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ईरान की असल ताक़त का अंदाज़ा लगाना नामुमकिन, ईरान की प्रगति का सबसे बड़ा राज़ क्या है, जानिये!

इस्लामी गणराज्य ईरान की पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स के कमांडर इन चीफ़ जनरल हुसैन सलामी ने कहा है कि ईरान की असली ताक़त तो अभी तक किसी ने देखी ही नहीं है क्योंकि वह अदृश्य है। उन्होंने कहा कि इतने प्रतिबंधों के बाद भी ईरान को शक्तिशाली बनने से कोई नहीं रोक पाया।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, इस्लामी गणराज्य ईरान की पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स आईआरजीसी के कमांडर इन चीफ़ जनरल हुसैन सलामी ने शनिवार को आईआरजीसी की नौसेना द्वारा किए गए सैड़कों की संख्या में रणनीतिक सिस्टमों और उपकरणों के अनावरण के मौक़े दिए अपने बयान में कहा कि एक ओर दुश्मन हमपर लगातार प्रतिबंध लगा रहा है वहीं दूसरी ओर हम उन प्रतिबंधों को अपने पैरों तले रौंदते हुए विकास की नई-नई ऊंचाईयों को छूते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ईरान की असली ताक़त को तो किसी को अंदाज़ा ही नहीं हो सकता है, क्योंकि हमारी मुख्य शक्तियां तो अदृश्य हैं। जनरल सलामी ने कहा कि ईरानी राष्ट्र अपने दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत और अपने बल पर ताक़तवर बना है। आईआरजीसी के कमांडर इन चीफ़ प्रमुख ने आईआरजीसी की नौसेना के प्रमुख जनरल एडमिरल अली रज़ा तंगसीरी और अन्य अधिकारियों के साथ मुलाक़ात में कहा कि ईरानी राष्ट्र ने विश्व में मौजूदा अन्यायपूर्ण व्यवस्था के प्रति जागरूक होकर मज़बूत बनने का एक रास्ता खोज लिया है। उन्होंने कहा कि हम एक सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्ष करते हुए जिहाद में अपनी विजय को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं।

आईआरजीसी के कमांडर इन चीफ़ प्रमुख जनरल हुसैन सलामी ने कहा कि हम दुश्मनों की पहचान कर उनका मुक़ाबला करके आगे बढ़े हैं। उन्होंने कहा कि आज जो हमे कामयाबियां मिल रही हैं वह दशकों के संघर्ष का नतीजा है, दशकों तक हमने ख़तरों का सामना किया है, सच्चाई तो यह है कि हमारे दुश्मन ही हमारे विकास का कारण बने हैं और आज हमने शक्तिशाली बनने का रास्ता ढूंढ निकाला है। जनरल सलामी ने क्षेत्र में दुश्मन की प्रत्यक्ष उपस्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि ईरान के दुश्मनों की दुश्मनी ने हमे उनसे मुक़ाबला करने के लिए मजबूर किया और फिर हमे यह अवसर मिला कि हम अपने दुश्मनों से मुक़ाबले के लिए अपने आपको दुश्मन की ताक़त के अनुसार तैयार करें और यही कारण है कि आज ईरान दुनिया के शक्तिशाली देशों गिना जाता है। उन्होंने कहा कि आईआरजीसी और सेना दोनों की नौसेना तटों और गहरे समुद्रों पर मौजूद है। लेकिन उनके प्रभाव का दायरा महासागरों में कहीं भी देखने को मिल सकता है, क्योंकि वे न केवल नीली सीमाओं की रक्षा करते हैं, बल्कि वे पूरी दुनिया में ईरानी राष्ट्र के हितों की रक्षा करते हैं।

ईरान की प्रगति का सबसे बड़ा राज़ क्या है?

