विशेष

इस्लाम ने मनुष्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है, स्वतंत्रता मनुष्य का मौलिक अधिकार है!

अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणापत्र पारित हो जाने के बाद विश्व के विभिन्न महाद्वीपों में इसे लागू कराने के उद्देश्य से आन्दोलन आरंभ हुए।

इसके लिए क्षेत्रीय देशों ने मानवाधिकारों के क्षेत्र में कई समझौते किये ताकि अन्तर्राष्ट्रीय घोषणापत्र को अपने क्षेत्रों में किसी सीमा तक लागू किया जा सके। इस अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार घोषणापत्र के बारे में इस्लामी देशों की प्रतिक्रिया कुछ अलग थी क्योंकि उनका मानना था कि इसका आधार, पश्चिमी विचारधारा है।

कुछ देशों ने इस्लामी शिक्षाओं से विरोधाभास रखने के कारण इसको बिल्कुल ही स्वीकार नहीं किया जबकि इसके विपरीत कुछ इस्लामी देशों ने बिना किसी आलोचना के इस घोषणापत्र को स्वीकार किया और इसको आदर्श मानते हुए इस आधार पर अपने यहां नियम निर्धारित किये। इन दोनों के अतिरिक्त कुछ इस्लामी देश एसे भी थे जिन्होंने इस्लाम में बताए जाने वाले मानवाधिकारों के आधार पर प्रस्ताव तैयार किया और उसे इस्लामी मानवाधिकारों के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया।

इस्लामी शिक्षाओं में बताए जाने वाले मानवाधिकारों का संबन्ध नया नहीं बल्कि बहुत पुराना है। यह कम से कम चौदह शताब्दियों पुराने हैं। वास्तव में यह नियम, पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर उतरने वाले पवित्र क़ुरआन और उनके पवित्र कथनों पर आधारित हैं। यह बात सही है कि मानवाधिकारों के नियम इस्लामी शिक्षाओं में पहले किसी एक अध्याय में एकत्रित नहीं थे बल्कि यह क़ुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के कथनों मे मौजूद थे लेकिन यह बात सही है कि इस्लाम, शताब्दियों पहले मानवाधिकारों से संबन्धित नियमों का उल्लेख कर चुका है। यहां तक कि इस्लामी शिक्षाओं के इन नियमों के पालन करने या उनके उल्लंघन के बारे में दंड या पारितोषिका का प्रावधान है।

इन बातों के दृष्टिगत यह कहा जा सकता है कि इस्लाम में मानवाधिकारों का विषय कोई नया विषय नहीं है बल्कि यह बहुत पुराना है। एसा नहीं है कि आधुनिक युग में मानवाधिकारों पर होने वाली चर्चाओं के बाद इस्लाम ने भी इस बारे में कोई दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। यह बात सही है कि बीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक तक मानवाधिकारों के विषय को उस ढंग से संकलित नहीं किया गया था जिस स्वरूप में वर्तमान समय में मानवाधिकारों का संकलन मौजूद है। बीसवीं शताब्दी के पाचवें दशक के बाद से इस्लामी मानवाधिकारों को संकलित करके पेश करने के बारे में चर्चा आरंभ हुई थी। इस बारे में बाद में विभिन्न सम्मेलन आयोजित किये गए। सन 1980 से अबतक इस्लामी मानवाधिकारों के बारे में कई घोषणापत्र जारी किये जा चुके हैं जिनमें से कुछ की ओर हम संकेत करेंगे।

सन 1980 में यूरोपीय इस्लामी परिषद की ओर से वैश्विक इस्लामी घोषणापत्र की घोषणा की गई। यूरोपीय इस्लामी परिषद का मुख्यालय लंदन में स्थित है। इस घोषणापत्र में मानवाधिकारों के बारे में इस्लामी दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया गया है। इस घोषणापत्र की भूमिका में सृष्टि का रचयिता ईश्वर को बताते हुए कहा गया है कि मनुष्य, सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। इसमें मानव के बीच समानता की बात कही गई है। अपनी बात को सिद्ध करने के लिए पवित्र क़ुरआन के सूरए होजोरात की आयत संख्या 13 को पेश किया गया है जिसमें ईश्वर कहता हैः हे लोगो! हमनें तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बीलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है, जो तुममे सबसे अधिक ईश्वर का डर रखता है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जानने वाला और ख़बर रखनेवाला है।

इस भूमिका से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इस्लाम ने मनुष्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की है। स्वतंत्रता मनुष्य का मौलिक अधिकार है। इसमें बताया गया है कि एक इस्लामी व्यवस्था में रहने वालों का कुछ दायित्व हैं जिनका आधार न्याय पर है। मानवाधिकारों के इस्लामी घोषणापत्र में स्पष्ट किया गया है कि ईश्वरीय क़ानून ही केवल वे क़ानून हैं जो सरकारों को मान्यता देता है। यह सरकारों से चाहता है कि वे हर क्षेत्र में न्याय से काम लें और लोगों के बीच एकता बनाए रखने में प्रयासरत रहें।

