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मणिपुर में, मणिपुर पुलिस पर मैतेई का समर्थन और असम राइफल्स पर कुकी का साथ देने के आरोप : रिपोर्ट

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जातीय हिंसा की आग में जल रहे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर पर भले संसद में बहस जारी हो, राज्य में समीकरण लगातार उलझते जा रहे हैं. राज्य में हिंसा पर काबू पाने और शांति बहाली के लिए तैनात सुरक्षा बल ही आपस में भिड़ गए हैं.

ताजा घटना में मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स पर कामकाज में बाधा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए प्राथमिकी दर्ज की है. हालांकि सेना ने इस आरोप का खंडन किया है. वैसे, हिंसा की शुरुआत से ही राज्य पुलिस पर मैतेई तबके का समर्थन करने और असम राइफल्स के जवानों पर कुकी तबके का साथ देने के आरोप लगते रहे हैं. इससे पहले मैतेई संगठनों के विरोध के कारण विष्णुपुर में एक जांच चौकी से असम राइफल्स के जवानों को हटा कर राज्य पुलिस और सीआरपीएफ को तैनात किया गया था.

केंद्रीय बलों की तैनाती के बाद से ही खासकर मैतेई समुदाय की महिलाएं उन पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उनकी नाकेबंदी करती रही हैं और उनको गांवों में नहीं घुसने दिया जाता है. एक मामले में तो इन महिलाओं ने असम राइफल्स की गिरफ्त से 12 कथित मैतेई विद्रोहियों को जबरन छुड़ा लिया था.

पुलिस और अर्धसैनिक बल में टकराव
ताजा मामले में मणिपुर पुलिस के एक अधिकारी देवदास सिंह ने असम राइफल्स की नौवीं बटालियन के खिलाफ कामकाज में बाधा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज कराई है. सिंह ने आरोप लगाया है कि असम राइफल्स के जवानों ने मणिपुर पुलिस को विष्णुपुर जिले के क्वाक्टा के पास एक गांव में प्रवेश करने से रोक दिया. पुलिस की टीम कुकी उग्रवादियों की तलाश में छापेमारी अभियान के सिलसिले में वहां जा रही थी. असम राइफल्स के जवानों के रवैए की वजह से उग्रवादी फरार होने में कामयाब रहे.

मणिपुर सरकार ने विष्णुपुर में बीते सप्ताह ताजा हिंसा के बाद सोमवार को मोइरांग लामखाई स्थित जांच चौकी पर तैनात असम राइफल्स के जवानों को हटा कर वहां सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती का आदेश दिया था. इससे पहले कोऑर्डिनेटिंग कमेटी आन मणिपुर इंटीग्रिटी और मीरा पैबी समेत कई मैतेई संगठनों और प्रदेश बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जांच चौकी से असम राइफल्स के जवानों को हटा कर उनकी जगह किसी दूसरे केंद्रीय बल की तैनाती की मांग उठाई थी.

इससे साफ है कि मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स की लड़ाई पर अब राजनीतिक रंग भी चढ़ गया है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष ए.शारदा देवी ने प्रधानमंत्री को भेजे एक पत्र में असम राइफल्स की जगह किसी और केंद्रीय बल की तैनाती की मांग की है. उनका आरोप है कि इस बल के काम करने के तरीके पर पहले दिन से ही सवाल खड़े हो रहे हैं और वह शांति बहाल करने में पूरी तरह नाकाम रही है. इसलिए उसे यहां से हटाकर उसकी जगह किसी और केंद्रीय बल को भेजा जाना चाहिए.

आरोपों से सेना का इनकार
दूसरी ओर, भारत की सेना ने असम राइफल्स पर लगे आरोप का खंडन किया है. उसने अपने एक बयान में कहा है कि वह असम राइफल्स के साथ मिलकर मणिपुर में शांति बहाल करने की कोशिश जारी रखेगी. बयान में कहा गया है, “राज्य में असम राइफल्स की छवि बिगाड़ने की कोशिश होती रही है. लेकिन हकीकत यह है कि वह इस हिंसाग्रस्त राज्य में जमीनी स्तर पर सामान्य स्थिति बहाल करने में जुटी है.”

सेना का कहना है कि कुछ उपद्रवी लगातार असम राइफल्स की छवि बिगाड़ने की नाकाम कोशिश करते रहे हैं. लेकिन ऐसे तमाम आरोप हकीकत के उलट हैं. यह ध्यान में रखना जरूरी है कि राज्य की भौगोलिक और दूसरी जटिलताओं के कारण कई बार जमीनी स्तर पर मतभेद पैदा होते हैं. लेकिन उनको सुलझा लिया जाता है.

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असम राइफल्स और मैतेई तबके का विवाद
असम राइफल्स का गठन वर्ष 1835 में कछार लेवी के नाम से किया गया था. उस समय उसमें महज 750 जवान थे. वर्ष 1870 में इसमें बटालियनों की तादाद बढ़ा दी गई और साथ ही नाम भी बदल कर असम मिलिट्री पुलिस बटालियन कर दिया गया. बाद में इसका नाम असम राइफल्स किया गया. फिलहाल इसमें करीब 65 हजार जवान और अधिकारी हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादी गतिविधियों की निगरानी के अलावा शांति बहाली और म्यांमार से लगी सीमा की निगरानी का जिम्मा भी इसी के पास है. खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) लागू रहने के दौरान इस बल के जवानों पर बड़े पैमाने पर अत्याचार और गैर-न्यायिक हत्या के आरोप लगते रहे हैं.

वर्ष 2004 में इस बल के हाथों मनोरमा नाम की एक युवती के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या का आरोप लगा था. इस मुद्दे पर इंफाल घाटी में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे और मैतेई संगठनों के बैनर तले इस तबके की महिलाओं ने इसके तत्कालीन मुख्यालय कांग्ला फोर्ट के बाहर निर्वस्त्र होकर प्रदर्शन किया था. तब इस तस्वीर ने पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थी.

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असम राइफल्स के खिलाफ मामले
इस बल के कथित अत्याचारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी कई मामले विचाराधीन हैं. अफस्पा और असम राइफल्स के जवानों के कथित अत्याचारों के खिलाफ लौह महिला के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला भी लंबे अरसे तक भूख हड़ताल कर चुकी हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि असम राइफल्स के खिलाफ मैतेई तबके में पहले से ही भारी खुन्नस है. ऐसे में उसकी तैनाती ने इस तबके को और नाराज कर दिया है. एक विश्लेषक मोहन कुमार शर्मा कहते हैं, “राज्य सरकार और उसके सुरक्षा अधिकारी इस विवाद को सुलझाने में नाकाम रहे हैं. राज्य में हालात अभी भी जस के तस हैं. ऐसे में अगर सुरक्षा बल के जवान ही एक-दूसरे से भिड़ने लगे तो परिस्थिति और बेकाबू होने का खतरा है.”

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प्रभाकर मणि तिवारी