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अनोखा बाज़ार…..मजेदार घटना सुनाता हूँ…..उसके बाद बाज़ार समाप्त हो जाएगा!

Tajinder Singh
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अनोखा बाज़ार…..
आज आपको गुआ की एक मजेदार घटना सुनाता हूँ। गुआ को आप गोवा मत समझ लीजिएगा। गुआ दरअसल इतनी छोटी जगह है की गूगल में सर्च करने पर गूगल गोवा ही दिखाता है। गुआ झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के अंतर्गत एक बहुत छोटी सी जगह है।

झारखंड में यूं तो पूरा जंगल ही भरा है। लेकिन इसका पश्चिमी सिंहभूम जिला जंगल के मामले में बहुत समृद्ध है। यहां एशिया का सबसे विशाल साल वृक्षों का जंगल सारंडा है। यहीं पर झारखंड का छोटा सा हिल स्टेशन किरीबुरू भी है। जिसका कुछ हिस्सा ओडिसा में है तो अधिक हिस्सा झारखंड में। इस इलाके में मुख्यतः सेल की आयरन ओर की खदाने हैं।

गुआ में आयरन ओर की खदान के साथ सेल की एक छोटी सी टाउनशिप भी है। एक छोटा सा स्टेशन भी है जो एक टर्मिनल है। यानी यहां से ट्रेन आगे नही जाती चूंकि आगे पहाड़ हैं। यहां से ट्रेन को वापस लौटना पड़ता है जैसे हावड़ा, मुम्बई आदि में होता है।

सड़क मार्ग से जाने पर मुख्य सड़क से गुआ के लिए एक छोटी सी सड़क कटती है, जो मुश्किल से 7 8 फीट चौड़ी होगी। यहां से करीब 6 किलोमीटर आगे गुवा टाउनशिप है। रास्ता जंगल से होकर है और रास्ते मे एक छोटी पहाड़ी नदी भी है। रास्ता काफी सुनसान रहता है और अक्सर कम ही गाड़ियां दिखती हैं। लेकिन इसके बावजूद यहां सुरक्षा की कोई समस्या नही। जरूरत पड़ने पर लोग रात बिरात भी जाते आते रहते हैं।

गुआ मेरी शाखा के एरिया के अंतर्गत आता था। हमारे एजेंट यहां थे इसलिए मेरा यहां आना जाना अक्सर लगा ही रहता था। आज मैं एक डेथ क्लेम इंक्वायरी के सम्बंध में गुआ आया हुआ था। इंक्वायरी के लिए मुझे रेलवे स्टेशन पर एक आदमी से भी मिलना था। मैंने अपनी कार स्टेशन पर खड़ी की और उस व्यक्ति को खोजने लगा। व्यक्ति से मुलाकात नही हो पाई।

आखिर वापस लौटने के लिए जब मैं अपनी कार के समीप पहुंचा तो मेरी हैरानी का ठिकाना नही। कुछ देर पहले अपनी गाड़ी को मैंने स्टेशन के जिस खुले परिसर में खड़ा किया था। मात्र 10 मिनटों के अंदर वहां एक बड़ा बाजार लगा हुआ था। अब कर के तीनो तरफ बाज़ार था और इस बाजार के बीच मे से कार को निकालना सम्भव ही नही था।

मैं हैरान था कि अचानक ये कैसे हो गया। खाली मैदान में अचानक दुकाने कहाँ से लग गयी। और काफी खरीदार भी अचानक कहाँ से चले आये। इस पर साथ गए व्यक्ति ने बताया कि अब आपको कम से कम 1 घण्टा इंतजार करना पड़ेगा। उसके बाद बाज़ार समाप्त हो जाएगा।

दरअसल एक इकलौती ट्रेन है गुआ पैसेंजर जो टाटानगर से गुआ के लिए चलती है। चूंकि ये स्टेशन एक टर्मिनल है तो ट्रेन को यहां से करीब 1 घण्टे बाद वापस जाना होता है। ये बाजार भी मात्र उतनी ही देर के लिए लगता है। सारे दुकानदार इसी ट्रेन से आते हैं और ट्रेन के रुकते ही अपनी छोटी सी दुकान लगा देते हैं। जो मुख्यतः साग सब्जी की ही रहती है। ट्रेन की वापसी के समय ये फिर इसी ट्रेन में बैठ वापस दूसरे बड़े बाज़ारो का रुख करते हैं। यहां गाड़ी से आवागमन बहुत मंहगा पड़ता है। इसलिए ये ट्रेन ही एक मुख्य जरिया है आवागमन का। यहां के लोगों को भी ये सब मालूम है तो ठीक समय पर खरीदार भी आ पहुंचते हैं।

खैर करीब 1 घण्टे बाद परिसर फिर से साफ होने पर ही मैं अपनी वापसी की यात्रा शुरू कर पाया। एक बात मैंने महसूस की कि किसी विशाल बड़े शहर में आपको सारी सुख सुविधाएं तो मिल जाएंगी लेकिन रहने का वो आनन्द कभी नही आएगा जो प्रकृति की गोद मे बसी ऐसी प्राकृतिक जगहों पर रहने से आता है। यहां परेशानियां हैं लेकिन शहर के मुकाबले लोगों में प्यार मोहब्बत भी ज्यादा है।