्याण पर ध्यान दे सके। जीएसटी कंटीन पर छूट नहीं मिलती।

‘ओजीएएस’ यानी संगठित कॉडर का फैसला सुप्रीम कोर्ट से हो चुका है। सरकार ने कैबिनेट की बैठक के बाद उसकी घोषणा कर दी। 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी यह मुद्दा शामिल था। मगर अभी तक कुछ नहीं हो सका। उसे लागू नहीं किया जा रहा है। दूसरी ओर सीएपीएफ के युवा अफसर जॉब छोड़ रहे हैं। उनकी एक बड़ी दिक्कत पदोन्नति को लेकर है। 15 साल में मुश्किल से पहली पदोन्नति मिल पाती है। एनएफएफयू का फायदा भी सभी को नहीं मिल रहा। अब यह आंदोलन थमेगा नहीं। इस चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया जाएगा। केंद्र सरकार को सीएपीएफ बलों की लंबित मांगों को पूरा करना होगा।