ईरान की नौसेना ने नये रक्षा हथियारों व संसाधनों का अनावरण किया है। ईरान की नौसेना ने जिन मिसाइलों, ड्रोनों और इलेक्ट्रानिक संसाधनों का अनावरण किया है उन सबका निर्माण देश के रक्षा उद्योग में ईरानी वैज्ञानिकों के परिश्रम से किया गया है।

अभी सिपाहे पासदारान आईआरजीसी ने ईरान के बुमूसा द्वीप में जो नौसैनिक अभ्यास किया है उससे कुछ नये रक्षा हथियारों का परीक्षण किया है। ईरान की नौसेना के पास इस समय 300 किलोमीटर से लेकर 1000 किलोमीटर दूरी तक मार करने वाले क्रूज़ मिसाइल हैं जिससे नौसेना की ताकत में काफी वृद्धि हो गयी है।

अभी सिपाहे पासदारान आईआरजीसी ने बुमूसा द्वीप में जो सैनिक अभ्यास किया है उसमें पहली बार क्रूज़ मीसाइल क़दीर और बैलेस्टिक मिसाइल फत्ह का परीक्षण किया गया।

सिपाहे पासदारान ने जिन रक्षा संसाधनों व हथियारों का अनावरण किया है वे इस बात के सूचक हैं कि ईरान रक्षा के क्षेत्र में भी ध्यान योग्य प्रगति कर रहा है। साथ ही इस प्रगति ने दर्शा दिया है कि तेहरान के खिलाफ प्रतिबंध और दुश्मनों के दबाव ईरान की प्रगति के मार्ग की बाधा नहीं बन सके हैं।

रोचक बात यह है कि न केवल रक्षा बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में ईरान ध्यान योग्य प्रगति कर रहा है और ईरान की प्रगति को रोकने के लिए दुश्मन विभिन्न बहानों व निराधार आरोपों के माध्यम से तेहरान के खिलाफ प्रतिबंध लगाते हैं और इन प्रतिबंधों का सबसे मुख्य लक्ष्य ईरान को प्रगति करने से रोकना है परंतु नैनो और परमाणु तकनीक जैसे जटिल क्षेत्रों में ईरान की उल्लेखनीय प्रगति ने दुश्मनों को हतप्रभ कर रखा है और उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि ईरान को प्रगति करने से कैसे रोकें।

ईरान को प्रगति से रोकने के लिए ही ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों को शहीद किया गया परंतु किसी भी क्षेत्र में देश की प्रगति नहीं रुकी है और रक्षा उद्योग के क्षेत्र में वह आत्म निर्भर हो चुका है।

विभिन्न क्षेत्रों में ईरान की प्रगति का एक राज़ व कारण यह है कि वह देश के अंदर मौजूद संभावनाओं और देश के मेधावी व प्रतीभाशाली युवाओं की क्षमताओं से लाभ उठा रहा है इस प्रकार से कि रक्षा और ग़ैर रक्षा क्षेत्र की बहुत सी ज़रूरतों का निर्माण देश के भीतर किया जा रहा है और अमेरिका और दुश्मनों के एकपक्षीय प्रतिबंधों से उन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ रहा है।

यह उस स्थिति में है जब ईरान को इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ से ही प्रतिबंधों का सामना रहा है और हालिया वर्षों में उसे कड़ा से कड़ा बना दिया गया है।

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह सोचकर ईरान के खिलाफ कड़े से कड़े प्रतिबंध की नीति अपनाई थी कि ईरान इन प्रतिबंधों के सामने घुटने टेक देगा और वाशिंग्टन की वर्चस्ववादी इच्छाओं व मांगों को मान लेगा परंतु कई वर्षों का समय बीत गया और ड्रम्प की सत्ता से विदाई भी हो गयी मगर ईरान वाशिंग्टन की वर्चस्ववादी नीतियों के समक्ष नहीं झुका।

जानकार हल्कों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप ने अगर ईरान के खिलाफ कड़ा से कड़ा प्रतिबंध लगाने से पहले ईरानी इतिहास का थोड़ा सा अध्ययन कर लिया होता तो वे कभी भी ईरान के संबंध में इस प्रकार की विफल नीति न अपनाते। इस प्रकार से कि आज स्वयं अमेरिकी अधिकारी स्वीकार कर रहे हैं कि तेहरान के खिलाफ अधिकतम दबाव की नीति विफल रही है और उसका कोई परिणाम नहीं निकला है।