इतिहास

#भारतरत्न_मौलाना अबुल_क़लाम_आज़ाद_की_ज़िंदगी_का_आख़िरी_सफ़र!

Ataulla Pathan
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22 फेब्रुवारी यौमे वफात
#भारतरत्न_मौलानाअबुल_कलाम_आजाद_रहमतूल्लाह_अलयही_के_ज़िंदगी_का_आखरी_सफर

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🟢मौलाना अबुल कलाम आझाद रहमतूल्लाह अलयही की जिंदगी का सफर 22 फ़रवरी 1958 को ख़त्म हुआ

उन्हें जामा मस्ज़िद की कब्रस्तान में सुपुर्द ए ख़ाक किया गया।

🟡मौलाना का पूरा नाम “सैय्यद अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन अहमद बिन खैरुद्दीन अल- हुसैनी आज़ाद” था।

🔴मौलाना ख़ुद आलिम थे उनकी *मां मदीने के एक बड़े आलिम* की बेटी थीं। इसके बावज़ूद मज़हब के आधार पर देश के बंटवारें के हमेशा खिलाफ़ रहे। जिन्ना और सावरकर के खिलाफ़ रहे। *अखंड और धर्म निरपेक्ष भारत के लिए सारी ज़िंदगी लड़ते रहे*। मौलाना ने कहा था:

*”मुझे एक हिंदुस्तानी होने पर फ़ख़्र है*। मैं उस अविभाज्य एकता का हिस्सा हूं। जिस तरह एक हिंदू गर्व के साथ कह सकता है कि वह एक भारतीय है और हिंदू धर्म का पालन करता है, उसी तरह एक मुसलमान भी समान गर्व के साथ कह सकता हैं कि हम भारतीय हैं और इस्लाम का पालन करते हैं। हर भारतीय नागरिक इस देश के बराबर हकदार हैं।”

🟣मौलाना अबुल कलाम आजाद ने शिक्षा मंत्री रहते हुए 1951 देश का पहला आई आई टी खड़गपुर खुलवाया। मौलना आज़ाद शिक्षा को समाज का एक ज़रूरी हिस्सा समझते थे,


वो कहते थे-

*”हमें एक लम्हे के लिए नहीं भूलना चाहिए, बुनियादी तालीम हासिल करना हर फर्द का पैदाइशी हक़ है जिसके बिना वह एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से नहीं निभाया जा सकता*।”

🔵मौलाना अगर सिर्फ़ सियासतदां होते तो शायद हालात से समझौता कर लेते; *लेकिन वो ज़िन्दा दिल और अहसासात के मालिक* थे, वो ग़ुलाम मुल्क में पले बढ़े लेकिन ज़िन्दगी आज़ादी के लिए गुज़ार दी, *जिस हिन्दुस्तान का नक़्शा उनके दिमाग़ में था उससे अलग नक़्शा वो क़बूल कर नहीं पा रहे थे! जो ज़ख़्म उनके अपनों ने दिया उसे बर्दाश्त* करना मामूली नहीं था।

🟡19 फ़रवरी 1958 को ऑल इंडिया रेडियो ने ख़बर दी की मौलाना बीमार हो गए हैं, उन पर फ़ालिज का हमला हुआ था, डाक्टरों की लाईन लग गई, *पंडित नेहरु और राजेंद्र प्रसाद मौलाना के मकान* पर आ गए, डाक्टरों का कहना था 48 घंटे बाद ही कुछ कह सकते हैं।

21 फ़रवरी को मौत का अंदेशा हो गया था, *पंडित नेहरु , राजेंद्र प्रसाद और सारी कैबिनेट मौलाना के घर पर मौजूद थी*, सबके चेहरे गमगीन थे! जब शाम हुई तो उम्मीद टूट गई, *मौलाना हफ़ीज़ उर रहमान सेहरावी, मौलाना अतीक़ उर रहमान, मौलाना अली मियां* और दिगर उलमाओं ने क़ुरान की तिलावत शुरु कर दी, 22 फ़रवरी को सवा दस बजे मौलाना की रुह परवाज़ कर गई।

