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‘टमाटर vs तिहाड़’ वाला मामला सुलझा नहीं, ये नया बीज और बो दिया…गधे को गुलाब जामुन खिलाते अंधभक्त!

Surya Pratap Singh IAS Rtd.
@suryapsingh_IAS
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गधे को गुलाब जामुन खिलाते, अंधभक्त…मामा जी के प्रदेश में ताकि बारिश हो जाए

इनका बस चलता तो चंद्रयान- 3 पर भी नींबू मिर्ची लटका देते।

पंखा वाले बाबा के युग में आज अखंड टोटके/पाखंड बाजी चरम पर है।

Lekhak Mukesh Sharma
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#मिशन_चंद्रयान_और_तकनीक
#मुकेश_शर्मा
तमाम देश आकाश में खोज करते रहते हैं।हर खोज सफल हो यह तकनीक से अधिक भाग्य पर निर्भर है।हम केवल एक पहलू से विचार करते हैं जो हमने देखा है।जबकि हर तकनीक हमारी सोच से भिन्न होती है।ठीक उसी तरह हमारे महान वैज्ञानिक अपने जीवन की तमाम रिसर्च और अपने सहयोगी देशों के वैज्ञानिकों के साथ गहन मंत्रणा करके ऐसे मिशन को अंजाम देते हैं।चंद्रमा पर सबकुछ वैसे ही हो जैसे पृथ्वी पर है तब ऐसे मिशन को लांच करना बेहद आसान हो जायेगा।चंद्रमा हमारी सोच व पृथ्वी के पूर्णतया विपरीत है।वहाँ निवास करना हमारा सपना तो हो सकता है लेकिन संभावना नहीं।

पानी के जहाज को रोकने के लिए ब्रेक नहीं होते।वह जिस पंखे के घूमने से आगे बढ़ता है उसी पंखे को विपरीत दिशा में चलाने पर बल विपरीत करके उसे रोका जाता है।हवाई जहाज में पंखों की मदद से स्टेयरिंग का काम लिया जाता है यही तकनीक हेलीकॉप्टर में लागू होती है।रेलगाड़ी में स्टेयरिंग नहीं होती तब ड्राइवर किधर भी देखे या सो जाये कौन देख रहा है?इसलिए रेल का इंजन हर दो मिनट में कमांड माँगता है जिसके न मिलने पर रेलगाड़ी धीमी होती चली जायेगी और आगे स्वयं रुक जायेगी।अब ऐसे मिशन जो लाखों किलोमीटर आगे जाते हों उनके ईंधन का भण्डार कितना होगा यह सोचना ही हम जैसे आम आदमी को विस्मय से भर देगा।

ऐसे मिशन के विभिन्न हिस्से होते हैं जो अपना काम निर्धारित ऊँचाई व पड़ाव तक करते हैं।इसके उपरांत उन्हें कहाँ गिरना है और किस अवस्था में गिरना है इसकी पड़ताल व रिसर्च भी इस मिशन का हिस्सा होती है।जहाँ तक पहले दो साइड में ईंधन भण्डार हैं वे चंद्रयान को एक-दो मिनट आगे ले जाकर छोड़ देते हैं और स्वयं समुंद्र में गिर जाते हैं।उसके एक-दो मिनट में अगला पड़ाव एक हिस्से को अलग करके उसमें आग से नष्ट करने की क्रिया पर शोध होता है।जब यान पृथ्वी की कक्षा छोड़कर आगे बढ़ता है तब उसका गुरुत्वाकर्षण चंद्रमा की तरफ आकर्षण होता है।इस परिस्थिति में यदि उसके साथ लूना-25 जैसी समस्या आती है तब वह पृथ्वी से नहीं चंद्रमा से टकरायेगा।

अर्ध रात्रि में इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान के आखिरी हिस्से को अलग कर दिया है।अब हमारा विक्रम लैण्डर चंद्रमा से पच्चीस किलोमीटर ऊपर है।जबकि उसका दूसरा हिस्सा शायद एक वर्ष तक चंद्रमा के चक्कर लगाता रहेगा।इसकी सही जानकारी मुझे ज्ञात नहीं है कि उसका क्या काम है?जहाँ तक विक्रम लैण्डर का प्रश्न है तो उसमें भी अलग से ईंधन का हिस्सा है लेकिन वह उतना ही है जितने की आवश्यकता है।अधिक भण्डारन करने पर उसका वजन न बढ जाये और चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण उसे और तेजी से खींचे इसलिए लैंण्डर के बक्से को हल्का रखने का प्रयास होता है।अब ऐसे मिशन से वैज्ञानिक सीधे नहीं जुड़ पाते इसलिए समय पर कमाण्ड मिल गयी या सबकुछ ठीक रहा और सेंसर काम करते रहे तब सब ठीक चलता है।इतनी ऊँचाई पर कैसे मालुम चलेगा कि वहाँ पहाड़ी है या जंगल है यह सब सेंसर निर्धारित करते हैं।

जब बक्सा दो किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चक्कर लगा रहे चंद्रयान का चंद्रजमीं को स्पर्श करना होगा तब उसके चारों पैर जमीन से टकराकर ठहर जायेंगे और वह बक्सा खुल जायेगा।उसमें रखा विक्रम लैण्डर अपने चार पहियों पर बाहर निकलेगा और वहाँ गैस, पानी, मिट्टी, वातावरण की चौदह दिन यानी 14×24=336 घंटे रिसर्च करेगा।इसके उपरांत वहाँ रात्रि हो जायेगी।और वह रात्रि 336 घंटे लगातार रहेगी।ऑर्बिट बदलना ऐसे मानो जैसे आप बाइक गोल घुमा रहे हो तब थोड़ा हैण्डल मोड़कर उस गोलाई को कम कर दो।जबकि इस मिशन में उस गोलाई को उसके नजदीक की ओर झुकाया जाता है।अब सभी चरण पूरे हो चुके हैं बस वहाँ दिन निकलने का इंतजार है।

लूना-25 के हार्डवेयर में आयी तकनीकी खराबी से कमाण्ड न मिलना और उसकी स्पीड का बढ़ जाना थ्रस्टर करने से ऑर्बिट न बदलना सबकुछ उस सूक्ष्म गणित की पड़ताल के उपरांत भाग्य ने साथ नहीं दिया और मिशन लूना-25 क्रैश हो गया।यह दुःखद घड़ी है क्योंकि लूना-25 चंद्रमा पर एक वर्ष की रिसर्च पूरी करता।चंद्रयान की सफल लैण्डिंग से भारत ही नहीं पूरा विश्व रोमांचित होगा क्योंकि इसके उपरांत वहाँ से बहुत जानकारी मिलने की उम्मीद है।इस दक्षिणी ध्रुव पर कभी सूरज नहीं निकलता लेकिन संभव है दूसरे हिस्से पर सूरज उगने की क्रिया का यहाँ उसके तापमान में अंतर पड़ता हो।बस और तीन दिन इंतजार उसके उपरांत रोमांच की घड़ी हमारे वैज्ञानिकों पर गर्व करेगी।