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अमरीका बुझते हुए दिये की तरह फड़फड़ा रहा है, अरब देशों पर दबाव बनाने की साज़िश रची : रिपोर्ट

एक बार फिर फ़ार्स खाड़ी में अमरीकी सैन्य उपस्थिति में वृद्धि का क्या मतलब है?

फ़ार्स की खाड़ी में अमरीकी सैन्य उपस्थिति में वृद्धि उन मुद्दों में से एक है, जिन्हें इंटरनेशनल मीडिया में काफ़ी सुर्ख़ियां मिल रही हैं।

अमरीका और ज़ायोनी शासन की नीतियों और ज़रूरतों के अनुसार, पेंटागन के इस क़दम के बारे में, पश्चिमी और ज़ायोनी मीडिया में इस मुद्दे को व्यापक कवरेज दी जा रही है।

दरअसल, इस्राईल में विवादास्पद न्यायिक सुधार योजना पर मचने वाले हंगामे और दोनों पक्षों के बीच जारी राजनीतिक गतिरोध के बावजूद, क्षेत्रीय असुरक्षा को लेकर बाइडन प्रशासन और ज़ायोनी शासन के बीच एक तरह का सहयोग देखा जा सकता है। फ़ार्स की खाड़ी में अमरीकी सैन्य वृद्धि के समानांतर, हिज़्बुल्लाह के ख़िलाफ़ ज़ायोनी सेना के ख़तरे में भी वृद्धि हो गई है।

ईरान के ख़तरों का मुक़ाबला करने के झूठे बहाने के तहत, फ़ार्स की खाड़ी क्षेत्र को असुरक्षित बनाना, इस क्षेत्र में अमरीकी नीति का हिस्सा है। इस रणनीति का उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा व्यापार के केंद्र में सैन्य उपस्थिति बढ़ाना, चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करना है। इसके अलावा, फ़ार्स खाड़ी के अरब देशों को भी एक संदेश देना है, जो अमरीकी वर्चस्व से बाहर निकलने और नई वैश्विक शक्तियों के साथ संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

क्षेत्रीय अरब सरकारों द्वारा वाशिंगटन से दूरी बनाने और चीन और रूस और ईरान के क़रीब आने के कारण, अब अमरीकियों ने एक बार फिर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मज़बूत करने का फ़ैसला किया है। हालांकि हालिया वर्षों में एक के बाद एक क्षेत्रीय युद्धों में मिलने वाली हार से घबराकर, अमरीका ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को कम करने की नीति बनाई थी। लेकिन अब एक बार फिर इस नीति में बदलाव करके अमरीका ने फ़ार्स खाड़ी के क्षेत्र में अपनी सैन्य उपस्थिति में वृद्धि की है और अरब देशों पर दबाव बनाने की साज़िश रची है।

कहा जा सकता है कि वाशिंगटन के इस क़दम का मक़सद, क्षेत्रीय देशों और चीन के बीच मज़बूत होते हुए संबंधों को देखते हुए, अपने विशेष सुरक्षा नियंत्रण की ओर दूसरों का ध्यान आकर्षित करना है।

हालिया वर्षों में अमरीका की कमज़ोरियों ने वाशिंगटन पर अरब देशों के भरोसे को कम कर दिया था और उन्हें ईरान के साथ अपने संबंध सुधारने या पूर्व की ओर देखने की नीति अपनाने के लिए मजबूर किया था।

अरब देशों और अमरीका के क्षेत्रीय सहयोगियों को यह बात समझ में आ गई है कि अब वाशिंगटन के पास पहले वाला प्रभाव और शक्ति नहीं है और वह दिन प्रतिदिन कमज़ोर पड़ता जा रहा है। इसलिए, सुरक्षा प्रदान करने के लिए इन देशों की अमरीका पर निर्भरता धीरे-धीरे कम हो रही है, जिसे अमरीका, बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है और वह बुझते हुए दिये की तरह फड़फड़ा रहा है।

अमरीकी सैनिक अगर यमन की समुद्री सीमा के निकट हुए तो उन्हें यह ग़लती बहुत भारी पड़ेगी, यमन

यमन के अंसारुल्लाह आंदोलन ने अमरीकी सैनिकों को यमन की समुद्री सीमाओं के निकट होने के प्रति चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर उन्होंने ऐसा कोई क़दम उठाया तो उन्हें यह ग़लती बहुत भारी पड़ेगी।

अमरिकी सेंट्रल कमांड ने सोमवार को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर फ़ार्स खाड़ी रणनीतिक क्षेत्र के मुख्य जलमार्गों पर जहाज़ों की सुरक्षा के लिए 3,000 से अधिक नौसैनिकों को तैनात करने की घोषणा की है।

अमरीकी नौसेना की पूर्व घोषणा के मुताबिक़, अमरीकी युद्धपोत यूएसएस बाटन और यूएसएस कार्टर हॉल 3,000 नौसिकों के साथ मध्यपूर्व पहुंच गए हैं।

अल-मसीरा नेटवर्क की रिपोर्ट के मुताबिक़, सेंटकॉम की इस घोषणा पर यमन की राष्ट्रीय मुक्ति सरकार के उप विदेश मंत्री हुसैन अल-इज्ज़ी ने प्रतिक्रिया जताते हुए कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की ख़ातिर, अमरीकी सैनिकों को हमारे समुद्री क्षेत्र से दूर ही रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमारे समुद्री क्षेत्र में किसी भी तरह की शरारत का मतलब होगा, मानव इतिहास के सबसे लंबे और ख़र्चीले संघर्ष की शुरूआत।

इससे पहले यमन के रक्षा मंत्री मोहम्मद नासिर अल-आतेफ़ी ने भी चेतावनी देते हुए कहा था कि यमनी समुद्री क्षेत्र में विदेशी सैनिकों की ग़ैर-क़ानूनी उपस्थिति, उन्हें बहुत भारी पड़ेगी।