देश

अखंड भारत की इमेज नेपाल ने धराशयी कर दी : भारत-चीन के सैनिक आमने-सामने हैं ऐसे में तनाव हिंसा का रूप ले सकता है, जैसा गलवान में हुआ : रिपोर्ट

भारत की नयी संसद के उद्धघाटन के समय संसद के अंदर अखंड भारत का नक्शा दर्शाया गया है, इस नक़्शे को लेकर नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान ने आपत्ति जतायी है, नेपाल ने आरोप लगाया है कि भारत ने अपने नक़्शे में नेपाल के इलाकों को भी दर्शाया है, भारत के अखंड भारत को नेपाल ने सीधे चिनौती देते हुए काठमांडू के मेयर ने दिल्ली के अपने समक्ष के सामने ग्रेटर नेपाल का एक नक्शा पेश कर दिया जिसमे भारत के अनेक इलाकों को नेपाल ने अपने नक़्शे में शामिल कर दिखाया है, नेपाल ने हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा तक का इलाका अपने नक़्शे में दिखाया है, इधर बंगाल के पुरुलिया तक का इलाका उसमे शामिल किया है, साथ ही सिक्किम के भी इलाकों को नेपाल ने अपने नक़्शे में दिखाया है, वहीँ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने उत्तराखंड की सीमा के करीब पुख्ता निर्माण कर लिया है, 100 से ज़यादा नए गॉंव बसाने की सेटेलाट तस्वीरें सामने आयी हैं, सोशल मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल और चीन ने भारत को घेरने की तैयारी की हुई है, भारत ने जो अखंड भारत का नक्शा और इमेज बना कर पेश की थी वो नेपाल ने धराशयी कर दी है

इन सब मामलों में भारत के विदेश मंत्री की कार्यप्रणाली ज़रा भी संतोषजनक नहीं है

https://www.youtube.com/watch?v=JSsYdvKdQ10

Vivek Hari
@hivekvari
कौंग्रेस अध्यक्ष श्री
@kharge
जी ने कहा है, मोदी सरकार की विफल नीतियों के कारण अब चीन उत्तराखंड में भी देश की नीतियों को चोटिल कर रहा है। भारत चीन तनाव पर खड़गे जी ने कुछ जरुरी सवाल पूछे हैं।
पर क्या कोई जवाब मिलेगा?
क्या फिर से जिनपिंग साथ झूला झूलके मोदीजी सबको उल्लू बनाएंगे ?

चीन ने दशकों पहले भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा किया था और चीन-भारत के बीच मौजूदा तनाव उसके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने के कारण नहीं बल्कि दोनों की ‘फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट’ के कारण है.

ये कहना है भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का.

मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के मौक़े पर विदेश मंत्रालय ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ़्रेंस का आयोजन किया था, जहाँ जयशंकर ने कई सवालों के उत्तर दिए.

क्या चीन ने भारत की ज़मीन पर कब्जा किया है?
प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान जयशंकर से एक सीधा सवाल ये किया गया कि गलवान घाटी में हुई घटना के बाद ये सवाल भारतीयों के ज़ेहन में रहा है कि क्या भारत की ज़मीन पर चीन ने कब्ज़ा किया है.

इसके उत्तर में एस. जयशंकर ने कहा कि “ये जटिल मामला है.”

उन्होंने कहा, “मुल्कों की फौज बिल्कुल एलएसी (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल) पर तैनात नहीं की जाती, बल्कि सैनिक अपने कैंप पर तैनात किए जाते हैं, जहां से वो आगे बढ़ते हैं. 2020 के बाद जो बदलाव आया है वो ये है कि तनाव के कारण दोनों पक्षों से फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट किया गया है, यानी अपने सैनिकों को सीमा के क़रीब तैनात किया है.”

उन्होंने कहा, “ये मुद्दा हमें सुलझाना है. ये मुद्दा ज़मीन का नहीं बल्कि फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट का है. दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं, ऐसे में तनाव हिंसा का रूप ले सकता है, जैसा गलवान में हुआ.”

 


Ashok Swain
@ashoswai
The Chinese army has built several new structures at the LAC bordering Uttarakhand, India. Modi has yet to muster enough courage to take the name of China. After Ladakh & Arunachal, if China takes more terroritory of Uttarakhand, neither the US nor Russia will rescue India.

Mallikarjun Kharge
@kharge
Our Territorial Integrity is being impinged upon by audacious Chinese military construction at the LAC, now in Uttrakhand!

The nation is paying a heavy price for Modi ji’s CLEAN CHIT to China.

China should be confronted strategically together, and not by making hollow boasts!


SocioPoliticalWatch
@SocioPoliticalW

Also please look at this. India need to give strong message to China. Seems Modi failed in this front & perception developed that he is too weak to handle China

Satellite pics show new PLA structures, enhanced Chinese presence bordering Uttarakhand

 

उन्होंने कहा, “साल 2020 में चीन ने ना जाने क्यों दोनों मुल्कों के बीच समझौते को तोड़कर सीमा के पास सैनिकों की तैनाती कर दी और हमें भड़काने की कोशिश की. हमने उन्हें साफ़ कर दिया है कि सीमा पर जब तक शांति और स्थिरता का माहौल नहीं बनेगा तब तक दोनों देशों के रिश्ते बेहतर नहीं हो सकते.”

