साहित्य

मैं तुमसे फिर मिलूँगी ……… ‘रश्मि’

Rashmi Abhaya
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मैं तुमसे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
शायद तुम्हारी सोच में
उभरती हुई कहानियों में
या प्रेम का कोई शब्द बन
तुम्हारे पन्नों पर उतर जाऊं
मैं तुमसे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
या सूरज की #रश्मि बन कर
तुम्हारे ख्यालों में आ जाऊं
या एक मीठा एहसास बनकर
तुम्हारे दिल में हीं बस जाऊं
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर मैं तुमसे ज़रुर मिलूँगी
मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ कि
तुम्हारी निर्मल सी मुस्कान
मुझे तुमसे जुदा नही होने देगी
इस तरह जन्मों का ये सफ़र
मेरे साथ साथ चलेगा
यादों के बंधन
इतने कच्चे नही होते
कायनात के लम्हें की तरह
ये हमसे जुड़े रहते हैं
मैं इन यादों को समेट कर
मोहब्बत का नाम दूंगी
मैं तुमसे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुमसे फिर मिलूँगी।।
‘रश्मि’

Rashmi Abhaya
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बरसात के एक मौसम में
बड़े प्यार से मेरे हाथों को
अपने हाथों में लेकर
उसने पूछा…..
प्रिय,
तुम्हें कौन सी ऋतु
ज्यादा पसंद है….
जो दिल को छू जाता हो….
बारिश की बूंदे
मुझे सारोबार कर रही थी
मैंने हौले से अपनी हथेलियों को
उसकी हथेलियों की गिरफ़्त से
अलग किया….
खामोश नज़रों से उसे देखते हुए
दिल हीं दिल में कहा….
मुझे बरसात बहुत भाता है….
देखो ना…..
तुम आज भी नहीं समझ पाये
कि मैं रो रही हूँ या…
बारिश की बूंदें टपक रहीं हैं…।।
‘रश्मि’ (७-८-२०१३)

Rashmi Abhaya
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#शर्त
ज़िंदगी की नई राह के लिए
कोई शर्त नही बांधी थी हमने,
तुम्हारे और हमारे बीच
हुआ था एक वादा,
जिसे जाना था सिर्फ
आँखों ने…
थोड़ा हीं चले थे हम,
कि उगे थे प्रश्न अनगिनत,
लगी थीं फैलने फिर बेले,
खड़ा था एक पूरा का पूरा जंगल,
हमदोनों की निगाहों के बीच,
उम्र की नज़ाकत…
अब नही है मेरे पास,
इसीलिए प्रश्नों का जंगल
यहाँ चुप है…
‘तुम’ चुप हो…
‘मैं’ चुप हूँ,
अब शोर भरी दुनिया हैं हम,
और एक अट्टूट सन्नाट्टा है..
हमारे और तुम्हारे दरमियां।
‘रश्मि अभय’