दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादक देश सऊदी अरब और सर्वाधिक ऊर्जा खपत वाले देश चीन के बीच रिश्तों का आधार अभी तक तेल ही रहा है, लेकिन अब इन दोनों देशों के बीच रिश्तों की तस्वीर बदल रही है.
शनिवार-रविवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुए 10वें अरब-चीन व्यापार सम्मेलन में दोनों देशों ने अपने रिश्तों को नई दिशा देने की कोशिश की है.
इस सम्मेलन में दोनों देशों के बीच दस अरब डॉलर के समझौते हुए हैं.
पिछले हफ़्ते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सऊदी अरब के प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन-सलमान ने फ़ोन पर बात की थी. दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की थी.
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चीन की ओर से ईरान और सऊदी अरब के बीच राजनयिक संबंध बहाल कराए जाने के बाद दोनों नेताओं की यह पहली बातचीत थी. पीएम मोदी और सऊदी क्राउन प्रिंस की बातचीत के बाद ही सऊदी अरब ने चीन से अहम कारोबारी समझौते किए हैं.
इससे पहले सऊदी अरब ने श्रीनगर में जी-20 की एक बैठक में अपने प्रतिनिधि को नहीं भेजा था. श्रीनगर में जी-20 की बैठक कराने पर पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज कराई थी.
पाकिस्तान की आपत्ति के बाद चीन, सऊदी अरब, तुर्की और मिस्र ने अपने प्रतिनिधि नहीं भेजे थे. इस साल जी-20 की अध्यक्षता भारत के पास है और नवंबर महीने में नई दिल्ली में जी-20 समिट होना है.
अरब-चीन सम्मेलन के दौरान जब सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज बिन सलमान से दोनों देशों के बीच संबंधों की पश्चिमी देशों की आलोचना के संबंध में सवाल पूछा गया तो उन्होंने इसे ख़ारिज करते हुए कहा, “मैं इसे नज़रअंदाज करता हूं…क्योंकि एक कारोबारी व्यक्ति के रूप में…अब आप वहीं जाएंगे जहां आपको मौक़ा दिखेगा.”
उन्होंने कहा कि हमारे सामने ऐसा कोई विकल्प नहीं होना चाहिए कि हमें दो में से किसी एक को चुनना पड़े.
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इसका सीधा मतलब यह था कि सऊदी अरब के सामने ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए कि उन्हें चीन या फिर पश्चिम देशों में से किसी एक को चुनना पड़े.
कुछ दिन पहले ही अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सऊदी अरब की यात्रा की थी और अब रियाद में चीन के निवेशकों और कारोबारियों की भीड़ थी. ये घटनाक्रम सऊदी अरब की बदलती प्राथमिकताओं के बारे में बहुत कुछ बताता है.
लेकिन यहां से एक सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि अगर चीन, सऊदी अरब के बहुत क़रीब आता है तो भारत के लिए इसके मायने क्या होंगे, क्योंकि चीन भारत के लिए एक सुरक्षा ख़तरे के रूप में देखा जाता है.
चीन जिस तरीक़े से मध्य-पूर्व में आगे बढ़ रहा है, उसके मुक़ाबले भारत कहां खड़ा है? भारत की क्या तैयारी है और इसका प्रभाव किस तरह से देश पर पड़ेगा?
सऊदी-चीन के बीच मज़बूत होते रिश्ते
मध्य पूर्व के दो प्रतिद्वंद्वी देश ईरान और सऊदी अरब ने हाल ही में जब दोस्ती के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो हर तरफ़ चीन की चर्चा होने लगी.
सात साल बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते बहाल करने में चीन ने अहम भूमिका निभाई थी. यह समझौता चीन के शीर्ष राजनयिक वांग यी की मध्यस्थता में हुआ.
साल 2016 में सऊदी अरब में शिया धर्मगुरु को फांसी दिए जाने के बाद तेहरान स्थित सऊदी दूतावास में ईरानी प्रदर्शनकारी घुस गए थे. इस घटना के बाद सऊदी अरब ने ईरान से अपने रिश्ते तोड़ लिए थे.
दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पश्चिमी एशिया अध्ययन विभाग की प्रोफेसर सुजाता ऐश्वर्या मानती हैं कि चीन का ऐसा करना उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है.
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वह कहती हैं, “सऊदी अरब और ईरान दोनों देश बात कर रहे थे लेकिन एक दीवार थी जिसे चीन ने हटा दिया.”
इसके बाद दिसंबर 2022 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सऊदी अरब की यात्रा की. उन्होंने इस दौरान दोनों देशों के बीच तेल व्यापार को चीनी मुद्रा युआन में करने की मांग की थी, जबकि दुनियाभर में तेल का अधिकतम आयात-निर्यात डॉलर में होता है. यह एक ऐसी मांग थी जिसका सीधा असर डॉलर की मज़बूती पर होगा.
सऊदी चीन की तरफ क्यों बढ़ रहा है?
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के कमान संभालने के बाद से ही सऊदी अरब अपनी तेल आधारित अर्थव्यवस्था में और विविधता लाने के प्रयास कर रहा है.
सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं, “सऊदी की तेल आधारित अर्थव्यवस्था आने वाले समय में धीरे-धीरे कमज़ोर हो जाएगी. इसी को ध्यान में रखते हुए यह तैयारी की जा रही है. पिछले कई सालों में सऊदी अरब ने पेट्रो केमिकल सेक्टर को बहुत बढ़ावा दिया है. यह सेक्टर भी तेल और गैस पर ही निर्भर करता है.”
अरब-चीन व्यापार सम्मेलन में हुए नए समझौतों को विदेशी मामलों के एक्सपर्ट क़मर आगा सऊदी अरब की विदेश नीति में बड़ा बदलाव मानते हैं.
उनका भी कहना है कि अब सऊदी अरब बहुध्रुवीय दुनिया की तरफ़ बढ़ रहा है. वह कहते हैं, “सऊदी चीन से भी दोस्ती कर रहा है और रूस से भी. उनके भारत से भी अच्छे संबंध हैं. इतना ही नहीं उनकी विदेश नीति में जापान और दक्षिण कोरिया की भी जगह है. वे अपने रिश्तों को एक देश तक सीमित नहीं रख रहे हैं.”
क़मर आगा कहते हैं, “क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान नई पॉलिसी लाए हैं, जिसके तहत नए शहरों को बनाना और विदेशी इन्वेस्टमेंट लाना शामिल है, जिसके तहत उन्हें चीन एक महत्वपूर्ण प्लेयर दिखाई दे रहा है.”
एक देश पर निर्भर न रहकर कई देशों के साथ संबंध बनाने की बात सुजाता ऐश्वर्या भी करती हैं. वे कहती हैं जैसे भारत ने अपनी हथियारों की निर्भरता को रूस पर कम कर दूसरे देशों का रुख़ किया है. सऊदी भी इसी राह पर है.
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