मनोरंजन

भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग के निर्देशक, पटकथा और संवाद लेखक-‘वजाहत मिर्ज़ा’ : विशेष


Manohar Mahajan
=======
🎬वजाहत मिर्ज़ा.【पुण्यस्मृति】
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
फ़िल्में कला का सबसे श्रेष्ठतम माध्यम होती हैं. इनमें सभी कलाओं का संगम होता है. मसलन:संगीत, अदाकारी, लेखन इत्यादि. इनमें से एक भी पक्ष कमज़ोर हो तो उसका पूरी फ़िल्म पर प्रभाव पड़ता है. दर्शक अक्सर फिल्मों के नायक-नायिकाओं को ही तवज्जो देते हैं पर इनके इतर भी बहुत कुछ होता है. उनके द्वारा बोले गए संवाद, उनके अभिनय करने और संवाद बोलने का तरीक़ा एक पटकथा लेखक तय करता. तब कहीं जाकर वे दर्शकों के दिलों में अपना घर बना पाते हैं.

भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग में ऐसे ही एक पटकथा और संवाद लेखक थे-‘वजाहत मिर्जा.’ जिन्होंने उस दौर की बेहतरीन फिल्मों के संवाद लिखे. उनके लिखे संवादों और पटकथाओं ने न जाने कितने नायक और नायिकाओं को अमर कर दिया.

अपनी लेखन कला से करोड़ों लोगों के दिल पर राज करने वाले वजाहत मिर्ज़ा का जन्म 20 अप्रैल 1908 के दिन लखनऊ के निकट स्थित सीतापुर में हुआ था. सम्पन्न घराने से होने के कारण इन्हें पढने-लिखने के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा.जैसे-जैसे ये बड़े होते गए, वैसे-वैसे उनका रुझान सिनेमा और लेखन की तरफ होता गया. इस उद्देश्य से उन्होंने ‘गवर्नमेंट जुबिली इंटर कॉलेज’ में दाखिला ले लिया. यह वही समय था, जब उन्होंने कुछ ठोस काम करने का मन बनाया. अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने कलकत्ता के सिनेमेटोग्राफर कृष्ण गोपाल से संपर्क साधा. उनके साथ मिलकर उन्होंने निर्देशन और सिनेमा लेखन की बारीकियां सीखीं. उनके सीखने की गति इतनी तेज़ थी कि वे जल्द ही उनके सहायक भी बन गए.

दोनों ने मिलकर कुछ अच्छी का निर्माण किया.उनके फिल्म बनाने का अंदाज़ एकदम नया था.उन्हें जल्द ही जाने-पहचाने निर्देशकों और निर्माताओं की तरफ से बुलावे आने लगा.

चालीस के दशक में उन्होंने कुछ फिल्मों का निर्देशन किया. इन फिल्मों में ‘स्वामीनाथ’, ‘जवानी’ और ‘प्रभु का घर’ जैसी फ़िल्में शामिल थीं. निर्देशन के साथ-साथ वे लेखन भी कर रहे थे.

जैसे-जैसे वक़्त बीता उन्हें एहसास होने लगा कि लेखन ही उनके लिए सही विकल्प है और उन्हें अपना सारा ध्यान केवल लेखन पर ही लगाना इसका परिणाम यह हुआ कि फ़िल्में हिट होने लगीं.1940 में उन्होंने ‘औरत’ फिल्म के लिए लेखन किया. इसके बाद 1956 में फिल्म ‘आवाज़’ में भी उन्होंने पटकथा और संवाद लिखे. इसके लिए उनकी खूब सराहना हुई.आगे 1957 में मेहबूब खान के निर्देशन में ‘मदर इंडिया’ फिल्म रिलीज हुई तो यह ‘ब्लॉकबस्टर’ साबित हुई. यह फिल्म अपने संवादों के लिए ‘ऑस्कर पुरस्कार’ के लिए नॉमिनेट भी हुई और केवल एक वोट से इस पुरस्कार को जीत नहीं पाई. इस फ़िल्म के संवाद वजाहत मिर्ज़ा ने ही लिखे थे.1960 में सदी महान फिल्म ‘मुगल-ए-आज़म’ आई. इस फिल्म के संवाद और पटकथा चार लेखकों ने तैयार किये. इनमें से एक वजाहत मिर्ज़ा भी थे.अगले ही साल फिल्म ‘गंगा-जमुना’ रिलीज़ हुई. यह फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर हिट रही.

वजाहत मिर्जा का संवाद और पटकथा लिखने का अंदाज बिल्कुल निराला था. वे कठिन से कठिन बातों को सीन के अनुरूप ढालकर इतनी सहजता से कह देते थे कि लगता ही नहीं था कि फिल्म में कहीं भारीपन या ऊब है.अगर हम मदर इंडिया की बात करें तो जब राधा अपने दो भूखे बच्चों को लेकर सूदखोर सुखी लाला के पास जाती है, तब लाला उसके सामने एक प्रस्ताव रखता है. लाला कहता कि राधा अगर अपनी इज्जत का सौदा कर ले तो वह उसे पैसे दे देगा. इस बात को वजाहत मिर्ज़ा ने बिल्कुल आसान और प्रभावशाली शब्दों संवाद में ढाला था: “अच्छी तरह सोच विचार कर लो राधा. कौनो जल्दी नाही है, सुखी लाला बहुत सबर वाला आदमी है.” वहीँ अगर फिल्म ‘गंगा-जमुना’ की बात करें, तो इसमें भी किरदार जमुना की ख़ुद्दारी को मिर्ज़ा साहब ने बहुत ही आसान शब्दों में बयान किया है. जमुना जब काम की तलाश में आता है, तब उसे एक सोने का हार मिलता है. वह यह हार पुलिस को दे देता है. पुलिस वाला उसकी हालत देखकर पूछता है,” मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूँ?”. तब जमुना जवाब देता है,: “कोई नौकरी मिल सकती है,मैं बहुत तकलीफ में हूँ.”\

संवाद और पटकथा लिखने का मिर्ज़ा साहब का यह अनोखा अंदाज ही था, जिसकी वजह से उन्हें लगातार दो बार ‘फिल्म-फेयर अवार्ड’ मिला. 1961 में ‘मुगल-ए-आज़म’ और 1962 में ‘गंगा-जमुना’ के लिए उन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया. आगे उन्होंने ‘लीडर’, ‘शतरंज’, ‘गंगा की सौगंध’ और ‘लव एंड गॉड’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के संवाद भी उन्होंने ही लिखे. अपने 53 साल के करियर में उन्होंने कुल मिलाकर 31 फिल्मों के लिए संवाद और पटकथा तैयार की.
अपने संवादों से उन्होंने अनेकानेक कलाकारों को सिनेमा जगत के सबसे ऊपरी पायदान पर बिठाया.उन्होंने ताउम्र अपना काम पूरी शिद्दत से किया और 4 अगस्त 1990 के दिन इस दुनिया को अलविदा कह गए.

☄️स्वर्णिम युग के इस महान संवाद और पटकथा- लेखक को उनकी 33वीं पुण्यतिथि पर हम नमन करते हैं.
🙏🙏