⚫जैसे ही मौलाना की वफ़ात का एलान हुआ एक चीख़ मच गई, *दिन चढ़ते चढ़ते लगभग दो लाख का हुजूम मौलाना के घर पर जमा हो गया*! तमाम सरकारी और ग़ैर सरकारी इदारें बंद कर दिए गए, परचम झुका दिया गया, *दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे हुए हैं जिनकी मौत पर क़ाबा के मानने वाले और कलीसा के मानने वाले दोनों मातम कर रहे हों, मौलाना की ज़ात उन गिने चुने लोगों में से थी*।

🟢डाक्टरों ने इनकी मौत का एलान 21 फ़रवरी की सुबह ही कर दिया *लेकिन हैरान थे कि जिस्म के मर जाने के बाद भी मौलाना का दिमाग़ चौबीस घंटे तक कयोकर ज़िंदा रहा*! डाक्टर विधान चंद्र कहते हैं *जब मैं मौलाना को सूई देने जा रहा था तो मौलाना कहते हैं ‘अब अल्लाह के हवाले छोड़ दीजिए , और मुझे इस पिंजरे (आकसीजन के सिलेंडर की तरफ़ इशारा करके) से आज़ाद कर दीजिए*।

🔴मेजर जनरल शहनवाज़ कहते हैं मौलाना ज़्यादा तर बेहोश ही रहे लेकिन जब होश में आते तो उनकी होंठ हिलती *हम कान लगा कर सुनने जाते शायद कुछ कह रहे हो, लेकिन सुनने पर पता चलता वो किसी आयत की तिलावत कर रहे हैं*।

🟡मौलाना की वफ़ात ने सबको निढाल कर दिया, क़ारी तैयब रहमतूल्लाह अलयही बेहोशी के आलम थे, लाल बहादुर शास्त्री, मोरार जी देसाई बिलक रहे थे, पंडित नेहरु बार बार लोगों की भीड़ में चले जाते और जब उन्हें सेकयुरिटी गार्ड रोकते तो कहते तुम कौन हो ? क्या तुम मौत से बचा सकते हो तो अंदर जाओ और मौलाना को बचा लो! घर में मौलाना की बहन आरज़ू बेगम का बुरा हाल था, उनके क़रीब *इंदिरा गाँधी, अरुणा आसफ़* अली मौजूद थीं।

🟣एक बजे मौलाना की मैय्यत उठाई गई, सबसे पहला कंधा *अरब मुल्कों के सफ़ीर ने दिया*, लोगों का हाल देख अरब मुल्क के सफ़ीर भी रोने लगे, जनाज़े को गाड़ी पर रखा गया, पीछे एक हुजूम था जो थमने का नाम नहीं लेता, *मौलाना को एक हज़ार ज़मीनी फ़ौज, एक हज़ार हवाई और तीन सौ समुद्री फ़ौज ने सलामी* पेश किया, *मौलाना अहमद सईद दहलवी ने नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ाया*, और मौलाना को क़ब्र में उतार दिया गया, अपने मालिक हक़ीक़ी से मुलाक़ात के लिए।

🔴मौलाना को दफ़ना कर लोग वापस उनके कोठी पर आ गए, पंडित नेहरु भी आ गए वो कभी मौलाना की किताबें उलटते फिर उठ कर उस क्यारी में चले गए जहाँ मौलाना टहला करते थे; वहाँ लगे फुलों से नेहरु पुछते क्या मौलाना के बाद भी मुसकराओगे ?

नोट :- 22 फ़रवरी 1958 के दिन महान भारतीय स्वातंत्रता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पुर्व अध्यक्ष और आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री इमाम उल हिन्द मौलाना अबुल कलाम आज़ाद अपने आख़री सफ़र के दौराना।

फ़ोटो में आप भारत के पहले राष्ट्रापति डॉ राजेंद्र प्रसाद और भारत के पहले उप-राष्ट्रापति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को देख सकते हैं।

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Md umar ashraf
Source heritagetimes

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संकलन— *अताऊल्ला खा रफिक खा पठाणसर टूनकी बुलढाणा*
9423338726