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2024 में पुलवामा और बालाकोट जैसा कुछ हो सकता है, राम मंदिर पर भी हमला हो सकता है या……!!रिपोर्ट!!

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सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने आशंका जताई है कि 2024 में पुलवामा और बालाकोट जैसा कुछ हो सकता है। इतना ही नहीं, उन्होंने अयोध्या के राम मंदिर पर भी आतंकी हमले का साया मंडराने की बात कही है। पाकिस्तान के बालाकोट में जो स्ट्राइक हो सकती है, उसमें इस बार कुछ जवान भी भेजे जा सकते हैं। साल 2019 में वहां पर केवल एयर स्ट्राइक हुई थी।

बीएसएफ के पूर्व एडीजी और सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ एसके सूद ने कहा, 2024 से पहले ‘राम’ मंदिर पर ‘गजवा ए हिंद’ जैसे आतंकी संगठन हमले का प्रयास कर सकते हैं। इसके मद्देनजर, काशी, मथुरा और अयोध्या में स्थित मंदिरों की सुरक्षा को तीन गुना तक बढ़ाया जाए। पुलवामा में हुए सीआरपीएफ हमले पर उन्होंने कहा, सरकार इस मामले को रहस्य बनाए रखना चाहती है। जवानों को उस बस में बैठाया गया था, जो पत्थर तक नहीं झेल सकती थी।

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जिन्हें सजा मिलनी चाहिए थी, उन्हें ईनाम मिला
मंगलवार को कांस्टीट्यूशन क्लब में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा मामला, चिंता और जवाबदेही, विषय पर सम्मेलन आयोजित किया गया। प्रशांत भूषण और एसके सूद सहित कई विशेषज्ञों ने सम्मेलन में अपनी बात रखी। प्रशांत भूषण ने कहा, पुलवामा के आतंकी हमले को लेकर कई सवाल हैं। वह हमला कैसे हुआ, क्यों हुआ, इस बाबत बहुत से तथ्य सामने आ चुके हैं। पहली बात तो यही थी कि जवानों को इंटेलिजेंस अलर्ट के बावजूद सड़क मार्ग से क्यों भेजा गया। उन्हें हवाई जहाज से क्यों नहीं ले जाया गया। पुलवामा हमले से एक माह पहले 11 इंटेलिजेंस इनपुट मिले थे, मगर उन्हें पूरी तरह से दरकिनार किया गया। सुरक्षा बलों के लिए तय ‘एसओपी’ का पालन नहीं किया गया। तीन सौ किलो से ज्यादा आरडीएक्स लेकर गाड़ी घूमती रही, मगर किसी को पता ही नहीं चला।

उन्होंने जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने उनसे कहा, आप चुप रहें। 40 जवान शहीद हो जाते हैं। अभी तक किसी को नहीं मालूम कि उस मामले में कोई जांच रिपोर्ट भी आई है। अगर वह आई है तो उसमें क्या है। किसी को इस बारे में नहीं पता है। सरकार ने न तो सदन में और न ही सार्वजनिक पटल पर उसकी चर्चा की। जब ये सब हुआ तो ऐसे में किसी की जवाबदेही भी तय नहीं हो सकी। जिन्हें सजा मिलनी चाहिए थी, उन्हें पदोन्नति के रूप में ईनाम दिया गया।

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आरडीएक्स लेकर घूम रही गाड़ी का पता था
बीएसएफ के पूर्व एडीजी एसके सूद ने कहा, ऐसा सुनने को मिल रहा है कि 2024 से पहले राम मंदिर पर हमला हो सकता है। दूसरे शहरों के मंदिरों को भी खतरा है। पुलवामा हमले की घटना के लिए जो अफसर जिम्मेदार थे, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है। पुलवामा में जिस सड़क से सीआरपीएफ जवानों से भरी बस गुजर रही थी, उसे सेनेटाइज क्यों नहीं किया गया। हर दो सौ मीटर की दूरी पर सुरक्षा बल तैनात क्यों नहीं किए गए। बम निरोधक दस्ता कहां पर था।

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सूद ने मीडिया में छपे कई लेखों का हवाला दिया। जब आरडीएक्स लेकर घूम रही गाड़ी का पता था तो उसे पकड़ा क्यों नहीं गया। पुलवामा हमले से एक दिन पहले तक अलर्ट मिला था। उसके बावजूद सुरक्षा के लिए कुछ नहीं किया जा सका। मुख्य आरोपी और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह जैश-ए-मोहम्मद का गुर्गा आदिल अहमद डार के गांव का सभी को मालूम थ। कश्मीर में तैनात सभी सुरक्षा बलों को अलर्ट भेजे गए थे। ये बताया गया कि वह विस्फोटक लेकर घूम रहा है। 13 फरवरी को निकटवर्ती क्षेत्र में एक ब्लास्ट हुआ था, जिसमें कई बच्चे घायल हुए। उसके बाद भी कोई नहीं संभला। लापरवाही बरती गई, जिसका नतीजा 40 जवानों की शहादत के रूप में सामने आया।

अग्निवीर योजना से सेना कमजोर होगी
सम्मेलन में मेजर जन. ‘रिटायर्ड’ बिशमबर दयाल ने कहा, देश में यह सवाल सबसे बड़ा है कि आतंकी हमले क्यों होते हैं। क्या सरकार के लिए सुरक्षा मुद्दा अब प्रमुख नहीं रहा। क्यों कारगिल हुआ, क्यों मणिपुर हो रहा है, क्यों गलवान हुआ, क्यों उरी हुआ या ऐसे ही दूसरे हमलों को अंजाम दिया गया। इन पर संसद में बहस क्यों नहीं होती। पुलवामा हमले कैसे हुआ, इस बाबत अनेक तथ्य छिपा लिए गए। संसद में यह क्यों नहीं पूछा जाता कि पुलवामा हमले की रिपोर्ट में क्या निकला। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, इस पद के लिए क्या कोई भी आर्मी अफसर योग्य नहीं है। पुलवामा केस के लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई नहीं की गई। सरकार ने कभी भी इन सवालों का जवाब नहीं दिया। अब केंद्र सरकार, अग्निवीर योजना को आगे बढ़ा रही है।

इतिहास गवाह है कि कई बड़ी लड़ाई हथियारों के बल पर नहीं, बल्कि सैनिकों के हौसले और उनकी बहादुरी से जीती गई हैं। भारतीय सेना का बहादुरी के मामले में कोई मुकाबला नहीं है। अब अग्निवीर योजना के जरिए सेना को कमजोर बनाने का प्रयास हो रहा है। क्या मणिपुर की घटना को लेकर किसी ने सुना है कि कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी, नेशनल सिक्योरिटी सेक्रेट्रीएट या नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक हुई है। राष्ट्रीय सुरक्षा को हल्के में लिया जा रहा है।