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चुल्ल…..ऐसी ”चुल्ल” कब मचती है?

Tajinder Singh
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चुल्ल…..
कभी कभी मुझे कुछ ज्ञान की बात कह डालने की ऐसी चुल्ल मचती है कि मैं कहे बिना रह नही सकता। वैसे अक्सर मुझे इसका खामियाजा भी भोगना पड़ता है। लेकिन मेरी ये जुबानी खुजली बिना कहे शांत ही नही होती।

इधर अरसे से मैं देख रहा हूँ कि स्त्री विमर्श के नाम पर कुछ फेमिनिस्ट स्त्रियां पुरषों को गन्दी नजर वाला, कामुक, लम्पट, व्यभिचारी…न जाने क्या क्या साबित करने में लगी हैं। उनके अनुसार पुरुष की सोच गन्दी, नजर गन्दी, व्यवहार भी गन्दा है। बहुत भीड़ भाड़ वाली जगह या निपट एकांत में पुरुष के भीतर का जानवर जाग जाता है।

https://www.youtube.com/watch?v=CsM2kfr3bOI

तो मित्रों, यहां मैं पुरषों का बचाव नही करने वाला। आखिर वेश्यालय स्त्रियों के लिए तो होते नही। देवदासी प्रथा स्त्रियों ने तो शुरू नही की होगी। स्त्रियों को स्तन ढकने के अधिकार से वंचित भी स्त्रियों ने तो नही किया होगा। स्त्रियों के 28 प्रतिशत के मुकाबले 72 प्रतिशत पुरुष आखिर पोर्न क्यों देखते हैं? पुरुष आदतन पोलीगामी क्यों है? क्या पुरुष वास्तव में स्वभाव से ऐसा ही है जैसा स्त्रियां कह रही है या कुछ अलग है?
लेकिन सवाल है कि पुरुष अगर थोड़ा वैसा है जैसा स्त्रियां कहती हैं…तो आखिर क्यों है?

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इसकी चर्चा आगे करूंगा फिलहाल इतना कहूंगा कि इतनी सब बुराइओं के बावजूद सामाजिकता के कारण पुरुष ने थोड़ा भावनाओं पर नियंत्रण करना भी सीखा होता है। इसी समाज मे उसके अपने परिवार के सदस्य भी रहते हैं। इसलिए पुरुष जानता है कि कहां कैसी प्रतिक्रिया देनी है। और अक्सर बड़ा शिष्ट व्यवहार करता है।

लेकिन कभी अगर सामने अचानक ताजमहल आ जाये तो उसकी तारीफ में दो शिष्ट शब्द भी न कहे जाएं… पुरुष इतना कृपण भी नही। लेकिन अक्सर उसकी भावनाओं को गलत रूप में लिया जाता है। एक शालीन प्रशंसा भी कभी कभी समस्या बन सकती है। विदेश में किसी स्त्री को सेक्सी, गॉर्जियस कह दिया जाए तो सामने वाला(वाली) इसका बुरा नही मानता(मानती)। डेटिंग वहां बड़ी सामान्य सी बात है। इसलिए आपकी क्रिया की प्रतिक्रिया तो सामने वाले कि मानसिकता पर भी निर्भर करती है। सामने वाला(वाली) केवल वेशभूषा से ही मॉड है या विचारों से भी है। ये विचारणीय बात है। अक्सर पुरुष इसी जगह धोखा खा जाते हैं। कपड़ों से बहुत मॉड स्त्रियां बहुत दकियानूसी भी हो सकती हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=ZF5kLOfvmNk

दरअसल विचारों से मॉड होने के लिए एक पूरी विचार प्रक्रिया से गुजरना होता है। ये परिवर्तन कष्टसाध्य और समय लेने वाला है। लेकिन वस्त्रों के साथ तो आप रातों रात मॉड हो सकते हैं। खैर फेमिनिस्ट कह सकते हैं कि ये अपना आर्यव्रत है और अपने देसी संस्कार और समाज इसकी इजाजत नही देते। चलिए माना हम बहुत संस्कारी हैं लेकिन फेमिनिस्टों!….समाज तो ऐसे बदन उघाडू वस्त्र पहनने की और ऐसे लटके झटके वाली रील बनाने की इजाजत भी नही देता। अब ये मत कहिएगा की मेरी बॉडी मेरी मर्जी।

खैर बहुत अधिक सच बोल कर मैं फेमिनिस्टों को नाराज नही करना चाहता। चलिए मैंने माना कि आप सही कह रही हैं। हम एक महान संस्कृति के वाहक है। तो सवाल उठता है कि आखिर महान संस्कृति वाला पुरुष ऐसी गिरी हुई हरकत (स्त्रियों अनुसार) क्यों करता है। क्यों वो भरे दरबार मे जुए में जीती स्त्री को अपनी जांघ पर बैठने का निमंत्रण देता है? क्यों वो धोखे से गुरु की पत्नी के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है? क्यों वो अपने भाई सुग्रीव की पत्नी को जबरन रख लेता है? क्यों अपहृत स्त्री को ही अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ता है?

सबसे बड़ी बात इतना सब करने के बाद भी इन पौराणिक चरित्रों के चरित्र पर कोई सवाल नही होता। बल्कि अक्सर इन्हें पूजा जाता है। आखिर स्त्रियों का ये डबल स्टैंडर्ड क्यों?

खैर उपर की सारी घटनाओं के पीछे आप संस्कृति की महानता दिखाने के लिए बेतुके तर्क खोज सकती हैं। लेकिन यहां असल सवाल ये है कि किसी पराई स्त्री के लिए पुरुष की लार हमेशा टपकती क्यों रहती है? पुरुष किसी स्त्री की मित्रता में सहज क्यों नही रह सकता? क्यों उसकी नजर बार बार गन्दी हो जाती है? क्यों पुरुष के भीतर का जानवर बाहर निकल आता है? आखिर पुरुष को इतनी चुल्ल क्यों मची रहती है??
और सबसे बड़ा सवाल की सेक्स को लेकर स्त्री और पुरुष के व्यवहार में ये जमीन आसमान का अंतर क्यों??
क्रमशः

डिस्क्लेमर : लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है