साहित्य

कुछ दोहे….कौन किसी को दे सका, पल भर को आराम, सबकी अपनी जिंदगी, सबके अपने काम!

चित्र गुप्त
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कुछ दोहे
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चिंता बोली चिता से, मैं जंगल तू रेह
तू मुर्दे को बारती, मैं जिंदे की देह
सपने डिजिटल इंडिया, के देकर सरकार
कटवा देगी एक दिन इंटरनेट के तार।
इक पलड़े में दुःख सभी, तह से कर दो सेट
फिर भी भारी ही लगी, मोबाइल बिन नेट
चित्रगुप्त कारण यहां, जर जोरू न जमीन
दो लोगों के अहम में, चलती है संगीन
चित्रगुप्त केवल वही, हंस पाया अत्यंत
खबर भयानक जिस तलक, पहुंची नहीं तुरंत
दो सांडों के बीच जब, हुआ युद्ध उद्दाम
सांडों का बिगड़ा न कुछ, खेती हुई तमाम।
चित्रगुप्त अव्वल सदा रक्खो अपनी खैर
मतलब से हो दोस्ती, काम भए पर बैर।
चित्रगुप्त क्यों कर रहे, सबकी इतनी फिक्र
भूलेंगे सब एक दिन , करते करते जिक्र।
चित्रगुप्त चलते रहो, तन्हा तन्हा आप
जिसको बेटा कह रहे, वो निकलेगा बाप।
कौन किसी को दे सका, पल भर को आराम
सबकी अपनी जिंदगी, सबके अपने काम
बे मतलब की दोस्ती, बिन पैसे का प्यार
मिल जाए तो आपना सारा जीवन वार
नीच प्रकृति हो जाय यदि, पद में उच्चासीन
ज्यों मटके में दूध के, घुल जाए नमकीन
चित्रगुप्त जिसके लिए, दिन दिन रहे उदास
जीना दूभर हो दिया, जब वो आई पास
उत्तम अपना मायका, अपने बाल गोपाल
इन दोनो को छोड़कर, बाकी सब जंजाल
ज्ञान बांटते फिर रहे, गली गली बिन दाम
वही ज्ञान जो स्वयं के आया एक न काम
मरते हर दम ही रहे, जब जब दिखा गुलाब।
फिर भी सत्तर साल तक जिंदा रहे जनाब।
तमस वृत्ति ने पी लिया मेरा लहू तमाम
भूखे प्यासे रह गए मेरे मन के राम
लोभ तुम्हें जब दूर तक, ले जाएगा खीच
तब सोने के हिरण से, निकलेगा मारीच
मिट जाए असमानता, मिटे हरेक प्रभुत्व।
मिटे मगर ऐसे मिटे, बना रहे बंधुत्व।।
मांग रहे हो प्रेमरस, होकर शीश सवार।
बारिश के संग धूप भी, कैसे होगी यार।।
हे प्रभु दो गज दूर से ही महके ज्यों हींग
या फिर हर इक बेवफा के सिर पर हो सींग
धोखा, घाटा दुःख मिले, ऊंच पड़े या नीच
अच्छा होना अंततः, होता ही है ठीक
या तो वे जो मर गए, या जो हम से दूर
इन दोनो को छोड़कर बाकी निष्ठुर क्रूर
तुक से तुक मिल जाय तो झूठा खड़ा ठठाय
अनगढ़ अनपढ़ सच खड़ा बांय बांय चिल्लाय
मुरहंटो के गांव में मिले महा मुरहंट
ज्यों धारा के साथ में नाव बहे निष्कंट
घटिया ओछा काइयाँ, से तब करिए बात
पहले जी भर दीजिए, उनको मुक्का-लात
मेरी चौखट से बड़ी, है तेरी दस्तार
ऐसे में कैसे भला मिलना होगा यार
कौन सास वाचाल है, कौन बहू है मौन
बस इतनी सी बात है सत्ता में है कौन
सर पर घर परिवार का जब आता है बोझ
टेढ़ा मेढ़ा आदमी हो जाता है सोझ
उग आईं हैं बेटियां, थी बेटों की आस
जैसे जौ के बीच में, उगे लमेहरा घास
सेंध लगाई शौक से काटे जेब तमाम
वे चिल्लाते जोर से जय जय जय सिया राम।
आडंबर से कब तलक छुपती है पहचान
कालनेमि को देखते भांप गए हनुमान।
धर्म बराबर प्रेम है, धर्मस्थल व्यवसाय
हरि से मिलना हो जिसे और कहीं को जाय
#चित्रगुप्त