इतिहास

मुसलमान वैज्ञानिकों ने जब चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति उत्पन्न कर दी!

उपचार का विज्ञान शताब्दियों पुराना है और बीमारी के व्यवस्थित इलाज के प्रमाण, यूनान, फ़ार्स और भारतीय सभ्यताओं में पाए जाते हैं।

हालांकि, अस्पताल जैसी व्यवस्था का एक अजीब इतिहास है, जो आमतौर पर ज्ञात नहीं है।

यूनानियों के पास एस्क्लेपीया या उपचार मंदिर थे और रोमनों के पास वेलेटुडिनेरिया या सैन्य अस्पताल थे। हालांकि आधुनिक अस्पताल का एक हालिया उदाहरण, मध्ययुगीन मध्य पूर्व में देखा जा सकता है।

पार्सी और अरब उपचार के इस केन्द्र को बीमारिस्तान कहते थे, जबकि तुर्कों ने इसका नाम दारुल शिफ़ा रखा। दर असल, वह एक संस्था और विचार का जन्म था, जिसने चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एक क्रांति उत्पन्न कर दी।

यह मूल रूप से फ़ारसी भाषा का शब्द है, यह बीमार स्तान से मिलकर बना है, यानी बीमार का स्थान। इसलिए बीमारिस्तान का शाब्दिक अर्थ है, बीमारों का स्थान।

हालांकि ईसाई यूरोप में मठों में बीमारों को ठहराने की सुविधा थी, इसीलिए आधुनिक चिकित्सा जगत में उनकी गतिविधियां व्यापक रूप से स्थापित नहीं हैं। जबकि मध्ययुगीन इस्लामी जगत में बीमारों के इलाज की एक विस्तृत प्रणाली और व्यवस्था थी, जिसकी तुलना आज के अस्पतालों से की जा सकती है।

इस्लामी जगत में बीमारिस्तान से मिलती-जुलती सबसे पहली व्यवस्था का उदाहरण, पैग़म्बरे इस्लाम के काल में मिलता है। रुफ़ैदा अल-असलमिया नाम की एक महिला ने 627 में ख़ंदक़ की लड़ाई के दौरान मुसलमान योद्धाओं के उपचार की सुविधा के लिए एक तंबू की स्थापना की थी।

बाद में इस्लामी जगत के कई शहरों के केंद्रों में इस तरह की उपचार इकाइयों की स्थापनी हुई, जहां बीमारों के उपचार के लिए औषधीय जड़ी-बूटियों, फ़ार्मेसियों और पूर्णकालिक चिकित्सकों की सुविधा प्राप्त होती थी।

पहला प्रमुख बीमारिस्तान सन् 706 में दमिश्क़ में स्थापित किया गया था। इसके बाद अगली कुछ शताब्दियों में अब्बासी ख़लीफ़ा हारुन रशीद के शासन के दौरान ग्रेनाडा, क़ाहिरा और बग़दाद जैसे शहरों में कई और बिमारिस्तानों की स्थापना की गई।

15वीं शताब्दी के अंत तक, अकेले मुस्लिम कॉर्डोबा में 40 से 50 अस्पताल थे।

जो बात इन प्रतिष्ठानों को इतना महत्वपूर्ण और अद्वितीय बनाती है वह यह है कि इनकी स्थापना ऐसे समय में की गई थी, जब दुनिया में कहीं भी सार्वजनिक अस्पतालों का वजूद नहीं था।

मुस्लिम जगत के बीमारिस्तानों में उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाती थीं, और वह भी बिल्कुल निःशुल्क।

मानसिक बीमारियों और संक्रामक रोगों सहित किसी भी तरह के मरीज़ को उसकी जाति, धर्म, लिंग या बीमारी के प्रकार के कारण, इलाज किए बिना लौटाया नहीं जाता था।

अलग-अलग बीमारियों के लिए अलग-अलग वार्ड होने के अलावा, अवसाद या मनोवैज्ञानिक संकट के लक्षण वाले रोगियों का इलाज, शारीरिक बीमारियों वाले रोगियों के समान ही किया जाता था।

यहां एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि पश्चिमी चिकित्सा में मानसिक स्वास्थ्य को हाल ही में गंभीरता से लिया गया है।

अधिकांश अस्पतालों को धर्म दान या वक्फ़ के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता था। वक़्फ़ दस्तावेज़ों के आधार पर यह सुनिश्चित किया जाता था कि बीमारिस्तान अपने दरवाज़े और सेवाएं उन सभी लोगों के लिए खुला रखे, जिन्हें देखभाल की ज़रूरत है।

मानसिक बीमारियों के सही इलाज के लिए एक स्पष्ट निदान की आवश्यकता थी। 10वीं सदी के फ़ारसी वैज्ञानिक, चिकित्सक और दार्शनिक इब्ने सीना ने उन अनदेखी बीमारियों से निपटने का प्रयास किया, जिन्हें पहले नज़रअंदाज़ कर दिया जाता था।

उनका सबसे प्रसिद्ध विश्वकोश कार्य, द कैनन ऑफ़ मेडिसिन, एक सहस्राब्दी से अधिक समय तक अद्वितीय रहा और 18 वीं शताब्दी तक दुनिया भर के मेडिकल छात्रों को पढ़ाया जाता था।

इन बीमारिस्तानों का प्रभाव आज भी क़ायम है। आज पश्चिमी चिकित्सा के क्षेत्र में मुस्लिम विद्वानों के योगदान को तेज़ी से स्वीकार किया जा रहा है। बीमारिस्तान का डिज़ाइन, संचालन और स्वास्थ्य देखभाल की प्रक्रिया का आज भी अनुसरण किया जा रहा है।