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मिशन की सफ़लता के जश्न का मज़ा कुछ कुछ ऐसा रहा जैसे खुशी दिखाने के लिए भी इजाज़त की ज़रूरत हो…..

https://youtu.be/jdYCXMo94Uk

Tajinder Singh
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जैसा महसूस किया वैसा लिख दिया …!

वर्ल्डकप फाइनल ! अंतिम क्षणों का रोमांच पूरे चरम पे, पूरा देश मोहल्ला टीवी पे आंखे गड़ाए, लास्ट विकेट खेल रहे। अंतिम बॉल पे 6रन चाहिए, बॉलर ने गेंद डाली बल्लेबाज ने पूरी ताकत से बल्ला चलाया, गेंद हवा में… बाउंड्री लाइन के नीचे फील्डर मौजूद …

अचानक से साहेब ने पिच पे आकर भाषण देना शुरू कर दिया। कप्तान बाकी टीम बैट्समैन सारा रोमांच छोड़ भाषण सुनने लगे, आखिरी रन किस तरह पूरा हुआ बॉल लाइन पार गिरी भी या नही….

लाइव प्रसारण ही गायब….तालियां, तालियां और तालियों के बीच अचानक से फुल स्क्रीन और एक बड़ा सा चेहरा। बस फिर भाषण भाषण भाषण, पहले हिंदी फिर अंग्रेजी में… जीत का रोमांच , चेहरों की खुशी इस भाषण की भेंट चढ़ गया। जब तक भाषण चला लगा कड़ी मेहनत कर विजेता बनी टीम औऱ कप्तान के चेहरे पे खुशी जैसे रुकी रुकी रही, जैसे उनका अपनी खुशी प्रकट करने से पहले भाषण सुनना ज्यादा जरूरी था।

जब भाषण खत्म हुआ फिर टीम मेम्बर्स औऱ कप्तान अब तसल्ली से एक दूसरे को चियरप करते दिखे…मिशन की सफलता के जश्न का मजा कुछ कुछ ऐसा रहा जैसे खुशी दिखाने के लिए भी इजाजत की जरूरत हो। आपको तभी खुश होना है जब बड़े निपट लें।

जनाब आप कम से कम 10 मिनिट तो रुक जाते …छोटी सी बधाई दे देते ..10 मिनिट बाद बोल लेते …सम्मान कम नही होता बल्कि मान औऱ बढ़ जाता। आपने तो वैज्ञानिकों की उपलब्धि को भी अपनी इवेंट में बदल दिया।

डिक्लेमर : जैसा महसूस किया वैसा लिख दिया …!

साभार:- Jitendra Parihar ✍️, थोड़े संशोधन के साथ

Lekhak Mukesh Sharma
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#चंद्रमिशन_क्यों #मुकेश_शर्मा
अपने साधारण पाठकों में विज्ञान का महत्व व उद्देश्य बताने के लिए सरल भाषा-शैली में प्रयास है कि इस मिशन से क्या लाभ होगा?एक भाई Shivjeet Singh जी ने भी यह जिज्ञासा प्रकट की तब इसका उत्तर देने का भी प्रयास रहेगा।बचपन में हमारे आदर्श हमारे पिता थे।थोड़ा आगे चलकर अध्यापक आदर्श बने और फिर हमारे कार्यक्षेत्र से आगे बढ़ते हुए यह सूची देश के महान व्यक्तित्व व धरती के उच्च व्यक्तित्व को आदर्श बना लिया।दरअसल आदर्श का यही सिलसिला यदि ध्यान से देखें तो हम स्वयं आदर्श व्यक्तित्व की खोज कर रहे थे वे हमारी नहीं।ठीक,इस चंद्रयान मिशन की तरह #विक्रम_साराभाई और #इसरो चीफ #एस_सोमनाथ हमारे आदर्श बने।गाँव में हमारी सोच का दायरा खेती, डेयरी, खाद गोदाम और दुकान थी जो शहरों में आकर पूरी तरह बदल गयी।इसी तरह यह मिशन या ऐसे मिशन वैज्ञानिकों की सोच का दायरा बढ़ाते हैं जिसमें एक दिन हमें उतरने के लिए तैयार रहना होगा।

