साहित्य

शादी के दिन दुल्हन ने अपने पति से वादा लिया, कि वह उस अटैची को कभी नहीं खोलेंगे…\\\\क्या था उस अटैची में???

राधादेव शर्मा
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शादी के दिन एक अटैची की तरफ इशारा करती नवविवाहित दुल्हन ने अपने पति से वादा लिया था कि वह उस अटैची को कभी नहीं खोलेंगे…
उसके पति ने भी उससे वादा किया कि वह बिना उसके परमिशन के उस अटैची को कभी नहीं खोलेगा।

शादी के पचासवें साल में, जब पत्नी बिस्तर पर ज़िंदगी की आखरी साँसे ले रही थी तो पति ने अपनी पत्नी को उस अटैची की याद दिला दी।

पत्नी बोली: अब इस अटैची का राज़ खोलने का वक़्त आ गया है, अब आप इस अटैची को खोल सकते हो।

पति ने जब अटैची को खोला तो उसमें से दो गुड़िया और एक लाख रुपए निकले।

पति ने पूछा तो पत्नी बोली- “मेरी माँ ने मुझे सफल शादी का राज़ दिया, उसने सलाह दी थी कि गुस्सा पीना बहुत अच्छा है।

माँ ने मुझे ये तरीका बताया कि जब भी उसे अपने पति की किसी गलत बात पर ग़ुस्सा आए तो पति पर गुस्सा होने के बजाय एक गुड़िया सिल लिया करना, इसलिए जब भी तुम्हारे बारे में किसी गलत बात पर ग़ुस्सा आता तो मैं एक गुड़िया सी लिया करती थी।

पति दो गुड़ियों को देखकर बहुत खुश हुआ कि उसने अपनी पत्नी को कितना खुश रखा है, सफल दाम्पत्य जीवन के पचास वर्ष पूरे होने के बाद उसकी पत्नी ने सिर्फ दो गुड़िया बनाई।

जिज्ञासा में पति ने अटैची में रखे करीब एक लाख रुपए के बारे में पूछा तो पत्नी बोली- “मैंने ये एक लाख रुपए गुडिया बेचकर इकठ्ठा किए हैं।”
इतना सुनते ही पति को अपनी सभी गलतियों का एहसास हुआ और उसने अपनी पत्नी से सिर झुकाते हुए माफी मांगी। पत्नी का दिल इतना बड़ा था कि उसने माफ कर दिया।

‘जीवन की खुशियों के लिए पति-पत्नी के रिश्ते को प्यार, विश्वास और समझदारी के धागों से मजबूत बनाना पड़ता है, छोटी-छोटी बातें इग्नोर करनी होती हैं, मुश्किल समय में एक-दूसरे का सहारा बनना पड़ता है।

पति-पत्नी का रिश्ता इस दुनिया का सबसे खास रिश्ता होता है।

पति पत्नी के रिश्ते में विश्वास होना चाहिए, आपस में एक-दूसरे के प्रति होने वाले विश्वास को कभी न डगमगाने दें।

पति-पत्नी के रिश्ते में एक-दूसरे के प्रति सम्मान होना जरुरी है, पति-पत्नी के रिश्ते में क्रोध और घमंड के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए, पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए एक दूसरे को समय दें। एक-दूसरे की इच्छाओं का आदर करें, एक-दूसरे की भावनाओं को समझें, एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार को कभी कम न होने दें, हमेशा मिल-जुल कर अपने प्यार को बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ खास करना चाहिए। सबसे अहम बात दोनों को अपनी जिंदगी में एक-दूसरे को बराबर समझना चाहिए।

राधादेव शर्मा
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‘जय श्रीराम’ के नारे को कमतर और ‘जय सियाराम’ को बेहतर बताने वाले समझ लें कि ‘जय श्रीराम’ में ‘जय’ का अर्थ विजय, ‘श्री’ का अर्थ यश और माता सीता है और ‘राम’ का अर्थ होता है अनंत. इसमें ‘श्री का अर्थ ‘श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च’ यानि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी या फिर कहें भगवान राम की पत्नी सीता हैं.

हिंदू मान्यता के अनुसार भगवती लक्ष्मी और माता सीता में कोई अंतर नहीं है, बल्कि उन्हीं का स्वरूप हैं.

श्री शब्द का अर्थ यश, लक्ष्मी, कांति, शक्ति होता है. सनातन परंपरा में किसी भी देवी या देवता या फिर व्यक्ति विशेष के नाम के आगे ‘श्री’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसके पीछे उसका आदर, सम्मान, महिमा का गुणगान का भाव निहित है.

‘श्री’ शब्द स्त्रीवाची है और सनातन पंरपरा में पुरूषों से पहले स्त्री को ही स्थान दिया गया है. यही कारण है कि ‘जय सिया राम’, ‘जय श्री राम’ , ‘सियावर राम चंद्र की जय’, ‘पार्वतीपतये नमः’, ‘उमामहेश्वराभ्यां नम:’, कहा जाता है. श्री के साथ भगवान विष्णु के रहने के कारण ही उन्हें श्रीमान या श्रीपति कहा जाता है.
जय हो 🙏

राधादेव शर्मा
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आखिर हम एक साथ दो बार क्यों बोलते हैं ‘राम-राम’ ?

सनातन धर्म में राम नाम का बहुत महत्व है। जीवन के हर पल और हर क्षण में राम का नाम शामिल रहता है। आपने कई लोगों को अभिवादन के तौर पर राम-राम कहते देखा होगा लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि राम-राम दो बार ही क्यों बोला जाता है ?

इसके पीछे एक रोचक कारण छिपा हुआ है।

राम सबकी चेतना का सजीव नाम है। श्रीराम अपने भक्तों को सुख और सौभाग्य का वरदान देते हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं उनमें सर्वाधिक श्रीफल देने वाला नाम राम का ही है। राम नाम सबसे सरल और सुरक्षित है। इसका जाप करने से मनुष्य को लक्ष्य की प्राप्ति जरूर होती है।

हम एक-एक मनके से गुजरते हुए जब 108 बार मंत्र को बोलते हैं, तब जाकर आपकी एक माला पूरी होती है, लेकिन ‘राम-राम’ शब्द इतना चमत्कारी है कि इसे बोलने से ही 108 बार राम के नाम का जाप हो जाता है। यानी ‘राम-राम’ साथ बोलना एक माला के जाप के समान है।

आइए जानते हैं कैसे-
हिंदी शब्दावली के अनुसार ‘राम’ शब्द का पहला अक्षर यानी ‘र’ सत्ताइसवें स्थान पर आता है। वहीं दूसरा अक्षर ‘आ’ जो कि मात्रा के रूप में ‘र’ के साथ लगता है वह दूसरे स्थान पर आता है और ‘म’ पच्चीसवें स्थान पर आता है। इस प्रकार यदि इन सभी का जोड़ किया जाए तो वह 108 बनते हैं।

इसे इस प्रकार समझिए-
र (27)+आ (2)+म (25)= राम (54) : र (27)+आ (2)+म (25)= राम (54) = राम राम (108)।

इसलिए अभिवादन करते समय दो बार राम-राम बोलने की यह सभ्यता सालों से चली आ रही है। राम नाम का महत्व इतना अधिक है कि बच्चे के जन्म में श्रीराम के नाम का सोहर होता है। विवाह आदि मांगलिक कार्यों के अवसर पर श्रीराम के गीत गाए जाते हैं। यहां तक कि मनुष्य की अंतिम यात्रा में भी राम नाम का ही घोष किया जाता है।

जय श्रीराम
❣राधादेव शर्मा