इस्लामी घोषणापत्र में स्पष्ट किया गया है कि ईश्वरीय नियम ही एसे नियम हैं जो, सरकारों को वैधता प्रदान करते हैं और सरकारों की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी, जीवन के हर क्षेत्र में न्याय की स्थापना करना है। इस घोषणापत्र में कुछ अन्य विषयों की ओर संकेत किया गया है जैसे वर्तमान समय में संस्कृतियों के सम्मुख खड़े संकट, कम्यूनिज़्म और पूंजीवाद जैसी विचारधाराओं की विफलता और राजनैतिक, आर्थिक, प्रशिक्षिक, सैनिक एवं सामाजिक परिप्रेक्ष्य में इस्लामी सद्धांतों की व्याख्या आदि।

इस्लामी मानवाधिकार घोषणापत्र का एक अन्य भाग, यूरोपीय इस्लामी परिषद है। यह इस्लामी योरोपीय परिषद का दूसरा घोषणापत्र है। यह सन 1981 में लंदन में पारित हुआ था और 19 सितंबर 1981 को यूनेस्कों की बैठक में इसकी औपचारिक घोषणा की गई थी। यह घोषणापत्र जो, मानवाधिकारों को केवल इस्लाम की दृष्टि से बयान करता है, उसमें एक विस्तृत प्रस्तावना है जिसके बाद 12 अनुच्छेदों में विस्तार से मानवाधिकारों के बारे में इस्लामी नियमों का उल्लेख किया गया है। इसमें एक आदर्श इस्लामी समाज के स्वरूप को परिभाषित किया गया है।

9 से 14 दिसंबर सन 1980 को कुवैत में, कुवैत विश्वविद्यालय के अन्तर्राष्ट्रीय क़ानून विभाग के विशेषज्ञों और अरब संघ के क़ानूनविदों की सम्मिलित से एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में मानवाधिकारों के इस्लामी आयामों पर विचार-विमर्श किया गया। बाद में इसमें पेश किये गए प्रस्तावों और कांफ़्रेंस के निष्कर्ष को कुवैत कांफ़्रेंस के नाम से प्रकाशित किया गया। वास्तव में यह दो भागों में विभाजित है। इसके एक भाग में कांफ़्रेंस में भाग लेने वालों के विचारों और उनके भाषणों को पेश किया गया है जबकि दूसरे भाग में इस्लामी देशों की सरकारों से अनुरोध किया गया था कि वे क़ानून बनाते समय पूर्ण रूप से इस्लामी नियमों का पालन करें।

इसमें आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, अल्पसंख्यकों के अधिकारों, नागरिक अधिकारों और महिलाओं के अधिकारों के बारे में चर्चा की गई है। यह 51 अनुच्छेदों में है जिनमें जीवन के हर क्षेत्र में इस्लामी दृष्टिकोण से नियमों का उल्लेख करते हुए उनको व्यवहारिक बनाने की बात कही गई है।

इस्लामी कांफ़्रेंस संगठन की ओर से भी इस्लामी मानवाधिकारों के संबन्ध में तीन घोषणापत्रों का उल्लेख करके उन्हें प्रकाशित किया गया है। पहला घोषणापत्र सन 1979 में सऊदी अरब के मक्का नगर में प्रकाशित किया गया जिसका शीर्षक है, इस्लाम में मनुष्य के मूलभूत अधिकार। दूसरा घोषणापत्र सन 1981 में सऊदी अरब के ताएफ़ नगर में शिखर सम्मेलन में पेश किया गया। तीसरा घोषणापत्र सन 1990 में क़ाहेरा में ओआईसी के विशेदमंत्रियों की 19वीं बैठक में पारित किया गया जिसको इस्लामी मानवाधिकारों का आधुनिक और व्यापक घोषणापत्र कहा जा सकता है।

क़ाहिरा घोषणापत्र को ओआईसी के धार्मिक मामलों के विधि विशेषज्ञों ने बहुत गहन अध्ययन के बाद तैयार किया था। इसको 26 से 28 दिसंबर सन 1989 में तेहरान में विधि विशेषज्ञों के सम्मेलन में पारित किया गया। यह मसौदा ओआईसी के विदेशमंत्रियों के सम्मेलन में 31 जूलाई से 5 अगस्त के बीच होने वाली क़ाहेरा बैठक में पारित किया गया और इसमें तेहरान प्रस्ताव में दिये गए सुझावों को शामिल किया गया। इस प्रकार यह सरकारों के लिए इस्लामी मानवाधिकारों का एक परिपूर्ण घोषणापत्र है।

क़ाहिरा घोषणापत्र की एक भूमिका है जबकि इसके 25 अनुच्छेद हैं। इसमें मानव की मूल प्रवृत्ति को आधार बनाकर नियम बनाए गए हैं। वास्तव में क़ाहिरा का मानवाधिकारों का इस्लामी घोषणापत्र, इस्लामी समाजों की ओर से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी इस्लामी पहचान को दर्शाने के उद्देश्य से है जिससे विश्व के अन्य लोग लाभ उठा सकते हैं।