इतिहास

***पहला तिरंगा****सुरय्या तय्यब जी ने किया था डिज़ाईन*

Ataulla Pathan
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📙 *कहाणी तिरंगे की*
🤍 *कागज पर बना था पहला तिरंगा*
🟢 *सुरय्या तय्यबजी ने किया था डिजाईन*

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🟡 साउथ दिल्ली की एलीट वेस्ट एंड *कॉलोनी के एक घर से गणतंत्र दिवस और तिरंगे से बहुत गहरा संबंध* है। 26 जनवरी आते ही अपने पिता *बदरूद्दीन तैयबजी और मां सुरैया* की यादों में खो जाते हैं। उन दिनों की यादें ताजा होने लगती हैं, *जब तैयबजी देश के पहले गणतंत्र दिवस* की तैयारियों में लगे थे। ।
🔴 *1936 बैच के आईसीएस अफसर बदरुद्दीन तैयबजी पर पहले रिपब्लिक डे समारोह की जिम्मेदार थी*।

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उनकी पुत्री लैला तैयबजी कहती हैं कि उन्हें फख्र होता है कि *हमारे पिता की देखरेख में 26 जनवरी, 1950 को गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम* हुए थे। लैला तैयबी ‘दस्तकार’ नाम संस्था की चेयरपर्सन हैं और देश की हस्तकरघा परंपरा को जिंदा रखने में अहम किरदार निभा रही हैं।

🟣 *कहानी तिरंगे की*
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🟢 *बदरूद्दीन तैयबजी संविधान सभा के मेंबर सेक्रेटरी थे*। इसी सभा को राष्ट्रध्वज पर अंतिम फैसला लेना था। *उन्हीं की सलाह पर तिरंगे में अशोक चक्र को जगह* मिली। उन्होंने जब ये सलाह संविधान सभा में दी तो उनसे एक नमूना लेकर आने को कहा गया। तब उनकी *चित्रकार पत्नी सुरैया ने कागज पर तिरंगा बनाया* और उसमें अशोक चक्र को रखा। उसके बाद कनॉट प्लेस के रीगल बिल्डिंग में एससी शर्मा टेलर्स से झंडा बनवाया गया। जब *तैयबजी ने संविधान सभा के तिरंगा दिखाया तो उसे देश के नए राष्ट्र ध्वज के रूप में मंजूरी दे दी गई*।

*5 साल नहीं निकली परेड*
🟣पंजाब कैडर के *बदरूद्दीन तैयबजी* को सुबह दरबार हाल और शाम को इरविन स्टेडियम (अब ध्यानचंद नैशनल स्टेडियम) में होने वाले कार्यक्रमों को देखना था। उन्होंने करीब 25 साल पहले बताया था कि उन्हें दोनों *आयोजनों की जिम्मेदारी खुद प्रधानमंत्री पंडित नेहरू* ने सौंपी थी। तब कई दिनों की कड़ाके की सर्दी के बाद *26 जनवरी, 1950 को मौसम बेहद खुशनुमा* था। कई दिनों तक छिपे रहने के बाद सूरज ने दर्शन दिए थे। उस दिन राजधानी की फिजाओं में पर्व का उल्लास था। देश अपने नए संविधान को लागू कर रहा था। भारत गणतंत्र राष्ट्र के रूप में सामने आ रहा था। उस दिन गणतंत्र दिवस परेड नहीं निकली थी। परेड का सिलसिला तो 1955 से चालू हुआ था।

🔴 *राष्ट्रपति की शपथ*
*बदरूद्दीन साहब* ने बताया था कि देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने जा रहे डा. राजेंद्र सुबह करीब 8 बजे राजघाट पहुंचे। वहां से वे सीधे राष्ट्रपति भवन पहुंचे। उन्हें ठीक 9 बजे देश के गवर्नर जनरल सी राजगोपालचार्य ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस शपथ ग्रहण समारोह के गवाह बने 500 अतिविशिष्ट मेहमान। डा. राजेंद्र प्रसाद ने काली अचकन, झक सफेद चूड़ीदार पायजामा और गांधी टोपी पहनी हुई थी। राष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने और उनकी कैबिनेट के सदस्यों ने शपथ ली।

बग्घी से पहुंचे राष्ट्रपति जब राष्ट्रपति भवन के दरबार हाल में आयोजन चल रहा था, उस वक्त बाहर अपार जनसमूह एकत्र हो चुका था। बड़ी तादाद में लोग पड़ोसी राज्यों से आए हुए थे। वे बाहर खड़े होकर गांधी जी की जय और वंदेमातरम के नारे लगा रहे थे। बदरूद्दीन तैयबजी सुबह के कार्यक्रम के बाद अब शाम के वक्त इरविन स्टेडियम में होने वाले सार्वजिनक समारोह की तैयारियों में जुट गए। शाम करीब 5 बजे पहले राष्ट्रपति घोड़े की बग्घी में बैठकर आयोजन स्थल पर आए। राष्ट्रपति जैसे ही स्टेडियम आए तो उन्हें 31 तोपों की सलामी दी गई। राष्ट्रपति भवन की तरह यहां भी डा. राजेंद्र प्रसाद ने भाषण दिया। राष्ट्रपति के भाषण के बाद राजधानी के कुछ स्कूलों के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए। जब इरविन स्टेडियम में कार्यक्रम चल रहा था, उस वक्त वहां पर गिनती के ही पुलिसवाले मौजूद थे। कार्यक्रम समाप्त होते ही राष्ट्रपति वहां से निकल गए, उसके बाद लोगों ने नेहरु जी को घेर लिया। वे आम और खास लोगों से 10-15 मिनट बातें करते रहे।

🟢 *जगमग राजधानी* और उस दिन दिल्ली का दिल कनॉट प्लेस बेहतरीन सजावट से चमक रहा था। सारी दिल्ली 26 जनवरी, 1950 की रात को जगमग थी। दिल्ली ने इस तरह का नजारा इससे पहले सिर्फ 15 अगस्त, 1947 को ही देखा था

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Source–Navbharat Times 26 Jan 2018,
विवेक शुक्ला, नई दिल्ली

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संकलन *अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर टूनकी तालुका संग्रामपुर जिल्हा बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726