वर्षों पूर्व युद्ध के मैदान में तलवारों का प्रशिक्षण दिया जाता था जो कि अब बदल गया है।छोटे युद्ध भले ही आज बारूद से लड़े जा रहे हों लेकिन बड़े युद्ध लड़ने के लिए ऐसे सेंटरों से साइबर युद्ध छेड़ा जायेगा।यह युद्ध पूरी टेक्नोलॉजी को ध्वस्त कर देगा और इसके साथ ही हम एक बार पुनः अपनी ग्रामीण सोच में घर वापिसी करेंगे।हम जो मोबाइल पर वार्तालाप कर रहे हैं या घर बैठे टी.वी पर संसार की खबरें देख रहे हैं ये सब पृथ्वी से लगभग 36000 किमी० ऊँचाई पर स्थित हमारे सेटेलाइट सर्विस स्टेशन के द्वारा संभव हो पा रहा है।आपने देखा होगा कि हर टी.वी का एंटीना या मोबाइल टॉवर की एक निश्चित दिशा होती है।वहाँ से थोड़ा तिरछा होते ही उसकी रेंज हट जायेगी।दरअसल ये सर्विस स्टेशन जिस कक्षा में स्थापित हैं वे सब धरती के साथ-साथ समान रूप से गति कर रहे होते हैं।यदि वे ठहर जायें तो हम अपना एंटीना सेट नहीं कर सकते न हमारे मोबाइल में वे मेप नेविगेशन काम करेंगे।

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटकर प्रोग्रामिंग किया है।हम जिस टुकड़े में प्रवेश करते हैं मेप उसी टुकड़े की दिशा दिखाता है।मान लो हमने मोबाइल में अक्षरधाम मंदिर डाला तब प्रोग्रामिंग में वह अधरधाम मंदिर किस टुकड़े में है मोबाइल मेप यह पढ़कर आपको उस टुकड़े के पास ले जायेगा।दूसरा उदाहरण यह कि आपका दिमाग पढ़कर यह नहीं जानता कि अमरूद क्या होता है?वह अमरूद पढ़कर उस प्रोग्रामिंग की तरह अमरूद की छवि बनायेगा तब आप समझ पाओगे कि अमरूद कैसा व क्या होता है?

मान लो आगामी दस वर्ष तक हमारा चंद्रमा की कक्षा में घूमता ऑर्बिटर काम करता है और वहाँ पीने का पानी जैसी थोड़ी-बहुत मदद मिल जाती है तब वैज्ञानिक छोटा सा ही सही सेटेलाइट सर्विस स्टेशन बनाने पर विचार कर सकते हैं।यह उपलब्धि तमाम धूमकेतु व आकाशगंगा के बहुत से गुप्त राज खोल सकती है।चाँद के उत्तरी ध्रुव पर तो यह सम्भावना नहीं दिखी।चूँकि यह दक्षिणी ध्रुव छिपा रहने वाला ध्रुव है इसलिए इधर नमी मिलने की सम्भावना है।यह सम्भावना यदि थोड़े से पैर टिकाने का माध्यम बन जाये और वहाँ उस जलवायु में जीने के सहारे वाले तत्व हों तब वैज्ञानिक विज्ञान की एक कुटिया का सफल निर्माण करने में कामयाब हो जायेंगे जैसे 200℃ + – तापमान में यह मिशन न जलेगा न गलेगा।

एक नजर सनातन के ज्योतिषीय गणित पर डालकर देखो कि उसकी हर गणना इतनी सटीक है कि आज विज्ञान उसे नमन करती है और हर बड़े वैज्ञानिक ने उन ग्रंथों का अध्ययन किया है।क्योंकि ऐसा अध्ययन बिना वैज्ञानिक प्रयोग के संभव न हुआ होगा।भले ही हमारी विज्ञान सदियों पूर्व किसी सेटेलाइट युद्ध में नष्ट हो गयी हो लेकिन शास्त्रों के रूप में उसका साहित्य आज भी प्रेरणा देता है।जो कहानियाँ हमें काल्पनिक लगती थीं एक दिन फिर साकार होंगी।मुझे लग रहा है कि हमारे चंद्रयान मिशन-3 की यह चौदह दिवसीय खोज जब मानव मिशन भेजेगी तब कुछ नया घटित होगा।दुनियाँ उस नये घटनाक्रम पर भारत को नजरअंदाज नहीं करेगी अपितु टकटकी लगाकर देखेगी।उस मानव मिशन के उपरांत अंतरिक्ष में भारत विश्व को कोई बहुत बड़ा कारण देगा।यही इस मिशन का उद्देश्य है।

डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार और जानकारियां हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है, लेख सोशल मीडिया से प्राप्त हैं