उन्होंने आगे कहा, “कुछ लोगों ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश में मॉडल विलेज बना है, लेकिन संसद के रिकॉर्ड देखें तो आपको पता चलेगा कि ये उस जगह बना है जिस पर चीन ने 1959 में कब्ज़ा किया था. चीन 1950 के दशक से भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा कर चुका है.”

जयशंकर ने कहा, “मूल मुद्दा है, ये एलएसी पर हमारी सेना बेस से निकल कर पेट्रोलिंग करती है और फिर बेस पर लौट आती है. 2020 के बाद से ऐसा नहीं हुआ क्योंकि चीन ने समझौतों का उल्लंघन कर सीमा के क़रीब बड़ी संख्या में सैनिक तैनात किए. इस कारण हमें भी फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट करना पड़ा जिससे तनाव पैदा हुआ.”


‘चीन के साथ भारत अच्छे रिश्ते चाहता है’
जयशंकर ने कहा कि बीते नौ सालों में दुनिया में चीन के अलावा, अधिकतर ऐसे देश जो ताक़त का केंद्र बने हुए हैं, उनके साथ भारत के रिश्ते बेहतर हुए हैं.

अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, यूरोपियन यूनियन, जर्मनी, जापान, खाड़ी देश, आसियान के देशों के साथ कूटनीतिक रिश्ते सुधारने की कोशिश की गई है. खुद प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में विदेश नीति पर अमल किया गया है.

उन्होंने कहा कि 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद सरकार ने नेबरहुड पॉलिसी के तहत पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की, लेकिन चीन के मामले में ऐसा नहीं हो सका.

उन्होंने कहा कि भारत का विकास भी नेबरहुड में हुआ है तो यहीं उसे सबसे अधिक चुनौती भी मिली है.

जयशंकर ने कहा, “हमारे रिश्ते नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका, मालदीव, यहां तक कि म्यांमार के साथ तक हमारे संबंध मज़बूत हुए हैं. यहां पहली बार एक रीजनल इकोनॉमी बन सकी है.”

“लेकिन पाकिस्तान और चीन के साथ चुनौतियां हैं. नेबरहुड पॉलिसी के कारण हम ये नहीं कर सकते कि आतंकवाद को बर्दाश्त करें. रही चीन की बात तो हमारी कोशिश थी कि उनके साथ हमारे रिश्ते अच्छे हों लेकिन ऐसा तभी हो सकता है, जब सीमावर्ती इलाक़ों में शांति हो.”

“लेकिन समझौतों का उल्लंघन होने पर हम रिश्तों को आगे बढ़ा नहीं सकते. गलवान से पहले भी हम उनसे बातचीत कर रहे थे. हमने चीन को आगाह किया था कि उनके सैनिक हमें सीमा के क़रीब दिख रहे हैं जो समझौतों का उल्लंघन है.”

“मुझे नहीं लगता कि सीमा पर जारी तनाव चीन के हित में हैं लेकिन हमें सैनिकों को पीछे करने का कोई रास्ता तलाशना पड़ेगा क्योंकि इसका असर आपसी रिश्तों पर पड़ रहा है. ये उम्मीद करना कि सीमा में तनाव के बाद भी रिश्ते सामान्य रहेंगे तो ये सही नहीं है.”

https://www.youtube.com/watch?v=RmxwsJGALSY

रूस यूक्रेन युद्ध पर स्टैंड और चीन
एक सवाल उनसे ये भी पूछा गया कि भारत के साथ रूस के पुराने संबंध हैं और रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद चीन के साथ रूस की नज़दीकी काफ़ी बढ़ी है. क्या इसका असर भारत-रूस संबंधों पर पड़ सकता है?

जयशंकर ने इसके उत्तर में कहा युद्ध का असर अलग-अलग देशों में अलग-अलग पड़ता है. अब चीन के साथ रूस के संबंध कैसे होंगे ये वो तय करेंगे.

उन्होंने कहा, “1955 रूस ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का समर्थन किया था, इस दौर के बाद से दोनों के रिश्ते बेहद स्थिर रहे हैं. बीते दशकों में दुनिया बदली, लेकिन हमरे संबंधों में बदलाव नहीं हुआ क्योंकि दोनों देशों के नेतृत्व इसकी अहमियत को समझते हैं.”

“भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे दोनों देशों के रिश्तों पर किसी तरह का कोई नकारात्मक असर पड़े.”

चीन को लेकर मोदी का बयान
एस. जयशंकर का ये बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान से मेल खाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि चीन ने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया.

जून 2020 में चीन के मसले पर एक सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी राजनीतिक दलों को भरोसा दिलाया था कि हमारी सेना सीमाओं की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम हैं.

उन्होंने कहा, “न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है.”

इसी बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था ”कहीं कोई इंटेलिजेंस नाकाम नहीं हुआ.”

लेकिन उनके इस बयान को लेकर विपक्ष हमलावर हो गया था. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि चीन के आक्रमण के आगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय ज़मीन सौंप चुके हैं.

राहुल ने पूछा था , “अगर यह ज़मीन चीन की थी, तो हमारे सैनिक क्यों मारे गए? और अगर मारे गए तो, कहां मारे गए?”

सोशल मीडिया पर छिड़ी चर्चा?
एस. जयशंकर के संवाददाता सम्मेलन के बाद सोशल मीडिया पर उनके बयान को लेकर चर्चा जारी है.

सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च में सीनियर फ़ेलो सुशांत सिंह ने सवाल किया, “विदेश मंत्री ने कहा कि मुद्दा ज़मीन कब्जे का नहीं फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट का है. बात ये है कि जिन जगहों पर गश्त आप 2020 से पहले लगाते थे, अगर चीनी सैनिकों के फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट के कारण सीमा पर वहां आप गश्त लगा नहीं पा रहे हैं तो ये ज़मीन का मुद्दा है.”

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा, “अगर उनकी तैनाती से भारत के गश्त करने के अधिकार पर असर नहीं पड़ता तो कोई मुद्दा नहीं बनता, लेकिन डेपसांग और डेमचोक में चीन रुकावट पैदा कर रहा है, वहां फॉर्वर्ड डिप्लॉयमेन्ट एलएसी पर भारत की तरफ है.”

“क्या स्थायी समाधान के तौर पर ये मोदी सरकार को स्वीकार्य है?”

श्रीनाथ राघवन नाम के इतिहासकार और लेखक लिखते हैं, “घरेलू राजनीतिक कारणों से सरकार सच्चाई को तोड़-मरोड़ पेश कर रही है, यही कारण है कि चीन सीमा पर सैलेमी स्लाइसिंग टैकटिक अपना रहा है.”

कूटनीति के मामले में सैलेमी स्लाइसिंग टैकटिक या सैलेमी स्लाइसिंग एक कड़ी में की जाने वाली छोटी-छोटी घटनाओं को कहते हैं जिनका मिलाजुला और बड़ा असर पड़ सकता है.

‘वहीं बेल्ट एंड रोड: अ चाइनीज़ वर्ल्ड ऑर्डर’ के लेखक ब्रूनो मार्सियाज़ लिखते हैं “जयशंकर ने यूरोपीय संघ से शिकायत की थी कि वो भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ, लेकिन फिर वो ये कहते हैं कि चीन ने भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा नहीं किया. लेकिन अगर यूरोपीय संघ ने उसका समर्थन किया होता तो भारत की नाराज़गी बढ़ जाती क्योंकि फिर उसका मतलब ये होता कि चीन ने असल में भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा किया है.”


जयशंकर ने और क्या-क्या कहा?
राहुल गांधी के भारत में लोकतांत्रिक संस्थाएं ख़त्म हो रही हैं वाले बयान पर उन्होंने कहा मुझे नहीं लगता कि देश की राजनीति को देश से बाहर ले जाना देश के हित में है.
कनाडा में अनाधिकृत तरीके से पढ़ाई के लिए गए भारतीय छात्रों के मामले में उन्होंने कहा कि छात्र तो पूरे मन से पढ़ाई करने गए लेकिन उनके साथ धोखा हुआ. ऐसे में छात्रों को सज़ा देना अनैतिक होगा.
कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के प्रदर्शनों के बारे में उन्होंने कहा कि अलगाववादियों और हिंसा के समर्थकों को यहां स्पेस मिलता है. ये न तो कनाडा के लिए अच्छा है और न ही दोनों देशों के आपसी रिश्तों के लिए.
ग्लोबल साउथ भारत को एक भरोसेमंद और कारगर डेवेलपमेन्ट पार्टनर की तरह देखता है.
भारत 78 देशों में किसी न किसी परियोजना में मदद कर रहा है. भारत सरकार और भारत की कंपनियां गुयाना, कीनिया, मोज़ाम्बीक, मॉरिशस, जिबूती जैसे मुल्कों में निवेश कर रहा है और आधुनिकीकरण में उनकी मदद कर रहा है.
भारत की छवि आज एक आर्थिक सहयोगी के तौर पर बन रही है. हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मोर्चों पर प्रभाव डाल पा रहे हैं. श्रीलंका का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ज़रूरत पड़ने पर हम अपने पड़ोसियों की मदद के लिए खड़े रहे हैं.
यूक्रेन मुद्दे पर हमारा स्टैंड पहले की तरह स्पष्ट था और हमें दबाव का भी अंदाज़ा था. हम इस मुद्दे पर अपने स्टैंड पर बने रहे.
भारत के कूटनीतिक रास्तों की बदौलत देश में हम खाद और तेल की क़ीमतें काबू में रखने में कामयाब रहे हैं. इससे महंगाई पर भी लगाम लग सकी है.